भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
|
96 पाठक हैं |
घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
वर्षा और वायु का विचार
नैऋत भई बूंद ना परै , राजा परजा भूखों मरै।।
अगिन कोन जो बहै समीरा , पड़े अकाल दुख सहै सरीरा।
उत्तर से जल फूहों परें , मूस साँप दोनों अवतरें।।
पश्चिम समय नीक करि जान्यो, आगे बहै तुषार प्रमान्यो।
जो कहूँ हवा इशाना कोना, नापा विस्वा दो-दो दोना।।
जो कहूँ हवा इकासे जाय , परै न बूंद काल परि जाय।
दक्खिन पश्चिम आधो समयो , भड्डर जोसी ऐसे भंनयो।।
अषाढ़ मास पुन गौना , धुज धरके देखौ पौना।
जो पै पवन पुरुब से आवै , उपजै अन्न मेघ झरि लावै।
अग्निकोण जो बहै समीरा , पड़े अकाल दुख सहै शरीरा।
दखिन बहै जल थल अलमीरा, ताहि समय जूझै बड़ बीरा।।
तीरथ कान बूंद ना परे, राजा परजा भूखन मरे।
पश्चिम बहे नीक कर जानो, पड़े तुषार तेज डर मानो।।
वायवे बह जल थल अति भारी, मूस उगाह दंड बस नारी।
उत्तर उपजै बहु धन धान, खेत बात सुख करै किसान।।
कोन ईसान दुंदुभी बाजै। दही भात भोजन सब गाजै।
|
लोगों की राय
No reviews for this book