आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
|
1 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
कई लोग ठीक और सही बात भी बड़ी कर्कशता और रूखेपन के साथ कहते हैं। कई उपदेशक
प्रेम, मैत्री, दया का उपदेश देते हैं, दूसरों की प्रशंसा आदर्शों की बातें
कहते हुए भी ऐसे लगते हैं मानो ये किसी से लड़ रहे हैं। आवाज की इस कर्कशता
को दूर करना भी आवश्यक है। बातचीत में मधुरता, गंभीरता, स्पष्टता, व्यवस्था
रखने से दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। साधारण योग्यता वाले भी अपनी
बातचीत की मधुरता से बड़े-बड़े काम निकाल सकते हैं किंतु अपने उक्त दोषों को
दूर न करने वाले यही शिकायत करते पाए जाते हैं-"क्या करें हम लोगों से अच्छी
बात कहते हैं, उनका हित चाहते हैं, फिर भी लोग हमें बुरा समझते हैं, हमसे दूर
रहने का प्रयत्न करते हैं।” इसका कारण दूसरे लोगों का इस तरह का व्यवहार नहीं
अपितु कर्णकटु, रूखी बातचीत करना ही है।
कई लोग धर्म, अध्यात्म, समाज, मानवता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। बातों
में, विचारों में, आकाश कुसुमों को तोड़ने में नहीं चूकते, किंतु धरती पर काम
में आने वाली छोटी-छोटी बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं देते। फलतः वे न जमीन के
रहते हैं न आसमान के, उनका कोई महत्त्व कायम नहीं होता। जिनके वस्त्र,
अस्त-व्यस्त हों, बाल-बिखरे हुए हों, खाने, पीने, बैठने, रहने का कोई ढंग
नहीं, जिनकी जीवन पद्धति में कोई व्यवस्था क्रम न हो, उल्टा फूहड़पन, भद्दापन
टपकता हो ऐसे व्यक्ति न कोई महत्त्वपूर्ण कार्यों का संपादन ही कर सकते हैं न
किसी क्षेत्र में विशेष सफलता अर्जित कर सकते हैं।
किसी भी तरह के चारित्रिक, व्यवहारिक दोष मनुष्य को असफलता और पतन की ओर
प्रेरित कर सकते हैं। समाज में उसका मूल्य, प्रभाव, नष्ट कर सकते हैं। महान
पंडित, विज्ञानी, बलवान रावण केवल अपने अहंकार और परस्त्री आसक्ति में ही
नष्ट हो गया। सारे समाज यहाँ तक कि पशु-पक्षियों तक ने उसका विरोध किया। इसी
तरह इतिहास के पृष्ठों पर लिखी पतन की कहानियों में मनुष्य की चारित्रिक
हीनता ही प्रमुख रही है। चरित्र और व्यवहार की साधारण-सी भूलें मनुष्य की
उन्नति विकास का रास्ता रोक लेती हैं।
कई लोग बिना किसी बात के अथवा सामान्य-सी घटनाओं में ही मुँह फुलाकर उदास,
मनहूस से देखे जाते हैं, जो वातावरण में भी मुर्दनी, नैराश्य की विवशता,
पराजय, भयंकरता को पैदा करते हैं। किंतु एक ओर ऐसे भी लोग होते हैं, जो अपनी
प्रसन्नता, मुस्कराहट, आशाभरी हँसी से एक सजीव सुंदर, उत्कृष्ट वातावरण का
निर्माण करते हैं। केवल मनुष्य के दृष्टिकोण और जीवन जीने की इच्छा शक्ति का
अंतर है। यह तो ध्रुव सत्य है कि दुःख-दर्द, उदासी तो सभी के पास आती-जाती
रहती हैं। समाज उन्हें ही तरजीह देता है। जो उसे हँसी, मुस्कराहट, प्रसन्नता,
सरसता दे सकें। श्मशान में भी नवजीवन युक्त कुसुमों की कली खिला सकें,
भयंकरता में सौंदर्य, प्रसाद, मृदुता का सृजन कर सकें। हर वक्त अपने दुःखों,
परेशानियों, अभावों का रोना रोने वाले से लोग अपना पीछे छुड़ाना चाहेंगे
क्योंकि इनकी तो दूसरों के पास भी कमी नहीं होती।
|
- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए