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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4254
आईएसबीएन :0000

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...


वैसे सत्य बात तो यह है कि जब कोई एक व्यक्ति अपने व्यवसाय तथा कारोबार को आगे बढ़ाकर साधन संपन्न बन सकता है, तब दूसरा क्यों नहीं बन सकता। किंतु कठिनाई तो यह है कि जड़ात्मा व्यक्तियों में उन्नति की कोई अनुभूति नहीं होती। वे तो भाग्य के भरोसे यथा स्थान पड़े-पड़े घिस-घिस ही करते रहते हैं। प्रयत्न शून्य रहकर भाग्य का भरोसा रखने वालों के हिस्से जो दुर्भाग्य नाम का दंड निश्चित रहता है वह उन्हें मिलता है। मौलिक रूप से न सही देखा-देखी ही यदि ऐसे व्यक्ति उन्नति का कुछ प्रयत्न करें तब भी तो बहुत कुछ हो सकता है, किंतु कहाँ ?

व्यवसाय छोटा है, दुकान कम चलती है, माल की कमी है—यह बहाना कोई अर्थ नहीं रखता। व्यवसाय छोटे-से ही बड़ा होता है। दुकान उपयुक्तता के आधार पर ही चलती है और माल साख तथा सद्भावना के भरोसे मिलता है। बाजार में जाइए, लोगों से संपर्क करिए लेन-देन का व्यवहार बढ़ाइए, वचन का पालन करिए और देखिए कि आपको माल की कमी नहीं रहती ! दुकान समय से खोलिए, अच्छा और खरा माल रखिए, उचित दाम लीजिए और ग्राहकों से मृदु विनम्र व्यवहार कीजिए। खुद साफ रहिए दुकान की हर चीज साफ रखिए। आकर्षक ढंग से सजाकर रखिए और वह चीजें अवश्य रखिए जिनकी माँग रहती है और तब देखिए कि आपकी दुकान चलती है या नहीं। आपके पास जो कुछ है, लोग वही खरीदें अथवा आप जो बेचना चाहें लोग वही खरीदें तो यह नीति उल्टी है। आप वह चीजें रखिए जिनकी लोगों को जरूरत है और वह बेचिए जिन्हें ग्राहक खरीदना चाहें। ग्राहकों की आवश्यकता एवं रुचि के साथ साम्य रखने वाला दुकानदार सफल और उनसे वैषम्य रखने वाला निश्चित रूप से असफल होता है।

इसी प्रकार मजदूर अध्यापक अथवा क्लर्क के विषय में भी यही बात है। बिना उन्नति की जिज्ञासा जगाए तरक्की नहीं हो सकती। मजदूर को चाहिए कि वह ठेले की तरह ढोने के काम में ही संतुष्ट न रहे। अपने काम को इतनी रुचि तत्परता तथा सावधानी के साथ करे कि स्पष्ट झलकने लगे कि यह काम पूरे मनोयोग से किया गया है। माल को ठीक से उठाना, यथास्थान ठीक से रखना कम से कम जगह में अधिक से अधिक माल सजा देना। बिना टोके और बिना रोके समय से अपना पूरा काम करना, मजदूर के वे गुण हैं जो उसे मेट बनवा सकते हैं। मजदूरों को ठेकेदार कर सकते हैं, वेतन तथा पद वृद्धि कर सकते हैं, तात्पर्य यह है कि इच्छित सफलताएँ प्राप्त कर सकते हैं।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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