भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
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घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
बीघा बायर होय, बाँध जो होय बँधाए।
भरा भुसैला होय, बबुर जो होय बुवाए।
बढ़ई बसै समीप बसूला बाढ़ धराए।
पुरखिन होय सुजान, बिया बोउनिहा बनाए।
बरद बगौधा होय, बदरिया चतुर सुहाए।
बेटवा होय सपूत, कहे बिन करे कराए।।
जिस किसान के पास खेत का पूरा चक हो, खेत की सिंचाई के लिए बाँध बँधे हों,
चारे की कमी न हो, बबूल के पेड़ खेतों में खड़े हों, समीप ही बढ़ई रहता हो
वे उसके औजार तेज हों, घर की मालकिन चतुर हो, बीजों को सम्भाल के रखे,
बढ़िया नस्ल के बैल हों। हरवाहा हुशियार हो, परिश्रम से काम करता हो और
बेटा सुपुत्र हो, बिना कहे सुने काम में लगा रहे तथा नौकरों को भी लगाये
रखे तो वह किसान या भागयशाली है।
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