आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकताश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
अग्नि दीक्षा अत्यन्त उच्चस्तरीय है। इसे राजा द्वारा युवराज को अपने
सामने ही उत्तराधिकारी घोषित करने के समान समझा जा सकता है। सिख गुरुओं
में एक के बाद एक की नियुक्ति इसी प्रकार होती रही है। रामकृष्ण परमहंस ने
विवेकानन्द को इसी स्तरका अनुदान दिया था। इस स्तर की पात्रता और अनुकम्पा
के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। यह प्रसंग अत्यन्त उच्चस्तरीय होने के
कारण अब तक इस सम्बन्ध में कभी प्रकाश नहीं डाला गया, पर महाप्रयाण से
पूर्व अपने अन्तिम अंतरंग सन्देश में परम् पूज्य गुरुदेव ने प्रतिभाओं को
ढूँढ़ने और उन्हें अग्नि दीक्षा में तपाकर भारतवर्ष को सवा लाख महापुरुष
प्रदान करने का लक्ष्य बताया। आश्वमेधिक अभियान उसी के लिए एक विशिष्ट
मंथन प्रक्रिया समझनी चाहिए। इस शताब्दी के अन्त तक दीक्षा द्वारा जुड़ने
वाली आत्माओं में ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से- यथा- सेना विज्ञान,
साहित्य, कला, कृषि, पर्यावरण, उद्योग, ज्योतिर्विज्ञान, अन्तरिक्ष विद्या
के मूर्धन्य विकसित करने का कार्य चल पड़ा है। यही आत्मायें इस देश को
प्रगति के चरम शिखर तक ले जायेंगी। अतएव इन दिनों दीक्षा का विशेष महत्व
रहेगा। न जाने किस अन्तःकरण में उनका अग्नि तत्त्व प्रस्फुटित हो जाये।
जिसकी लम्बे समय से आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
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- आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
- श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
- समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
- इष्टदेव का निर्धारण
- दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
- देने की क्षमता और लेने की पात्रता
- तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
- गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान