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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


विस्तृत संदेशों को पढ़ने के बाद वसंत एक-एक कर कागज राजीव को थमाता गया। उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। कागजों को पढ़ने के बाद उसने नपी-तुली टिप्पणी की, “पिछले साल तो हमने केवल एक झलक देखी थी। अब पूरा नजारा देखने को मिल रहा है। मुझे तो संदेह है कि हम अगला साल देखने के लिए जिंदा भी बचेंगे कि नहीं।"

क्या इतना बुरा हाल होने जा रहा है ?" राजीव ने चिंतित होकर पूछा।
क्या इसे टाला नहीं जा सकता है?'' रिचर्ड ने पूछा।

'अब शायद बहुत देर हो चुकी है, रिचर्ड, लेकिन हो सकता है कि मैं गलत हूँ। हम कोशिश कर सकते हैं, पर अब हमारे पास क्या विकल्प है ? हमें इसे पिछले साल ही करना चाहिए था।"

वसंत ने अपनी डेस्क से टाइप किए हुए कागजों का पुलिंदा निकाला। उसके ऊपर लिखा-'परियोजना : इंद्र का आक्रमण'।

"इंद्र स्वर्ग का राजा है, जिसका निवास ऊपर आसमान में है। वहीं सारी समस्याओं की जड़ है।" आसमान की तरफ उँगली उठाते हुए होम्स ने कहा और चुपचाप कागजों का वह पुलिंदा ले लिया-एक साल पहले वह इनकी तरफ देखना भी नहीं चाहता था।

होम्स और चिटनिस की मुलाकात को छह महीने बीत चुके थे। भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण दोनों ओर केवल दस अक्षांश तक ही इलाका हरा-भरा और नीला था, जो धरती की पहचान माना जाता है। बल्कि हर जगह हिम युग अपने पैर पसार चुका था और इसी पतली सी पट्टी में समूची मानव सभ्यता सिमट गई थी और इसी पट्टी में इस सभ्यता को बर्फ के आक्रमण को रोकने के लिए अपने प्रयास करने पड़े।

मरता क्या न करता!

लेकिन वसंत अब ज्यादा आशान्वित था कि वे अब रॉकेट छोड़ने के लिए तैयार थे। धुंबा में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में रॉकेट लॉञ्चर के पास खड़ा वह बेसब्री से अभियान शुरू होने का इंतजार कर रहा था।

"हम तैयार हैं।" अभियान प्रमुख ने कहा।

"तब दागो।" वसंत ने आदेश दिया। उसे किसी अभियान को शुरू करने के लिए शुभ घड़ी का इंतजार करने से ही चिढ़ थी।

प्रमुख ने एक बटन दबाया। अगला पल बड़ी बेचैनी में बीता, फिर चमचमाता हुआ रॉकेट नारंगी लपटें छोड़ता आसमान की ओर लपका। इंद्र का विजय अभियान शुरू हो चुका था। सभी ने चैन की साँस ली।

इस अंतरिक्ष केंद्र से वायुमंडल की जानकारी हासिल करने के लिए पहले ही कई रॉकेट छोड़े जा चुके थे। अब की बार छोड़ा गया रॉकेट वायुमंडल को काबू में करने के लिए बनाया गया था। बशर्ते कि यह और भूमध्य रेखा की पट्टी से छोड़े जानेवाले अन्य रॉकेट बखूबी अपना काम करने में सफल हो जाएँ। श्रीहरिकोटा, श्रीलंका, सुमात्रा, केन्या और ग्वाटेमाला में भी लॉञ्च पैड ऐसे ही रॉकेटों और उपग्रहों को छोड़ने के लिए तैयार थे। क्योंकि यह योजना वसंत के दिमाग की उपज थी, इसलिए पहले प्रक्षेपण की अध्यक्षता करने का सम्मान उसे ही दिया गया।

अपने सामने पैनल पर लगे उपकरणों को देखकर पहली बार उसके चेहरे पर मुसकान आई। उसने लाल रंगवाला फोन उठाया और रिसीवर पर बोलना शुरू किया-

"अभियान सफलतापूर्वक शुरू हो चुका है।" रॉकेटों, उपग्रहों, गुब्बारों और ऊँची उड़ान भरनेवाले हवाई जहाजों-सभी को इस अभियान में झोंक दिया गया था। ये सभी आक्रमणकारी सेना के चार अंग थे और समूची मानव जाति को उपग्रहों द्वारा भेजी गई सूचनाओं का बेचैनी से इंतजार हो रहा था। ये उपग्रह आधुनिक महाभारत में संजय की भूमिका निभा रहे थे।

राजीव ने अपनी डायरी में लिखा-'हमारे इस पुराण में धरती के राजाओं ने इंद्र पर सफलतापूर्वक आक्रमण किया है। क्या यह आक्रमण सफल होगा?'

और आक्रमण क्या था? दरअसल यह वायुमंडल पर धातु के छोटे-छोटे कणों की बौछार करने की महत्त्वाकांक्षी योजना था। ये कण धूप की गरमी को सोखकर नीचे जमीन पर बैठ जाएँगे, यह वसंत की योजना थी। उसे उम्मीद थी कि अब तक ज्वालामुखियों के फटने से निकली राख के कण-जो वायुमंडल में घुल-मिल गए थे, अब धूप को धरती तक नहीं पहुँचने दे रहे थे-बैठ चुके होंगे उसे यह उम्मीद भी थी कि वायुमंडल पर धात्विक कणों की बौछार से राख द्वारा हुआ नुकसान पूरा हो जाएगा।

लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं था। वायुमंडल में छितराए हुए हिमकणों को भी तुरंत ही कम करना था। ऐसा केवल वायुमंडल को विस्फोटक द्वारा गरम करके ही हो पाता। इसके लिए वसंत ने अस्त्र तकनीकी के विनाशक की बजाय रचनात्मक तरीके से उपयोग करने की शर्त रख दी।

विनाश के कगार पर पहुँच चुके सभी देशों ने इस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया और सहयोग की भावना से कार्य करने लगे। इस तरह छह महीने वायुमंडल को विस्फोटक तरीके से निकली ऊर्जा के द्वारा गरम करने के तरीके खोजने में जुट गए। इन मिले-जुले प्रयासों के अंत में अब भी एक सवाल मुँह बाए खड़ा था—'क्या यह तरीका काम करेगा?'

सितंबर का महीना आते-आते इस सवाल का जवाब भी मिल गया। जवाब मानव जाति के पक्ष में था। सबसे पहले गंगा के मैदानों में जमी बर्फ पिघलने लगी। उसके तुरंत बाद कैलिफोर्निया से लेकर फ्लोरिडा तक बड़े-बड़े इलाके बर्फ की कैद से मुक्त होने लगे। मियामी से रिचर्ड होम्स ने वसंत को फोन लगाया-

बहुत-बहुत बधाइयाँ, वसंत! इंद्र के आक्रमण ने विजय प्राप्त की है। हीरे की धूल तेजी से वायुमंडल से गायब हो रही है। संपूर्ण धरती का वायुमंडल गरम हो रहा है। तुम वाकई बहुत महान् हो, वसंत।"

वसंत के चेहरे पर वैसा ही संतोष झलक रहा था जैसा तमाम कठिनाइयों को पार कर कामयाबी हासिल करनेवाले वैज्ञानिक के चेहरे पर झलकता है। अब साथी वैज्ञानिक भी उसके कार्य की सराहना कर रहे थे। लेकिन भीतर-ही-भीतर उसके मन में गहरी चिंता और अनिश्चितता अब भी बनी हुई थी। यह युद्ध तो उन्होंने जीत लिया, पर असली युद्ध तो अभी आने वाला था। जैसा कि अकसर होता है, किसी लड़ाई में अपनी सारी ताकत झोंक देने के बाद विजेता भी थककर चूर हो जाता है। आदमी थोड़ी देर रुककर अपनी उपलब्धियों के लिए खुद की पीठ थपथपा सकता है; परंतु बड़े संघर्ष अभी आने बाकी थे। के कारण मनुष्य की आबादी घटकर आधी रह गई थी। इंद्र के आक्रमण में बहुत सारी ऊर्जा एवं अन्य आवश्यक संसाधन झोंक दिए गए थे। और अब पिघलती हुई बर्फ से बड़े पैमाने पर बाढ़ आने का खतरा पैदा हो गया था। क्या मनुष्य आगे भी सहयोग की भावना के साथ इन समस्याओं का सामना करता रहेगा? यह सोचते-सोचते वसंत के माथे पर पसीना आ गया। पिछले दो साल में उसे पहली बार पसीना आया था।

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