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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...



सात साधन

जीवन में सफलता पाने के जितने साधन बतलाए गए हैं, उनमें विद्वानों ने सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है। जो मनुष्य अपने में इन सात साधनों का समावेश कर लेता है, वह किसी भी स्थिति का क्यों न हो, अपनी वांछित सफलता का अवश्य वरण कर लेता है। वे सात साधन हैं—परिश्रम एवं पुरुषार्थ, आत्म विश्वास एवं बलिदान, स्नेह एवं सहानुभूति, साहस एवं निर्भयता, प्रसन्नता एवं मानसिक संतुलन।

दीपक जलता है। संसार को प्रकाश देता है और श्रेय के रूप में सफलता प्राप्त करता है। दीपक की इस सफलता का रहस्य यही तो है कि वह अपने तेल तथा बत्ती को तिल-तिलकर जलाता रहता है। उसका प्रकाश वस्तुतः उसकी उस निरंतर ज्वलनशीलता का ही होता है, जिसको वह लौ के रूप में बत्ती से प्रकट करता है। दीपक का कर्तव्य जलना है। जिस समय भी वह अपने इस कर्त्तव्य से विरत होकर निष्क्रिय हो जाता है, प्रकाशरूपी सफलता उससे दूर चली जाती है। वह एक मूल्यहीन मिट्टी के पात्र से अधिक कुछ नहीं रह जाता। अपनी निर्जीवता अथवा निष्क्रियता के कारण वह इतना महत्त्वहीन हो जाता है कि लोग उसे यथा स्थान पड़ा भी नहीं रहने देना चाहते।

इसी प्रकार जो मनुष्य अपने शरीर का सार परिश्रमरूपी तप में यापन करते हैं, अपनी शक्तियों तथा क्षमताओं का समुचित उपयोग करते हैं वे आलोक पाकर कृतकृत्य हो जाते हैं। सक्रियता ही जीवन है और निष्क्रियता ही मृत्यु। श्रम से विरत रहकर आलस्य अथवा प्रमाद में पड़े रहने वाले मनुष्य को जीवित नहीं कहा जा सकता। भले ही वह लुहार की धौंकनी की तरह स्वासें क्यों न ले रहा हो ? मनुष्य जीवन की सार्थकता श्रम में ही है। श्रम से शरीर स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान बनता है, जिससे वांछित सफलता की ओर बढ़ने में प्रेरणा मिलती है। निष्क्रिय कामना कभी सफल नहीं होती।

मनुष्य जो कुछ चाहता है यदि वह उसके लिए हर संभव उद्योग न करेगा, अपना पसीना न बहाएगा तो वह उसे बैठे-बैठे किस प्रकार मिल सकती है ? सफलता मनुष्य के पसीने का मूल्य है इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए। कोई भी सफलता पाने योग्य शक्तियाँ मनुष्य में निहित हैं किंतु उनका उभार, निखार तथा उपयोग परिश्रम एवं पुरुषार्थ करने में ही है। जिस प्रकार निरंतर गतिशील नदी का जल निर्विकार एवं जीवन पूर्ण बना रहता है ओर अवरुद्ध सरोवर का जल विकृत एवं निर्जीव हो जाता है, उसी प्रकार श्रमशील पुरुषार्थी व्यक्ति की शक्तियाँ सजीव एवं सार्थक बनी रहती हैं और आलसी तथा निकम्मे व्यक्ति की शक्ति निर्जीव होकर नष्ट हो जाती है। सरिता के समान निरंतर बढ़ते रहने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य को पाने में उसी प्रकार सफल हो जाता है, जिस प्रकार सरिता अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो जाती है।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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