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घाघ और भड्डरी की कहावतें

देवनारायण द्विवेदी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3731
आईएसबीएन :81-288-1368-4

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घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।


यात्रा करने के पूर्व शुभ-सेवनीय वस्तु

रवि को पाने सोम को दरपन, धनियाँ घोटे भूमि के नन्दन।
बुध को गुड़ गुरु को राई, शुक्र को दही शनि को घृत भाई।।
रवि को पान सोम को दरपन, मंगल को करु गुड़ का चर्बन।
बुद्ध मिठाई बिहफै राई, शुक्र कहै मोहि दही सुहाई।।
शनी कहे जो अदरक पाऊँ, कालहु कोटि जीति घर लाऊँ।
न गिन चैत नहीं वैशाख, न गिन वार तीन सौ साठ।।
गनियो एके मास आषाढ़, नवमी शुक्ला वार बखान।
मंगल पड़े तो हर पड़े, बुद्ध पड़े दुःख काल।।
दैव विछोहा होय तो, पड़े शनीचर वार।
सोमे शुक्रे रवि गुरू, भूमे अन्त कराय।
छत्र टूट मड़ई डिगे, शनीवार पड़ जाय।।

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