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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


'चलो भी वसंत, क्या इतना बुरा हाल होने जा रहा है? क्या इस बर्फीले दुश्चक्र से निकलने का कोई रास्ता नहीं है?" राजीव ने पूछा।

"रास्ता है, लेकिन अब मैं चुप रहूँगा, जब तक कि ये पूर्वाग्रही और हठी वैज्ञानिक मुझसे आकर पूछते नहीं। हाँ, दोस्त होने के नाते मैं तुम्हें एक नेक सलाह जरूर दूंगा। भूमध्य रेखा के जितने निकट तुम जा सकते हो, चले जाओ। शायद अगले कुछ महीनों में इंडोनेशिया का मौसम कुछ बरदाश्त करने लायक बचे। मैं तो बानडुंग का टिकट खरीदने जा रहा हूँ।" और वसंत जल्दी से बाहर निकल गया।

मानव अपने आपको धरती का राजा कहता है। लेकिन जिस स्तर पर प्रकृति की शक्ति काम करती है उसके समक्ष मनुष्य की सबसे अच्छी तकनीकी भी बौनी है।

2 नवंबर को मुंबई के लोगों ने एक अद्भुत नजारा देखा। हजारों-हजार पक्षी आसमान में उड़े जा रहे थे। वे सारे-के-सारे पक्षी बहुत ही अनुशासित ढंग से उड़ रहे थे। पक्षी विज्ञानी अपने-अपने घरों से बाहर निकल आए, ताकि इस नजारे को देख सकें और कुछ सीख सकें। उनमें से अनेक पक्षी पहले कभी भी इस दिशा में उड़कर नहीं आए थे।

जल्द ही मुंबई के कौए, गौरैया और कबूतर भी इस झुंड में शामिल हो गए। राजीव ने गौर किया कि वे सभी पक्षी दक्षिण दिशा की ओर जा रहे थे। उन पक्षियों ने अपनी सहज वृत्ति से वह जान लिया था जो मानव अपनी तमाम उन्नत तकनीकों के बल पर भी नहीं जान पाया था। स्पष्ट है कि पक्षियों में समझदारी थी और उन्होंने पिछले साल के अनुभवों से काफी कुछ सीखा था।

आखिरकार दो दिन बाद आसमान में मँडरा रहे मानव निर्मित उपग्रहों ने भी मौसम में किसी अनहोनी का पता लगा ही लिया। 4 नवंबर को एक चेतावनी प्रसारित की गई। वायुमंडलीय बदलाव तेजी से हो रहे हैं और इस बात के संकेत हैं कि अगले चौबीस घंटों के भीतर धरती पर. अनेक जगहों पर भारी बर्फ गिरेगी। गर्व से गरदन अकड़ाए मौसम-विज्ञानियों ने बताया कि उनकी उन्नत तकनीकों के बगैर यह पूर्व चेतावनी नहीं आ सकती थी। उन्हें शायद मालूम नहीं था कि पक्षी काफी पहले ही भूमध्य रेखा के पास सुरक्षित जगहों पर पलायन कर चुके थे। पक्षियों के समान अनुशासन के अभाव में मनुष्य के बीच भगदड़ मच गई।

जापान, कनाडा, अमरीका और तकनीकी रूप से विकसित यूरोपीय देशों का भरोसा था कि पिछली सर्दियाँ बिता लेने के बाद वे इस बार फिर किसी भी तरह की ठंड का सामना कर लेंगे। लेकिन वे इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि उनके बड़े-बड़े शहर भी पाँच मीटर मोटी बर्फ के तले दब जाएँ। नतीजा यह हुआ कि उसके बाद मची भगदड़ में केवल वे ही सौभाग्यशाली लोग बच पाए जो परमाणु हमलों से बचानेवाले बंकरों तक पहुँच सके। पारंपरिक तौर पर गरम देशों में ठंड का कहर कुछ कम था। लेकिन उनमें भी तैयारी के अभाव में काफी जनसंख्या हताहत हो गई।

राजीव शाह भी मद्रास में अपने चचेरे भाई के पास चला गया, लेकिन वहाँ भी ठंड के मारे बुरा हाल था। प्रमोद और कविता को भी अब बर्फ में खेलने में मजा नहीं आता था। अन्य लोगों की तरह वे भी पूछते कि अच्छे पुराने गरम दिन कब आएँगे। लेकिन आम आदमियों को छोड़िए, विशेषज्ञ लोग भी यकीन के साथ कुछ भी बता पाने में असमर्थ थे। विशेषज्ञ लोगों में भी, जो पिछली सर्दी के मौसम को बेहद हलके रूप से ले रहे थे, ज्यादातर लोग मर-खप गए थे। उनमें से केवल एक व्यक्ति ही बच पाया, क्योंकि वह वाशिंगटन छोड़कर मियामी बीच पर आ गया था। वह रिचर्ड होम्स था, जो अमरीकी ऊर्जा बोर्ड का सदस्य था। एक दिन अचानक उसके फोन ने राजीव को आश्चर्य में डाल दिया।

"हाय राजीव! कैसे हो तुम? शर्तिया तुम मद्रास में गरम मौसम का मजा ले रहे हो, जबकि हम यहाँ मियामी में जमे जा रहे हैं।" रिचर्ड मजाकिया बनने की कोशिश कर रहा था। लेकिन राजीव को उसके शब्दों में छिपी चिंता का एहसास हो गया।

"चलो भी रिचर्ड ! वास्तव में तुम वहाँ पर अच्छे-खासे गरम घर में दिन गुजार रहे हो।" उसने कहा।

"मियामी में गरम घर! तुम बचकानी बात कर रहे हो। लेकिन राजीव, मैंने वसंत का पता लगाने के लिए फोन किया है। तुम जानते हो न, वसंत चिटनिस, वह कहाँ गायब हो गया? मुंबई और दिल्ली के तो फोन काम ही नहीं कर रहे हैं।"

"जैसे कि इन शहरों के फोन कभी ठीक से काम करते ही नहीं।" राजीव बड़बड़ाया। उसके बाद उसने रिचर्ड को बानडुंग में वसंत का पता और फोन नंबर दिया।

"मैं जानना चाहता हूँ कि वह इन सबका क्या मतलब निकालता है। हो सकता है, उसके पास इस संकट से निकलने का कोई रास्ता हो।" सूचना के लिए राजीव को धन्यवाद देते हुए रिचर्ड ने कहा।

अब अक्लमंद लोग भी बात करने को तैयार हैं। राजीव ने सोचा। कुछ महीने पहले इसी होम्स ने बुरे दिनों के लिए वसंत की भविष्यवाणी का मजाक उड़ाया था। पर अभी भी देर नहीं हुई थी, बशर्ते कि वसंत सुनने के मूड में हो।

आपके वाशिंगटन के क्या हाल-चाल हैं, रिचर्ड ?" बानडुंग हवाई अड्डे पर रिचर्ड का स्वागत करते हुए वसंत ने पूछा।

"वहाँ तो कोई नहीं बचा। दरअसल हमसे ज्यादा समझदार तो पक्षी ही निकले। उन्होंने समय पर अपने इलाकों को छोड़ दिया।" होम्स ने उत्तर दिया। पिछली मुलाकात की तुलना में इस बार उसके स्वर में वह जोश-खरोश नहीं था। उसे वसंत की प्रतिक्रिया का अनुमान नहीं था, इसलिए वह राजीव को भी साथ लाया था। अब वे चुपचाप वसंत के घर की ओर चले जा रहे थे।

'तुमने भी अपने लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं तलाशी है। तुम नहीं जानते कि सारी दुनिया पर बर्फ कहर बरपा रही है। देखो, इन टेलेक्स और फैक्स संदेशों को देखो।" राजीव ने कागजों का पुलिंदा वसंत को थमा दिया।

वसंत ने उन कागजों को गौर से पढ़ा। अगर परिस्थितियाँ सामान्य होती तो वे सनसनीखेज सुर्खियाँ बन जातीं, पर अब कागजों पर लिखी बातें सामान्य लग रही थीं-

'ब्रिटिश सरकार ने अपनी बाकी बची 40 प्रतिशत आबादी को केन्या पहुँचाने का कार्यक्रम पूरा होने की घोषणा की। इस कार्यक्रम को पूरा करने में दो महीने लगे।'

'मॉस्को और लेनिनग्राद खाली कराए गए रूसी प्रधानमंत्री की घोषणा।'
'हम अपने भूमिगत ठिकानों में एक साल तक जिंदा रहेंगे- -इजराइल के राष्ट्रपति।'

'उत्तरी भारत में सभी नदियाँ पूरी तरह जम गईं, यू.एन.आई.की खबर।'

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