नाटक-एकाँकी >> लहरों के राजहंस (सजिल्द) लहरों के राजहंस (सजिल्द)मोहन राकेश
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सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शांति के पारस्परिक विरोध...
मैत्रेय : लोहिताक्ष और शालिमित्र से मिलने नहीं गया। पद्यकांत और रुद्रदेव
ने भी यही कहा कि उनकी ओर से मैं क्षमायाचना करूँ, वे आज नहीं पा पाएँगे।
उनसे मिलने के बाद और किसी के यहाँ जाने को मन नहीं हुआ।
सुंदरी, अपने को रोक पाने में असमर्थ, बढ़कर उनके बीच में आ जाती है।
सुंदरी : परंतु इन सबसे कहने जाने की आवश्यकता आपको क्यों हुई ? क्या आप पहले
से जानते थे कि वे लोग नहीं आएँगे ?
मैत्रेय : इसका उत्तर कुमार दे सकते हैं।
मदिराकोष्ठ के पास जाकर चषक में मदिरा डालने लगता है।
सुंदरी : (आवेशपूर्ण स्वर में नंद से)
तो क्या इन सबने आपको संदेश भेजा था कि ये नहीं आएँगे ?
सीधे नंद की आँखों में देखती है। नंद आँखें दूसरी ओर हटा लेता है।
नंद : सबने तो नहीं पर इनमें से कई लोगों ने संदेश भेजा था ।
सुंदरी : और आपने इसकी चर्चा तक मुझसे करना आवश्यक नहीं समझा। मैं तुम्हारे
उत्साह में बाधा डालना नहीं चाहता था । सोचा था कि इनमें से अधिकांश लोग एक
बार जाकर कहने से...।
संदरी : कितना मान होता मेरा कि जाकर कहने से जो लोग आते, उनका मुझे इस
घर में स्वागत करना पड़ता ! आपने यह नहीं सोचा कि मैं... कि मैं आवेग पर वश न
रख सकने के कारण मुँह हाथों में छिपाए चबूतरे पर जा बैठती है। नंद और मैत्रेय
एक-दूसरे की ओर देखते हैं। तभी बाहर कुछ आहट सुनाई देती है। मैत्रेय भरा हुआ
चषक मदिराकोष्ठ में रखकर सामने द्वार की ओर बढ़ता है। परंतु नंद अपनी
उत्सुकता में उससे पहले द्वार के पास पहुंच जाता है।
नंद : शायद कुछ लोग आ रहे हैं।
द्वार से निकलकर गवाक्ष के पास चला जाता है। सुंदरी धीरे-धीरे चेहरे से हाथ
हटाती है और अपने को सँभालने का प्रयत्न करती हुई उस ओर देखती है। नंद गवाक्ष
के पास से हटकर वापस कक्ष में आ जाता है। सुंदरी चबूतरे से उठ खड़ी होती है।
सुंदरी : कौन लोग हैं ?
नंद उसके पास आ खड़ा होता है। मुँह से कुछ नहीं कहता। देखा है आपने ! कौन लोग
हैं ?
अतिथि नहीं हैं।
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