लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

18 पाठक हैं

अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


तर्क अच्छी वस्तु है, सच्चाई जानने में उससे सहायता मिलती है, अंधविश्वास और भ्रम-पाखंडों की सफाई उससे की जाती है और एक हद तक पथ प्रदर्शन भी होता है, किंतु उसकी कुछ नियत मर्यादा है। जीवन के मूल स्त्रोत में उत्साह तर्क से नहीं, श्रद्धा से पैदा होता है। दृढ़ता, त्याग, भावनापरायणता, स्थिरता श्रद्धा से आती है, लोभ और कष्टों को ठुकराकर जब मनुष्य लौह-स्तंभ की तरह अडिग खड़ा होता है, तब समझना चाहिए कि श्रद्धा की सुदृढ़ शिला में इसकी जड़ें पहुँच गई हैं। केवल तर्कजन्य विचार तो बहुत ही कमजोर होते हैं। बालू के महल की तरह वे जरा से धक्के में तितर-बितर हो जाते हैं।

गुरु का बड़ा भारी माहात्म्य वर्णन किया गया है। कहीं-कहीं तो गोविंद से भी गुरु को बड़ा बताया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर से उसकी उपमा दी गई है, गुरु भक्ति को ईश्वर भक्ति से ऊँचा कहा गया है। इसमें एक व्यक्ति को माध्यम बनाकर श्रद्धा का बीज बोने का प्रयास है। सिद्धांतों, उद्देश्यों पर श्रद्धा जमाने की साधना का आरंभ बालकों को गुरु भक्ति द्वारा कराया जाता था। उच्छंखलता, उदंडता, स्वेच्छाचार के विरुद्ध यह एक स्वेच्छा स्वीकृत मानसिक नियंत्रण है, जिसके द्वारा बड़े-बड़े मानसिक लाभ अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं।

पर शिष्य की मान्यता के अनुसार गुरु का दर्जा सचमुच गोविंद से बड़ा न हो जायेगा। वह अपूर्ण प्राणी ही रहेगा, पर अपनी भावना की दृढ़ता द्वारा शिष्य उससे इतना लाभ उठा लेगा जितना गोविंद से उठाया जा सकता है। द्रोणाचार्य ने अपनी सारी योग्यता खर्च करके पांडवों को बाण विद्या सिखाई थी, पर उनकी मिट्टी की मूर्ति को गुरु बनाकर उसकी शिष्यता में बाण-विद्या सीखने वाला भील पुत्र "एकलव्य" पांडवों से अधिक प्रवीण हो गया, यहाँ तक कि स्वयं द्रोणाचार्य भी उससे पीछे रह गये। यह भी श्रद्धा का चमत्कार है। भील-पुत्र ने मिट्टी के पुतले पर श्रद्धा जमाई और उसके आधार पर अपने अंदर छिपे हुए अनंत विद्याओं के भंडार को जाग्रत् कर लिया। गुरु-शिष्य का उपकरण इसी एक महान् सत्य को अपने गर्भ में छिपाये हुए हैं। आज भले ही 'गुरुडम' के विकृत रूप में यह दृष्टिगोचर हो तो हो, पर मूलतः गुरु माहात्म्य का तत्त्वज्ञान श्रद्धा का प्रारंभिक बीजारोपण करने के निमित्त ही निर्मित हुआ है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book