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मुखौटा

रामगोपाल वर्मा

प्रकाशक : एम. एन. पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर प्रकाशित वर्ष : 1995
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4091
आईएसबीएन :000000

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Mukhauta A Hindi Book by Ramgopal Verma

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

छींक

जगतूमल को बैठे-बैठे छींके आने लगीं। जब बड़े आदमी को छींके आती हैं, तो छोटों की चिन्ता बन जाती है। हर व्यक्ति उनकी छींक पर उन्हें सुझाव देने लगा। कोई अंग्रेजी दवा की बात करता, कोई यूनानी की,  कोई आयुर्वैदिक की तो कोई देशी नुस्खे बताता है। थोड़ी देर बाद छींके कम अवश्य होतीं परन्तु रुकतीं नहीं अब तो हर तीन चार मिनट के बाद छींक आने लगी।

 छींकते-छींकते लाला जगतूमल का सिर भन्नाने लगा मानो उन्हें बिजली के झटके दिए जा रहे हों। बिजली के झटके तो लाला जी झेल रहे थे परन्तु अपमान के झटके उनकी बुरी गत बना रहे थे। सभी की निगाहें उनकी नाक पर थीं। उनकी नाक रगड़े खा-खा कर मोटी और लाल हो गई थी।

 जिस नाक के लिए लाला जगतूमल ने प्रसिद्धि पाई थी, अब वे उसे काट कर फेंक देना चाहते थे। वे मन ही मन सोच रहे थे कि नाक को दुनिया की कोई ताकत न झुका सकी, उसे मामूली छींक ने मानो तबाह कर दिया।

शाम तक लाला जगतूमल को बड़े से बड़े डाक्टर को दिखाया गया किन्तु कोई भी डाक्टर छींके बंद नहीं कर सका लाला जगतूमल ने डाक्टर को अपार धन दिया, परन्तु फिर भी किसी डाक्टर को सफलता नहीं  मिली। छींके उनका दम निकाले दे रही थीं। उनकी पत्नी घर में बेटी के जन्म दिन की शाम को होने वाली पार्टी का प्रबन्ध कर रही थी। अतः उसके पास समय का अभाव था।

उसने कोठी के ऊपर वाली मंजिल के एक कमरे में लालाजी के आराम करने  का इंतजाम करा दिया। दो नौकर लाला जी की छींक की देखभाल के लिए छोड़ दिए गए और मेहमानों  को कह दिया गया कि लालाजी व्यापार के कार्य से विदेश गए हैं।
नीचे जन्म दिन की भव्य पार्टी चल रही थी और ऊपर के कमरे में लाला जगतूमल की छींके पार्टी के नृत्य-संगीत की ध्वनि और भोज की भीनी-भीनी गन्ध लगातार लाला जगतूमल को आकर्षित कर रहे थे।

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