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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


अभी सभी प्रतिनिधि आँकड़ों को जाँचने में ही लगे थे कि एक वैज्ञानिक की आवाज उभरी-"मेरा अंदाजा है कि कल तक यह अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा पार कर जाएगा और कुछ दिन बाद एस.एस.-6 के निकट होगा।" "कितना सही अंदाजा है डॉ. सिंह।" चेयरमैन ने कहा, जो उनसे बहुत ही प्रभावित था। कंप्यूटर के जमाने में गुणा-भाग करने के लिए दिमाग बहुत कम ही खपाया जाता था। ऐसे लोग भी दुर्लभ थे। अगर डॉ. सिंह सौ साल पहले हुए होते तो सारी दुनिया उनका लोहा मानती। पर आज तेजी से गुणा-भाग करनेवाला उनका दिमाग और चीजों को तुरंत भाँपनेवाला उनका मन उनके सहकर्मियों के बीच ईर्ष्या का कारण बन गए थे। हर बार वही काररवाई करने के लिए सुझाव देता था।

हमारे सामने दो विकल्प हैं। पहला विकल्प बहुत ही आसान और सीधा- सपाट है-यू.एफ.ओ. को नष्ट कर दो और उसे भूल जाओ; लेकिन मेरे अंदर का वैज्ञानिक इस काररवाई के खिलाफ है। मैं तो यह जानना चाहूँगा कि यह यू.एफ.ओ. आया किधर से है और इसमें क्या है ? इसे अभी नष्ट कर दें तो हम ये बातें कभी नहीं जान पाएँगे। इसलिए मेरी सलाह है कि हम इसे निकट से देखें। अगर यह बाहरी अंतरिक्ष से आया है तो यह वहाँ के बारे में ढेर सारी जानकारी देगा।" सिंह ने कहा।

"लेकिन प्रेक्षण करने में, वह भी निकट से प्रेक्षण करने में, तो खतरा-ही- खतरा है।" ज्यादातर प्रतिनिधियों के मन में उठ रही शंका को चेयरमैन ने शब्दों में बयान किया।

"लेकिन अगर हमें तरक्की करनी है तो खतरे उठाने ही पड़ेंगे। आखिरकार हम इनसानों ने सुनियोजित तरीके से खतरे उठा-उठाकर ही तो इतनी तरक्की की है। किसी भी तरह हम दूरसंवेदी तकनीकों द्वारा यू.एफ.ओ. की तसवीरें लेने की कोशिश तो कर ही सकते हैं!"

डॉ. सिंह के सुझाव को आर्ट जुमिनो ने तुरंत अपना समर्थन दे डाला, जो स्पेस-सेंसरों का इंचार्ज था। आर्ट जानता था कि एस.एस. श्रृंखला पर तैनात क्रू के सदस्य कुछ दुःसाहसी किस्म के थे और वे इस अवसर का उपयोग सिर्फ प्रेक्षण करने के बजाय कुछ साहसिक करतब करने में लगाएँगे।

सुझाव के अनुसार एस.एस.-6 को निर्देश जारी करते हुए कि यू.एफ.ओ. की, जिसे अब से 'एक्स' कहा जाएगा, सिर्फ तसवीरें ले।

"गुप्ता, तुम खुशकिस्मत हो! हम तो केवल देखते रहे, पर तुम्हें कुछ करने का मौका मिल गया। हम तो केवल हमेशा के लिए देखते ही रहे।" जैकसन बोला, जिसे गुप्ता से ईर्ष्या हो रही थी कि यह रोमांचक काम करने का मौका उसे ही मिला।

"यह तो सब मौके-मौके की बात है, प्यारे ! ऐसा इसलिए हुआ कि मेरी ड्यूटी शुरू होते ही फरमान आ गया।" तसवीरें लेने की तैयारी करते हुए गुप्ता ने कहा। उसने स्पेस कैप्सूल में आवश्यक उपकरण तैनात किए, दो दिनों के लिए भोजन-पानी रखा और आत्मरक्षा के लिए कुछ हथियार भी ले लिये। "फिर मिलेंगे मित्रो, प्यारे-प्यारे अंतरिक्ष जीवों की तसवीरों के साथ!"

कैप्सूल में घुसते हुए गुप्ता ने कहा। वहीं तकेनो ने एस.एस.-6 की कमान संभाल ली।

अंतरिक्ष में एक-एक हफ्ते तक की छोटी-मोटी उड़ानों के लिए स्पेस कैप्सूल एकदम अनुकूल था। यह तेजी से उड़ता था, लेकिन ईंधन की कम खपत करता था।

इसका मिनी कंप्यूटर कमाल का था और उसने कैप्सूल को तुरंत उसी रास्ते पर डाल दिया जिसे गुप्ता चाहता था। 'एक्स' के साथ 18 घंटे बाद मिलन होने वाला था, उससे पहले गुप्ता अपनी आठ घंटे की नींद पूरी कर लेना चाहता था। जैसे ही 'एक्स' उसके टी.वी. स्क्रीन पर प्रकट हुआ, गुप्ता ने अपने कैप्सूल की कक्षा में जरूरी बदलाव किए। एक किलोमीटर की दूरी पर उसने अपना रास्ता बदला और 'एक्स' के चक्कर लगाने लगा, जो अब भी लगातार पृथ्वी की ओर बढ़ रहा था। संयुक्त महासंघ के मानकों के हिसाब से 'एक्स' एक छोटा सा अंतरिक्ष यान था और बाबा आदम के जमाने का प्रतीत हो रहा था। एक बार तो गुप्ता को लगा कि उसने इस यान को पहले भी कभी देखा है। लेकिन कब और कहाँ, उसे याद नहीं आ रहा था। फिर जल्द ही अपने इस खयाल को उसने हँसी में उड़ा दिया और अपने फोटोग्राफी के उपकरण सँभाल लिये।

"क्या अजीब संयोग है!" डॉ. सिंह ने गुप्ता द्वारा भेजी गई तसवीरों को देखते हुए कहा, "क्या आप लोग इस अंतरिक्ष यान को पहचान सकते हैं ?" उसने पूछा। अपने साथियों के हैरान-परेशान चेहरों पर नजर दौड़ाते हुए उसने आगे कहा, "आजकल के नौजवानों को इतिहास की कोई जानकारी नहीं! वरना आप सब इतने आश्चर्यचकित नहीं होते। मित्रो, मैं आपकी शंका को दूर कर दूं। यह अंतरिक्ष यान हमारी अपनी धरती पर बनाया गया था। इसका नाम था पायोनियर- 10। यदि मुझे ठीक से याद आ रहा है तो इसे धरती से वर्ष 1972 में छोड़ा गया था। और आज यह वापस आ रहा है हमारे सौरमंडल से भी परे जाकर।" "इसे क्यों भेजा गया था?" एक सहकर्मी ने पूछा।

सागर की ऊँची-ऊँची लहरों के बीच जब कोई खो जाता है तो वह संदेश लिखकर बोतल में बंद कर अथाह महासागर में छोड़ देता है-इस धुंधली सी उम्मीद में कि शायद किसी दिन कोई इस बोतल को पा लेगा और संदेश को पढ़कर उसे ढूँढ़ता हुआ वहाँ आ पहुँचेगा। इसी इरादे के साथ हमारे पूर्वजों ने धरती के बारे में और इसके तमाम जीव-जंतुओं के बारे में सभी सूचनाओं को एक पट्टी पर अंकित कर और उन्हें पायोनियर-10 में बंद कर अथाह अंतरिक्ष में रवाना कर दिया था।" डॉक्टर ने उत्तर दिया।

फिर डॉ. सिंह ने अपने कंप्यूटर पर कुछ बटन दबाए। उसकी स्क्रीन पर पायोनियर-10 में बंद पट्टी उभर आई। उसने आगे बोलना जारी रखा, "देखिए, यहाँ मैंने अपने अंतरिक्ष अभिलेखागार से वह ऐतिहासिक तसवीर निकाल ली है। इसमें देखिए कि सूचनाओं को कूटबद्ध करने के लिए द्विअंकीय गणित का इस्तेमाल किया गया है। लंबाइयों को इक्कीस सेंटीमीटर वेवलेंग्थवाली इकाइयों में विनिर्देशित किया गया है-रेडियो तरंगों की यही वेवलेंग्थ समूची आकाशगंगा में पाई जाती है। दिशाओं को जाने-पहचाने तरंगों द्वारा दिखाया गया है, जो अपनी आवृत्तियों से पहचाने जाते हैं। आपके सामने गणित, भौतिकी और खगोलशास्त्र की सार्वभौमिक भाषा इस रूप में है जिसे बाहरी अंतरिक्ष में कोई भी बुद्धिमान जीव आसानी से समझ ले।"

"जीव विज्ञान को मत भूलिए, डॉ. सिंह!" एक नौजवान आदमी ने पट्टी पर खुदी स्त्री-पुरुष की नग्न तसवीरों की ओर शरारत भरे अंदाज में इशारा करते हुए कहा।

उसकी बात को अनसुना कर डॉ. सिंह ने परदे पर पायोनियर-10 अंतरिक्ष यान की तसवीरें दिखाते हुए कहा, "आप जैसे मंद बुद्धि लोग भी देख सकते हैं। गुप्ता द्वारा भेजी गई तसवीरें इन तसवीरों से कितना मेल खाती हैं।" बैठक में एकदम खामोशी छा गई। डॉ. सिंह की बात से हर कोई सकते में आ गया। फिर तभी किसी ने वह सवाल पूछने का साहस किया जो सभी के मन में उठ रहा था-"लेकिन अगर पायोनियर-10 को धरती पर लौटने के लिए प्रोग्राम नहीं किया गया था तो फिर यह कैसे लौट रहा है?"

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