नारी विमर्श >> कालिंदी (सजिल्द) कालिंदी (सजिल्द)शिवानी
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एक स्वयंसिद्ध लड़की के जीवन पर आधारित उपन्यास
चिट्ठी मिलते ही देवेन्द्र, भानजी की आगमनी का समाचार मित्र को देने बसन्त के
यहाँ पहुँचे तो देखा, वह अँधेरे कमरे में चुपचाप अकेला बैठा है।
“यह क्या बसन्त, बत्ती क्यों नहीं जलाई? तबीयत ठीक नहीं है क्या?"
मित्र का चिन्तातुर स्वर सुनते ही बसन्त हड़बड़ाकर उठ बैठा, “अब तबीयत और
क्या खराब होगी यार, जितने दिन कट जाएँ! मैं तो ठीक हूँ पर आज एल्फी की
चिट्ठी आई है, उसी को पढ़ चित्त खिन्न हो गया-सोच रहा हूँ, कल हल्द्वानी जाकर
उसे देख ही आऊँ।"
"क्यों? क्या हुआ है उसे?"
"होगा क्या, बीमार तो था ही, अब उस मनहूस होम में जाकर पलंग पकड़ ली है...मान
गया तो उसे यहाँ ले आऊँगा...उसकी इतनी देखभाल तो कर ही सकता हूँ।"
"मैं भी तेरे साथ चलूँगा बसन्त। सच, हमने भी तो उसकी खोज-खबर नहीं ली। चड़ी
छुट्टियों में आ रही है, एक बार उसका पूरा चेकअप कर लेगी।"
दूसरे ही दिन, दोनों एक साथ एल्फी को देखने पहुंचे तो अँधेरे घुप्प कमरे में,
झूला-सी कैंपकोट पर पड़े मित्र के कंकाल को पहचान भी नहीं पाए-अपने दोनों
सींक-से हाथ टेककर एल्फी ने उठने की व्यर्थ चेष्टा की, पर उठ नहीं पाया।
“यह क्या हाल बना लिया है तने एल्फी?" देवेन्द्र का गला रुंध गया।
पर एल्फी उस हालत में भी हँसना-हँसाना नहीं भूला था-"कोल्डेरिन ली?" उसने
मित्र का प्रश्न पूरा किया।
“अच्छा मजाक छोड़-हम तझे लेने आए हैं आज, कालिंदी छुट्टी में आ रही है-अब वही
तेरा इलाज करेगी- देवेन्द्र ने फिर बड़े उत्साह से बिस्तर पर असहाय पड़े
मित्र के रूखे-उलझे बालों को सहलाकर कहा, “इसी बीस को आ रही है?"
“बीस?" वह हँसा और क्लांत कोटरग्रस्त आँखों की गाढ़ी कालिमा और प्रगाढ़ हो
गई।
"डॉक्टर के आने तक क्या यह मरीज रहेगा रे देबी?"
"कैसी बातें कर रहा है तू? तू एकदम ठीक हो जाएगा-बड़ा नाम कमा लिया है हमारी
चड़ी ने और फिर लीवर की बीमारियों पर तो उसने अपना पेपर पढ़, बहुत ख्याति
बटोरी है।"
"पर यह लीवर अब लीवर रहा ही कहाँ देबी-फिनिश्ड एंड गोन!" वह हँसा, फिर एक
लम्बी साँस लेकर कहने लगा, “यहाँ अकेले पड़े-पड़े पुराने दिन बहुत याद आते
हैं बसन्त। हम तीनों को फुलोरिया मास्टर थ्री मस्केटियर्स कहते थे-याद है?"
"है क्यों नहीं, तू आज जो ऐसे चुपचाप हथियार डाले पड़ा है, तब तो तेज-तर्रार
मास्टरों पर भी संगीन ताने उनकी नींद हराम किए रहता था, वह भी याद है।"
एल्फी के पपड़ी पड़े ओठों को एक क्षीण स्मित पल-भर को स्निग्ध कर गया।
“उस बार जब एन्युअल फंक्शन में हमारे दबंग प्रिंसिपल काजमी दूल्हे से झूमते
आए और सीना तानकर कहने लगे-सुना है, इस कॉलेज के लड़के बड़े तेज हैं, हर
मास्टर, प्रिंसिपल का एक न एक नाम रख देते हैं-पर हमें देखिए, साल-भर हो गया,
मजाल है जो कोई लड़का हमारा ऐसा नाम रख पाया हो! और तब ही इस एल्फी ने, कछुए
सी मूंडी निकाल, महीन लड़कियों की सी आवाज बना, फौरन तुरुप मार दी थी-“काजमी
चूरन हाजमी-और वह ठहाका लगा था कि खुद काजमी साहब भी हँसने लगे थे, याद है
बसन्त?"
फिर तीनों मित्रों की राशीभूत हँसी ने एल्फी के सिरहाने खड़ी मौत को भी पल-भर
के लिए लाठी लेकर दूर खदेड़ दिया था।
“पर कुछ भी कहो देबी, काजमी था गजब का रौबीला प्रिंसिपल, मजाल जो कोई उनकी
अंग्रेजी की क्लास में चूँ तो कर दे-एक हमारे एल्फी को छोड़कर! वही आज जनानी
बनी रजाई में दुबका है, अबे उठ!"
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