कहानी संग्रह >> रोमांचक विज्ञान कथाएँ रोमांचक विज्ञान कथाएँजयंत विष्णु नारलीकर
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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...
कार्टर ने टेलीविजन बंद कर दिया और अपने साथी को फोन लगाया- 'जॉन! मैं कार्टर
बोल रहा हूँ। आज सीनेट में क्या हुआ? मैं केवल मुख्य समाचार हो सुन पाया।"
"हम सभी आज से ही इस महान् राष्ट्र के बेरोजगार लोगों में शामिल हो गए हैं।"
जॉन ने उत्तर दिया, "सीनेट ने हमारे सभी परीक्षणों को आज से ही रोक दिया है।
हमारे अनुसंधानों को मिलनेवाली आर्थिक सहायता बंद कर दी है और इस अनुसंधान को
जनता के हितों के खिलाफ घोषित कर दिया है। एक समिति पाँच साल बाद हालात का
जायजा लेगी।"
पाँच साल! हे भगवान् !" कार्टर हैरानी से चिल्लाया, "तो अब तुम क्या करने जा
रहे हो?"
"मैं शायद हैमबर्गर की दुकान खोल लूँ। इससे मैं लोगों के ज्यादा करीब आ
जाऊँगा। जैसे कि सीनेटर हम वैज्ञानिकों से कराना चाहते हैं!" जॉन अभी तक उन
शब्दों की गहराई से उबर नहीं पाया था। कार्टर को कोई अंतर महसूस नहीं हुआ।
रिसीवर रखकर कार्टर तसवीर के टुकड़ों को जोड़कर पूरी तसवीर बनाने की कोशिश
करने लगा। यह अनुसंधान ही उसके जीवन को चलानेवाली मुख्य प्रेरणा-शक्ति का काम
कर रहा था। इसी के चलते वह हारलेम छोड़कर प्रयोगशाला के निदेशक पद पर आया। और
अब वह भी उससे छिनता दिख रहा था। इस रास्ते पर बड़ी-बड़ी रुकावटों से उसका
सामना हुआ, लेकिन अपनी मजबूत इच्छा- शक्ति के बल पर वह उनसे पार पाता गया। पर
अब लगता था कि भले ही थोड़ी देर के लिए सही, वह शक्ति उससे छिन गई।
तभी फोन की घंटी घनघना उठी। शायद कोई और वैज्ञानिक साथी उसके कंधों पर सिर
रखकर रोना चाहता था। उसने रिसीवर उठाया और अपनी पहचान बताई। लेकिन जब फोन
करनेवाले ने अपनी पहचान का खुलासा किया तो रिसीवर कार्टर के हाथ से लगभग छूट
ही गया था।
कर्नल इलया मोरोविच ब्रुसेल्स में रूसी कॉन्सुलेट में तैनात थे। करीब दो दशक
पूर्व वे के.जी.बी. के एक जाने-माने एजेंट थे। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के
बाद नई सरकार ने उनकी विलक्षण प्रतिभा के लिए उसके अनुरूप काम ढूँढ़ लिया था।
कर्नल इलया शराब, औरतों और शतरंज का भी शौकीन था। किसी भी पार्टी में उसका
रंग जम जाता था और इस उन्मुक्त विचारोंवाले तथा मिलनसार फर्स्ट सेक्रेटरी को
देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उसका अतीत दुःखों से भरा रहा होगा। जहाँ तक
शतरंज का संबंध है, वह दुनिया के शानदार शतरंज खिलाड़ियों के संपर्क में रहता
था।
पर कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था कि इलया ने इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर
हार्डवेयर में वास्तविक दक्षता प्राप्त की थी, यहाँ तक कि यूरोपीय समुदाय में
रूसी राजदूत भी इलया की इस विशेषता से बेखबर था।
आज राजदूत ने स्वयं इलया को फोन लगाया- "तुम्हें तुरंत मॉस्को तलब किया गया
है।" 'जी हाँ, श्रीमान।" इलया ने उत्तर दिया।
राजदूत ने उसके पूछे बिना ही बताया, "तुम्हें अभी जाना होगा, तुरंत। तुम्हें
वहाँ ले जाने के लिए एक विशेष जहाज का प्रबंध कर दिया गया है।"
तभी न जाने कहाँ से सादे कपड़ों में दो आदमी प्रकट हुए। इलया ने अंदाजा लगाया
कि वे गार्ड रहे होंगे, जिन्हें राजदूत ने भेजा है।
"ये आदमी तुम्हें तुम्हारे घर तक ले जाएँगे, जहाँ तुम अपना सामान पैक करोगे।
और फिर ये तुम्हें हवाई अड्डे तक ले जाएँगे। मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ
हैं।" राजदूत ने अपनी बात पूरी की।
इस बात का कोई जिक्र नहीं कि उसे क्यों तलब किया गया है और कितने समय तक उसे
मॉस्को में रुकना पड़ेगा। शायद स्वयं राजदूत को भी इस बारे में कुछ पता नहीं
था।
यह तो बिलकुल पुराने समय की घटना की तरह थी, जब के.जी.बी. सक्रिय होती थी।
अगर सन् 1985 में इस तरह का कोई बुलावा आया होता तो वह अपने भविष्य को लेकर
गहरी चिंता में पड़ जाता; पर आज उसे कुछ जिज्ञासा हो रही है। चियांग तेंग ने
अभी अपनी उम्र के तीस पड़ाव ही पार किए होंगे। लेकिन अभी से वह चीन के परमाणु
ऊर्जा कार्यक्रम में प्रतिभाशाली वैज्ञानिक के तौर पर अपना सिक्का जमा चुका
था। परमाणु तकनीकी में कई संवेदनशील परीक्षणों में उसका सहयोग था। उसे देश के
बाहर जाने की इजाजत कभी-कभार ही मिलती थी।
यही कारण था कि आज जब उसे देश के बाहर जाने का आदेश मिला तो उसके आश्चर्य का
ठिकाना न रहा। उसे किसी विदेशी मुल्क में जाने को कहा गया। पर मुल्क का नाम
नहीं बताया गया। केवल यही कहा गया कि इसका खुलासा उसके वहाँ पहुँच जाने के
बाद किया जाएगा और तभी उसे उसके मिशन की जानकारी दी जाएगी।
गनीमत थी कि तेंग के चेहरे पर एक समान भाव रहते थे। इससे उसके भीतर उमड़ रही
भावनाओं और उत्तेजनाओं का पता नहीं चला। और फिर परमाणु प्रयोगशाला में
रोज-रोज एक ही ढर्रे से चलनेवाले काम से वह उकता भी गया था। नाभिकीय तकनीकी
पर कड़े नियंत्रणों और अंतरराष्ट्रीय निगरानी के चलते उसे अपने ज्यादातर
उत्साहजनक विचार को ताक पर रख देना पड़ा था। शायद अब उसकी प्रखर बुद्धि को
असली चुनौती मिले।
पाँच कोनोंवाली मेज एक गोलाकार कमरे के बीचोबीच सजी हुई थी। इसके इर्द-गिर्द
पाँच लोग बैठे थे। जाहिर है कि वे पाँचों किसी खास मिशन के लिए इकट्ठा हुए
थे। उनकी वार्ता का कोई मुखिया नहीं था, इसलिए उन पाँचों में जो चाहे अपने
आपको मुखिया मान सकता था। फिलहाल वे पाँचों कुछ पढ़ने में मगन थे। प्रत्येक
के सामने एक ही तरह की पुस्तिका रखी हुई थी।
सबसे पहले सरदारजी ने पढ़ना समाप्त किया। पुस्तिका अपने सामने पटकते हुए वे
बड़बड़ाए, "क्या कमाल का आइडिया है!"
"बिलकुल मेरी चाय की प्याली की तरह!" उत्तेजित स्वर में विलियम बोला, जिसने
सरदारजी के बाद पढ़ना समाप्त किया। उसके बाद कार्टर पैटरसन, इलया और सबसे अंत
में तेंग ने पुस्तिका समाप्त की।
"लगता है कि विज्ञान की कल्पनाएँ सच में साकार होने जा रही हैं ! तुम क्या
सोचते हो, इलया?" कार्टर ने पूछा और इलया मोरोविच ने सहमति में सिर हिलाया।
केवल चियांग तेंग का चेहरा ही सपाट बना रहा, जब उसने यह कहा, "ठीक-ठाक ही
लगता है।"
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