लोगों की राय

सामाजिक >> जकड़न

जकड़न

महाश्वेता देवी

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3354
आईएसबीएन :81-7016-697-7

Like this Hindi book 14 पाठकों को प्रिय

365 पाठक हैं

महाश्वेता देवी का एक आधुनिक उपन्यास

Jakadan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पुलिस अफसर ने काफी सहनशील ढंग से और सहानुभूति-भरी नजर से एक बार देखा। विनय के साहित्य में पुलिस कितनी क्रूर, कुटिल, निर्गम है, लेकिन अभी उनको पुलिस से कितना सद्भावपूर्ण व्यवहार मिल रहा है। हालाँकि बउआ की माँ ने कहा था-तुम लोगों के घर की बात है, इसलिए इतना कुछ हो पा रहा है बहू जी! हम लोगों के लिए होता ? कितना कुछ घटा, लेकिन मुऐ थाने ने सुना कभी? अफसर कहता है, मुझे लगता है इसलिए कह रहा हूँ, मैं सरकारी तौर पर नहीं कह रहा हूँ, ऐसा लगता है कि उनमें किसी बात पर झगड़ा हो रहा होगा, अचानक गुस्से में आकर एक पीतल की ऐशट्रे फेंककर मारी, वह जाकर नस पर लगी, उससे उसकी बेटी बेहोश होकर गिर पड़ी, उसके बाद....

जकड़न


आज एकदम भोर में विनय भुवनेश्वरी के कमरे में आए थे। भुवनेश्वरी के कमरे में अँधेरा ही रहता है। कुछ समय से उनकी आँखें रोशनी बर्दास्त नहीं कर सकतीं। सिर में असह्य दर्द होने लगता है। जब रीढ़ की हड्डी का कैंसर पकड़ में आया तब खास कुछ करने को नहीं था। फिर भी कई बार अस्पताल ले जाया गया था। अंत में भुवनेश्वरी खुद नहीं जाना चाहती थीं। विनय भी माँ को और दूर रखना नहीं चाहते थे। जीना तो है नहीं, बहुत ही कम और अनिश्चित आयु। तो फिर और खींचतान क्यों ?

भुवनेश्वरी को भी पता है कि वे अब कुछ ही दिनों की मेहमान हैं। लेकिन उनके पास बैठने या बातचीत करने से पता नहीं चलता कि वे यह सब जानती हैं। रोज रेडियो से समाचार सुनती हैं। नीता नियमित रूप से आकर, अखबार, किताब आदि पढ़कर सुनाती है। पहले के लोग आते-जाते हैं, बातें करते हैं। घर के बारे में वे खास दिलचस्पी नहीं लेतीं। वैसे भी भुवनेश्वरी बहुत अधिक घरेलू कभी नहीं थीं। उनका ध्यान दूसरी बातों पर रहता था। समाचार सुनना उनकी एक आदत है।
रेडियो पर यह समाचार सबसे पहले उन्होंने ही सुना था। यह भी एक अचरज की बात है। समाचार सुना, घंटी बजाई, नौकरानी को बुलाकर कहा, नीचे जाकर रमा को बुला लाओ।
रमा विनय की पुत्रवधू है-भुवनेश्वरी की पतोहू। रमा के आते ही भुवनेश्वरी ने कहा-रेडियो में क्या कुछ सुना, लगा, बुबू का नाम लिया गया। वहाँ एक टेलीफोन करो तो।
-बुबू, हमारी बुबू ?
-ऐसा ही तो सुनने में आया।

-क्या कहा ?
थोड़ी देर तक भुवनेश्वरी खामोश रहीं, फिर बोलीं-जल गई थी। अस्पताल में प्राण त्याग दिया।
रमा ऐसी लड़की है जो कभी पलटकर सवाल नहीं करती। उससे जो जैसा कहता है, वह वैसा ही करती है।
इतनी देर से वह अपने स्कूल की सहकर्मी से माँगकर लाई कॉपी देख-देखकर केक बना रही थी, जो बहुत सोच-समझकर नाप-जोखकर करने वाला काम है।
 
भुवनेश्वरी द्वारा सुनाई खबर जीवन के रोजमर्रा के कामकाज को ठप कर देने वाली खबर थी। ऐसे समाचार से घर की चारदीवारें ढह जाती हैं, तूफान अंदर प्रवेश कर जाता है। रमा सिर हिलाकर कह रही थी, ठीक है...फिर फोन करने चली गई थी।
बुबू के घर नहीं, उसके पति के दफ्तर में। शुभ्र ने कहा था-मैं देख रहा हूँ। तुम उधर देखो।
इस तरह घर की लाड़ली छोटी बेटी की मौत की खबर इस घर में आई थी, अट्ठारह दिन पहले। छोटी क्यों, एकमात्र लड़की कहा जा सकता है क्योंकि बुबू की बहन खुबू हालाँकि सफेद साड़ी और सफेद ब्लाउज में रोज नर्सिंग होम के अपने चेंबर जाती है, रोगी देखती है, परिवार नियोजन को लेकर सेमिनार करती है, गाड़ी ड्राइव करके बच्चों को स्कूल छोड़ती है, बाजार जाती है-फिर भी इस घर के लोगों के लिए वह ‘मर चुकी’ है। उसकी तस्वीर इस घर में भुवनेश्वरी देवी के कमरे के अलावा और कहीं नहीं है।

यह खबर विनय को अपने प्रकाशक की दुकान पर रहते हुए नहीं मिली। हालाँकि बाद में पता चला कि अखबार के दफ्तर से रजत ने कई बार उन्हें फोन करने की कोशिश की थी।
विनय एक अत्यंत जटिल विषय पर गहन-गंभीर ढंग से फतवा दे रहे थे और कुछ युवा लेखक सुन रहे थे-देश में हमेशा से भूख-कष्ट-गरीबी है। सिर्फ यही नहीं। उनमें भी है, कई बातें हैं...
-जैसा आपने लिखा है, उस उपन्यास में...
-हाँ-हाँ, सुनो, एक बिलकुल सच्ची घटना बता रहा हूँ। मेरा एक दोस्त बता रहा था, वे सब एक परियोजना के तहत काम कर रहे थे। उन सबने पाया कि इस साल जिन्हें पैसे दिए जा रहे हैं, वे उस पैसे को गरीबी-रेखा से ऊपर आने की कोशिश में खर्च नहीं कर रहे, न मुर्गी, बकरी आदि ही खरीद रहे हैं। बस, खा-पीकर उड़ा देते हैं।
-ओह, ये लोग तो बहुत बदमाश हैं !

-नहीं-नहीं, समझे ही नहीं। उन लोगों ने गरीबी को अपना लिया है। गरीबी के अभ्यस्त हो चुके हैं। पर पैसे पाकर उन्होंने मांस खरीदा। पूरे परिवार के साथ भर पेट मांस खाया, शराब पी, मौज किया, खुश हुए। उनकी यह खुशी मेरे लिए बहुत मायने रखती है। जरा सोचो।
-हाँ, शायद ऐसा ही है।
-थोड़ी-सी फुर्सत मिलते ही वे लोग क्या करते हैं ? नाचते हैं, नाचते हैं वे । समझे ! और औरतें जूड़े में शाल का फूल लगाती हैं, आह ! अद्भुत ! नाच-गाना-महुआ। क्यों ? यदि यह सब समझ सके तो उन्हें भी समझा सकेंगे।
-आपका मतलब है, यह उनका जीवन-दर्शन है ?
बेशक उनका गीत है...
यही सब बातें विनय सेन कह रहे थे। पिता ने जिनका नाम पता नहीं किस वजह से परमेश्वर सेन रखा था और बाद में यह नाम उन्होंने खुद बदल लिया था। आगे चलकर वही विनय सेन बतौर लेखक बहुत प्रसिद्ध हुए, और लड़के मुग्ध भाव से यह सब सुन रहे थे।

ये सारी बातें विनय स्मृति की कड़वाहट कम करने के लिए बोल रहे थे, यह भी वे जानते हैं। ठीक इसी प्रसंग, इसी विषय को लेकर उनके मन में एक कड़वाहट है। ऐसे ही भाव-विभोर होकर एक सभा में वे बोल रहे थे और एक संथाली शिक्षक ने जवाब में खरी-खोटी सुनाकर उनके मन को कड़वा कर दिया था। तब से आदिवासियों के लिए कौन-सी व्यवस्था बेहतर है, आदिवासियों के सामने वे नहीं बोलते। हालाँकि वैसा कोई मौका भी नहीं मिलता। कलकत्ता में वे एक दुनिया में हैं तो वे सब कहीं और दूसरी दुनिया में। हालाँकि एक समय था...

बहरहाल जब वे इन बातों की चर्चा कर रहे हैं, तब तक बुबू मर चुकी है। जब दोपहर को वे खा-पीकर सो रहे थे तब बुबू जल रही थी। जब तीन बजे वे चाय पी रहे थे, तब वे लोग बुबू को अस्पताल ले जा रहे थे।
और जब वे अपने कुछ आज्ञाकारी श्रोताओं को तरह-तरह की बातें सुना रहे थे, तब तक उनकी बेटी बुबू मर चुकी थी। ढेर सारी बातें कहे जा रहे थे वे। दुष्ट व्यक्ति जो कुछ कहता है, क्या वह सच होता है ? क्या अपनी ही आवाज सुनने में इतना आनंद आता है ?
बहुत कुछ बोलने के बाद वे कहाँ से उठे। घर लौटते उन्हें काफी रात हो गई थी। घर का मुख्य फाटक खुला हुआ था। दरवाजे के सामने ‘बउआ की माँ बैठी हुई थी। घर की पुरानी नौकरानी बुबू की बचपन में देखभाल करती थी। ‘बउवा की माँ’ के नाम से ही उसे पुकारते आए हैं। और देखिए, कितने आश्चर्य की बात है कि जो सत्ताईस वर्षों से उन्हें सुबह चाय पिलाती आई है, क्योंकि कपड़े तह करना और बिस्तर उठाना, ये दोनों काम सविता के मन मुताबिक होने के लिए बहुत निपुणता चाहिए थी-उसी व्यक्ति का उन्होंने कभी नाम ही नहीं जाना।
‘बउआ की माँ’ को बाहर बैठा देखकर ‘तो क्या माँ....!’ ऐसा उन्हें लगा था, लेकिन बउआ की माँ दहाड़ मारकर रो पड़ी-बुबू अब नहीं रही, बाबू, बुबू नहीं रही। आप तुरंत अस्पताल जाइए। भइया पुलिस ले आए थे। भयानक घटना हो गई है, बाबू ! आपको ‘पी.जी.’ जाने को कहा है।
शुभ्र पुलिस लाया था। क्या, क्या हो गया ? सब कुछ अवास्तव-सा लग रहा है, मानो यह सब किसी और के जीवन में घटा हो। पुलिस ! उस वक्त विनय का छोटा भाई, उसके ससुर, शुभ्र का साला-सबने खूब मदद की। तभी बुबू का फोटो खींचा जा सका। पोस्टमार्टम न होने से पता ही नहीं चलता कि बुबू की बाईं ओर की नस पर किसी भोथरी भारी चीज से आघात किया गया था।
उनके जरिए ही पुलिस से संपर्क करके केस दायर किया गया था। इसीलिए बुबू की सास और पति से पुलिस पूछताछ कर रही है।

अट्ठारह दिन बीत गए। अब तक पूरा मामला बहुत अवास्तविक-सा लग रहा है, बुबू नहीं है, कहीं भी नहीं है, फिर कभी रेडियो से उसकी आवाज सुनने को नहीं मिलेगी। बुबू विनय सेन जैसे लेखक की बेटी हो सकती है, राजनीतिक नेता और बड़े-बड़े साहित्यकार, प्रकाशक, संपादक उसके ‘चाचा-ताऊ’ कहला सकते हैं। रवींद्र संगीत की दुनिया में वह एक जाना-माना नाम हो सकती है, लेकिन बुबू को भी ससुराल में इस तरह जलकर मरना पड़ता है !
अतनू बड़ी ठंडी निगाह से उनकी ओर देखते हुए सारी बातें सुन रहा था। भिलाई से कलकत्ता होकर दिल्ली जाते हुए अतनू थोड़े समय के लिए आया था।
-बुबू !...
-सब कुछ सुना है।
-किससे ?
-सुबू से।
-ओह !
-उसका बेटा ?
-उन लोगों के घर पर है।
-केस में कुछ होगा ?
-क्या कहा जा सकता है, बोलो ? इस तरह की अमानवीय क्रूरता...
अतनू ने फीकी हँसी के साथ कहा था-एक तरह से ठीक ही हुआ। बुबू ने प्रमाणित कर दिया कि वह आप लोगों के ही घर की बेटी थी।
शोक संतप्त विनय से पिछले कई दिनों के दौरान किसी ने इतनी बेरुखी से बात नहीं की थी। विनय को मानो चाबुक लगा था। ऐसे वक्त में अतनू इस तरह व्यंग्यपूर्ण ढंग से बात करेगा, यह भला कौन सोच सकता है ?
गुस्सा तो आया था, बेहद गुस्सा। हो सकता है, अतनू और बुबू के बीच कभी मन का एक रिश्ता रहा। पर वह कितना गहरा था, इसकी जानकारी विनय को नहीं है।

-अचानक ऐसा क्यों कह रहे हो ?
अतनू उठकर खड़ा हो गया था, बोला था-सामने (दीवार पर टँगी) की यह तस्वीर ? आपकी परदादी की सास या कुछ थीं यह सुरधुनी देवी ? सोलह वर्ष की उम्र में सहमरण ? एक श्रेष्ठ सती ?
-इससे बुबू का क्या संबंध...?

-सोलह वर्ष की उम्र में कोई शौक से तो जलकर मरता नहीं। उसे उस समय के अंधविश्वास और संस्कार के आगे बलि चढ़ाया गया था। ट्रेडीशन के सामने। बुबू के समय भी आपके मन में एक और तरह की ट्रेडीशन काम कर रहा था चाचाजी ! हालाँकि आपने कहा था कि बुबू के साथ मेरे विवाह में आपकी आपत्ति...
तुम्हारी विचारधारा के कारण।...
-और तब भी आप जानते थे कि वह झूठ था। सन सत्तर-बहत्तर में जब मेरी उम्र बाईस से चौबीस साल की थी, मैं उस वक्त कविता की एक पुस्तिका मात्र निकाल पाया था। यही था मेरा राजनीतिक जीवन।
-तो फिर ?
-सुबू के मामले में आप बेहद नाराज थे और उस वक्त आपका वह दकियानूसी अधिकारबोध जागृत हो गया था कि बुबू आपकी बेटी यानी आपकी संपत्ति है। इसलिए खालिस रूढ़िवादी बाप की तरह आपने सिर्फ लड़के की पैतृक संपत्ति देखकर ही अपनी बेटी की शादी की थी, हालाँकि अनर्जित संपत्ति के बारे में काफी लेक्चर आपने मुझे ही दिया था।
-बुबू को तो एतराज नहीं था !
-आप उस तस्वीर को भी रखे हुए हैं और प्रगति की बात भी कर रहे हैं, यह एक गड़बड़ मामला है। शायद बुबू ने मान लिया था कि चूँकि सुबू के कारण आपको काफी चोट पहुँची थी, इसलिए उसे भी सुखी होने का अधिकार नहीं है, बल्कि शहीद ही हो जाना चाहिए। यह कोई तर्कसंगत सोच नहीं है, पर बुबू तो बेहद संवेदनशील थी।
-बहुत ही संवेदनशील !
विनय रोने लगे थे। नरम, खूब नरम थी बुबू। इसके बाद उन्हें लगा था कि अतनू से और बात करें।
-सुबू ने अपनी मर्जी से जो काम किया था, बुबू वैसा कुछ न करे...
-क्या कह रहे हो तुम ? क्या मैं राक्षस हूँ ?
-जरा सोचिए, सुबू के मामले को। कभी तो आप प्रगतिशील थे, अचानक इस तरह बौखला क्यों गए ?
-तुम नहीं समझोगे !
-उसने तो एक अच्छी कंपनी के बक्सा वाले से शादी की थी। फिर नाराज क्यों हो गए थे ?
-एक अचानक धक्का...

-ऐसे वक्त भी आप सच को स्वीकार नहीं कर पा रहे।
-क्या ?
-नीग्रो, अंग्रेजी, पंजाबी, मराठी किसी से भी शादी करने से क्या आप इतना नाराज होते ? नहीं चाचाजी, सुबू ने मुसलमान से शादी की थी, इसीलिए आपकी वैसी प्रतिक्रिया थी। चलता हूँ। फिर मुलाकात नहीं होगी। लेकिन-बुबू को आपने-बुबू को मैं सचमुच प्यार करता था !
-शायद तुमसे शादी करने पर बुबू जीवित रहती। मंटू, जो एक हत्यारा-एक...
-शायद यह भी आप सही नहीं कह रहे। शायद गुस्से में आकर मंटू ने कुछ फेंककर मारा हो या जोर से धक्का दे दिया हो, फिर यह सोचकर कि मर गई....
-बस करो अतनू, बस करो !
-चलता हूँ।
-इस तरह अतनू विनय को बेचैन करके चला गया। ढेर सारे सवाल बार-बार विनय के मन को झकझोरने लगे। क्या ये सारी बातें सच हैं या झूठ ? झूठ हैं या सच ? क्या सचमुच सुबू ने मुसलमान से शादी की थी, इसीलिए मैं बौखला गया था ? उसने डॉक्टरी पढ़ी थी, उसके सामने एक उज्ज्वल भविष्य था। उसके तो विदेश जाने की बात भी तय हो गई थी। और शौकत के मामले में तो एतराज इसलिए था कि वे सब एकदम विपरीत परिवेश के थे। ऐसी शादी का नतीजा अच्छा नहीं होगा।
सुबू बिलकुल अवाक् एकटक देखती खड़ी रह गई थी। फिर उसके होंठों के किनारे एक फीकी हँसी उभरी थी।
-वह तुम पर दया कर रहा है !
-दया कर रहा है ?
सुबू ने अपने माथे और गाल पर हाथ फेरा था। बचपन में खौलते पानी से जल जाने के कारण तेजस्वी साँवले चेहरे पर एक लंबा सफेद दाग पड़ गया था। कभी उस दाग को लेकर सुबू के मन में जबर्दस्त हीनभावना थी। किशोरावस्था में वह लड़कों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करती थी। फिर न जाने कब वह सब दूर भी हो गया।
सविता और विनय के मन में उसकी शादी को लेकर ही एक गुत्थी बन चुकी थी-उसकी शादी हो सकेगी या नहीं, इस बात पर उनमें काफी चर्चा होती थी।
 
सुबू समझ रही थी कि विनय जिस मूल्यबोध की बात करते हैं, जिस पर विश्वास रखते हैं, अभी वे उसके अनुरूप आचरण नहीं कर रहे हैं। उनके भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी। ऐसा करके विनय अपने प्रति सम्मान भाव खोए दे रहे हैं। विनय क्यों नहीं कह रहे हैं कि तुमने ठीक किया है, सुबू, तुम शौकत से ही शादी करो। ऐसा कहने से सुबू विनय का सम्मान कर सकेगी।
और सुबू गुस्से से तमतमाती जा रही थी। जिसके कारण उसके होंठ तिर्यक हुए जा रहे थे, आँखों से अँगारे फूट रहे थे। माथे से पीछे की ओर उलटकर कंघी किए हुए छोटे बालों में गर्दन के पास क्लिप लगा हुआ था, अचानक उसका चेहरा एकदम अपरिचित-सा लग रहा था।
-वह मुझ पर दया नहीं कर रहा है।
-तुम समझ नहीं रही हो !

-मेरी समझ में नहीं आ रहा। आप लोग तो मान ही चुके थे कि मेरी शादी आसानी से नहीं होगी। कहते थे, जात-पात नहीं मानता, सिर्फ एक अच्छा लड़का हो जो सुबू को श्रद्धा की नजरों से देखे, सम्मान के साथ ग्रहण करे, हम पर्याप्त खर्चा करेंगे।
-यह तो अब भी कह रहा हूँ !
-कहते थे, तुम यदि अपने मन से शादी करोगी...नहीं ! अब आपसे बात करने का कोई फायदा नहीं। माँ तो ऐसी ही है। और आप बिना सिर-पैर की बात रहे हैं। असल में आपके एतराज की वजह तो आपके संस्कार में है। छिः पिताजी ! आपने ही कभी-आप...? ठीक है ! शौकत ने ठीक ही कहा था, तुम्हारे पिताजी हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे। उनकी कहानी में रबिया और राजू एक-दूसरे का हाथ पकड़े बाढ़ के पानी को चीरते हुए, पेड़ को पकड़कर बह सकते हैं, पर लड़की के मामले में वे दकियानूसी ही बने रहेंगे।
-निकल जा, निकल जा तू !
-धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद।

बस, तभी सुबू इस घर से निकल गई थी। सुबू अपने दोस्त के घर में रहती है। उन दोनों की शादी होती है। तब तक शुभ्र और रमा की शादी नहीं हुई थी। पर तभी से उनकी दोस्ती हुई, वे गए थे, लेकिन बुबू को सविता ने नहीं जाने दिया था।
हाँ, भुवनेश्वरी की भूमिका जरूर हैरान करने वाली थी। घर छोड़ने से पहले सुबू दादी से मिली थी। दादी ने उसके सामने ही उसके पिता को बुलाया था। कहा था-खुद खड़े होकर लड़की का ब्याह करा दो, बिनू ! वरना लोग क्या कहेंगे ?
विनय ने उनकी बात नहीं मानी थी। सुबू की शादी में शुभ्र ने दादी का अत्यंत विवादास्पद मोतियों का झुमका बहन को दिया था। यह मोतियों का झुमका भुवनेश्वरी के गहनों की बची हुई एकमात्र निशानी थी। इसे कौन लेगा, इस पर सुबू और उनकी फुफेरी बहन कुनू के बीच खूब बहस हुआ करती थी। आखिर यह तय हुआ था कि भुवनेश्वरी देवी पोतियों के बीच मोतियों को बाँट देंगी। जिसका जो मन करेगा, इससे वह गहना बना लेगी।

 
 

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book