नाटक-एकाँकी >> लहरों के राजहंस (सजिल्द) लहरों के राजहंस (सजिल्द)मोहन राकेश
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सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शांति के पारस्परिक विरोध...
अलका : सोचती हूँ कि संभव है आज वे उन्हें पहले के संबंध से नहीं देखतीं ।
उनके हृदय में जो पीड़ा थी राजकुमार सिद्धार्थ को लेकर थी। परंतु आज जो लौटकर
आए हैं, वे राजकुमार सिद्धार्थ नहीं, गौतम बुद्ध हैं।
सुंदरी : यही तो दुःख है कि आज वे राजकुमार सिद्धार्थ नहीं हैं । परंतु
राजकुमार सिद्धार्थ आज गौतम बुद्ध बनकर आए, इसका श्रेय भी तो देवी यशोधरा को
है। नहीं ?
मदिरा पीकर चषक रख देती है।
अलका : (अचकचाई-सी)
इसका श्रेय देवी यशोधरा को है ? आपका अभिप्राय है कि ।
सुंदरी : अभिप्राय यही है कि देवी यशोधरा का आकर्षण यदि राजकुमार सिद्धार्थ
को बाँधकर अपने पास रख सकता, तो क्या वे आज राजकुमार सिद्धार्थ ही न होते ?
गौतम बुद्ध बनकर नदी-तट पर लोगों को उपेदश दे रहे होते?
अलका सुनकर जैसे सिहर जाती है।
अलका : ऐसा, नहीं, देवि !
सुंदरी : क्यों ? यह सच नहीं ? राजकुमार सिद्धार्थ क्यों चुपचाप एक रात घर से
निकल पड़े थे ? बात बहुत साधारण-सी है अलका ! नारी का आकर्षण पुरुष को पुरुष
बनाता है, तो उसका अपकर्षण उसे गौतम बुद्ध बना देता है।
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