आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
गुरुजनों के सान्निध्य अवलम्बन से कितने ही सामान्य व्यक्तियों को
असामान्य बनने का अवसर मिला है। बुद्ध के अनुग्रह से हर्षवर्धन, अशोक,
आनन्द, कुमारजीव जैसे कितनों को महानता के उच्च शिखर तक पहुँचने का सुयोग
मिला। अंगुलिमाल, अम्रपाली जैसे कितने ही हीन व्यक्ति महामानव के रूप में
कायाकल्प कर सकने का सौभाग्य अर्जित कर सके। समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी
की, विरजानन्द और दयानन्द की आत्मिक घनिष्ठता यदि बन न पड़ी होती, तो यह
अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि दोनों ही पक्ष घाटे में रहते। विशेषतया
इन युग्मों से सम्बन्धित शिष्य पक्ष को ही अपेक्षाकृत अधिक घाटे में रहना
पड़ता। कल्पना की जा सकती है कि यदि स्वराजेन्द्र बाबू, पटेल नेहरू,
राजगोपालाचार्य विनोबा आदि की गाँधी जी के साथ घनिष्ठता न जुड़ी होती, वे
अपना-अपना अभ्यस्त ढर्रा अपनाये रहे होते, तो निश्चय ही दोनों पक्षों को
उतना गौरवान्वित होने का अवसर न मिलता जितना कि संभव हो सका। संभव हैउस
स्थिति, में गाँधी जी अपनी तपश्चर्या को भगीरथ दधीचि, आदि की तरह एकाकी भी
चलाते रहते और महानता के उच्च शिखर पर पहुँच जाते किन्तु उनसे सम्बधित
अगणित व्यक्तियों की स्थिति सर्वथा भिन्न होती, वे कामकाजी लोगों की तरह
मात्र अपना निर्वाह ही चलाते एक छोटे दायरे में ही दिन गुजारते और
धनी-निर्धन रहकर जिन्दगी के दिन पूरे करते। उन्हें यह सौभाग्य न मिल पाता
जो गाँधी जी की छत्र-छाया का आश्रय लेने पर मिल सका। यह श्रेष्ठता के
सान्निध्य, सामीप्य, अवलम्बन का ही चमत्कार है कि साधारण व्यक्ति असाधारण
बनता देखा जाता है। गुरुवरण की आवश्यकता व महत्ता इसीलिए बतायी जाती रही
है। श्रद्धा इस प्रक्रिया का प्राण है। इतना समझ लेने पर आत्मिक प्रगति के
इच्छुकों को वह राजमार्ग मिल जाता है, जिस पर चलकर वे अनुग्रह -अनुदानों
से लाभान्वित होते हैं।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान