भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
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घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
ज्येष्ठ की प्रतिपदा के वासर का विचार
रविवासर अति बाढ़ बढ़ावा, मंगलवारी व्याधि बतावा।।
बुधा नाज महँगा जो करई, शनिवासर परजा परिहरई।
चन्द्र शुक्र सुर गुरु के बारा, होय तो अन्न भरो संसारा।।
न गिन तिन सै साठ दिन, ना कर लग्न विचार।
गिनु नौमी आषाढ़ बदि, होवै कौनिउ वार।।
रवि अकाल मंगल जग उगे, बुधा समसोम भानो लगे।
सोम शुक्र सुरगुरु जो होय, पुहुमि फूल फलन्ती जोय।।
जो कृत्तिका को करवर, रोहिणि होय सुकाल।
जो मृगशिर आवे तहाँ, निहचै पड़े दुकाल।।
सावन बदी एकादशी, जितनी घड़ी क होय।
तितनो संवत् नीपजे, चिन्ता करो न कोय।।
सावन शुक्ला सप्तमी, जो गरजे आधि रात।
बरसे तो सूखा पड़े, नाहीं समौ सुकाल।।
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