भाषा एवं साहित्य >> घाघ और भड्डरी की कहावतें घाघ और भड्डरी की कहावतेंदेवनारायण द्विवेदी
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घाघ और भड्डरी में दैवी प्रतिभा थी। उनकी जितनी कहावतें हैं, सभी प्रायः अक्षरशः सत्य उतरती हैं।
अषाढ़ मास पुनिगौना, ध्वजा बाँधि के देखौ पौना।
जो पै पवन पुरब से आवे, उपजे अन्न मेघ झरलावै।।
अग्निकोन जो बहै समीरा, पड़े काल दुख सहै शरीरा।
दक्षिण बहै जलद अलमीरा, ताहि समय जूझे बलचीरा।।
तीरथ कोन बूंद ना परै, राजा प्रजा भूखन सब मरै।
पश्चिम बहै नीक कर जानौ, पड़ो तुषार तेज उर आनौ।।
अषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन ध्वज बाँधकर वायु परीक्षा की जाती है, उसका
फल लिखते हैं। यदि पूर्व की वायु चले तो वर्षा और उपज अधिक होगी। यदि
अग्निकोण की वायु चले तो अकाल पड़ेगा, प्रजा कष्ट में रहेगी। यदि दक्षिण
की हवा चले तो वर्षा अच्छी होगी, परन्तु युद्ध होने की आशंका रहेगी। यदि
दक्षिण पश्चिम के कोने में हवा आयेगी तो वर्षा नहीं होगी, प्रजा भूखों
मरेगी। यदि पछुवा हवा चले तो मौसम अच्छा होने पर भी पाला पड़ने की
सम्भावना है।
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