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नाटक-एकाँकी >> लहरों के राजहंस (सजिल्द)

लहरों के राजहंस (सजिल्द)

मोहन राकेश

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3763
आईएसबीएन :9788126708512

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सांसारिक सुखों और आध्यात्मिक शांति के पारस्परिक विरोध...


अलका : सोचती हूँ कि संभव है आज वे उन्हें पहले के संबंध से नहीं देखतीं । उनके हृदय में जो पीड़ा थी राजकुमार सिद्धार्थ को लेकर थी। परंतु आज जो लौटकर आए हैं, वे राजकुमार सिद्धार्थ नहीं, गौतम बुद्ध हैं।

सुंदरी : यही तो दुःख है कि आज वे राजकुमार सिद्धार्थ नहीं हैं । परंतु राजकुमार सिद्धार्थ आज गौतम बुद्ध बनकर आए, इसका श्रेय भी तो देवी यशोधरा को है। नहीं ?

मदिरा पीकर चषक रख देती है।

अलका : (अचकचाई-सी)

इसका श्रेय देवी यशोधरा को है ? आपका अभिप्राय है कि ।
सुंदरी : अभिप्राय यही है कि देवी यशोधरा का आकर्षण यदि राजकुमार सिद्धार्थ को बाँधकर अपने पास रख सकता, तो क्या वे आज राजकुमार सिद्धार्थ ही न होते ? गौतम बुद्ध बनकर नदी-तट पर लोगों को उपेदश दे रहे होते?

अलका सुनकर जैसे सिहर जाती है।

अलका : ऐसा, नहीं, देवि !

सुंदरी : क्यों ? यह सच नहीं ? राजकुमार सिद्धार्थ क्यों चुपचाप एक रात घर से निकल पड़े थे ? बात बहुत साधारण-सी है अलका ! नारी का आकर्षण पुरुष को पुरुष बनाता है, तो उसका अपकर्षण उसे गौतम बुद्ध बना देता है।

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