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रोमांचक विज्ञान कथाएँ

जयंत विष्णु नारलीकर

प्रकाशक : विद्या विहार प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3321
आईएसबीएन :81-88140-65-1

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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं विज्ञान लेखक श्री जयंत विष्णु नारलीकर द्वारा लिखित ये विज्ञान कथाएँ रहस्य, रोमांच एवं अदभुत कल्पनाशीलता से भरी हुई है...


किसी-न-किसी काररवाई पर फैसला लेना जरूरी था, पर काररवाई किस रूप में की जाए? जमीन के नीचे बंकर बनाने और उनमें छिपने जैसे रक्षात्मक उपायों को विशेषज्ञों ने एक सिरे से नकार दिया। तकनीकी, जीव वैज्ञानिक और राजनीतिक रूप से ऐसा करना व्यावहारिक नहीं था। इसलिए एक ही रास्ता बचता था कि पलटकर धूमकेतु पर ही वार किया जाए। गंभीर विचार-विमर्श करने के बाद विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हुए कि क्या किया जा सकता है। धूमकेतु दत्ता को धक्का देकर अपने मार्ग से कुछ विचलित किया जा सकता था।

विशेषज्ञों ने गणना करके हिसाब लगाया कि धरती पर उपलब्ध तमाम विनाशक नाभिकीय हथियारों की जरूरत पड़ेगी, तभी उस धूमकेतु को अपने पथ से बाल भर हटाया जा सकेगा। पर उसके लिए सही जगह पर, सही दिशा में और एकदम सही समय पर बेहद विशालकाय एटमी धमाका करना पड़ेगा, तभी यह तरकीब काम करेगी, वरना इन तमाम एटमी हथियारों को किसी अंतरिक्ष यान में लादकर इस तरह रवाना किया जा सकता कि वह धरती की ओर बढ़ रहे धूमकेतु को रास्ते में ही रोक लें। तब फिर रिमोट कंट्रोल से उन हथियारों में एक साथ धमाका कराया जा सकता है। साथ ही विशेषज्ञों ने यह चेतावनी भी दी कि सफलता की बहुत कम गुंजाइश है-अगर दोनों का समय पर मिलन न हो पाया तो? सारी-की-सारी कवायद पर पानी फिर जाएगा। परिणाम कुछ भी हो सफलता या असफलता, पूरी गोपनीयता बरतनी जरूरी थी। आखिरकार पूरी काररवाई के लिए टाइम-टेबल तय हो गया-

10 अक्तूबर : एटमी हथियारों से लदे अंतरिक्ष यान को रवाना किया जाएगा, बशर्ते कि तब तक धूमकेतु प्राकृतिक कारणों से नष्ट न हो गया हो या अपने पथ से विचलित न हो गया हो।
15 नवंबर : धूमकेतु के साथ यान का मिलन और हथियारों के जखीरे में धमाका।
15 दिसंबर : अगर सारी कवायद असफल रही तो इस दिन धूमकेतु धरती से टकरा जाएगा और अगर सफल रही तो इस दिन धूमकेतु धरती के निकट सुरक्षित दूरी से आगे निकल जाएगा।

इसके अलावा इस प्रयास की सफलता इस बात पर भी निर्भर थी कि धूमकेतु कितना भारी था। कोई भी इसका अनुमान नहीं लगा सका। प्रत्येक को बस उम्मीद थी कि धूमकेतु बहुत ज्यादा भारी न हो।

"क्या आपको वास्तव में विश्वास है कि हम इसमें सफल होंगे?" दत्ता दा ने सर जॉन मैकफर्सन से पूछा। पिछले एक हफ्ते में दोनों के बीच पक्की दोस्ती हो गई थी।

श्रीमान दत्ता, मैं अपना जवाब पूरी ईमानदारी से दूंगा। 15 दिसंबर तक मैं क्रिसमस के लिए कोई भी उपहार नहीं खरीदूंगा।"

सम्मेलन के बाद दो सप्ताहों तक दत्ता दा ब्रिटिश द्वीपों की सैर करते रहे। वहाँ की वेधशालाओं का भ्रमण करने और पेशेवर व शौकिया खगोलविदों से बातचीत करने में उन्हें बहुत आनंद आया। कोलकाता वापस लौटने पर भी उनके मित्रों, सामाजिक नेताओं, स्वयंसेवकों, विद्यार्थियों और सामान्य जन ने उनका बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। फूल-मालाओं से लदे और पत्रकारों के सवालों की बौछार का सामना करते हुए वे अपनी कार तक गए, जो बाहर उनका इंतजार कर रही थी।

घर पहुँचकर उन्होंने देखा कि एक पंडाल के नीचे अलग ही प्रकार की भीड़ जमा है। उन्होंने प्रश्नसूचक दृष्टि से इंद्राणी देवी की ओर देखा। वास्तव में वह जानती थीं कि दत्ता दा को भीड़-भाड़ पसंद नहीं। कुछ परेशान-सी दिखती इंद्राणी देवी ने कारण बताया, "मैंने एक यज्ञ का आयोजन किया है और तुम्हें अशीर्वाद देने के लिए पंडितों को बुलाया है।"

इतना कहकर इंद्राणी देवी ने शिवाजी बाबू की ओर देखा, जो उनके पति यानी दत्ता दा के छोटे भाई थे। शिवाजी बाबू ने खखारकर गला साफ किया और बोले, "जब से आपने धूमकेतु को खोजा है तब से हम सभी बहुत परेशान हैं। गुरुजी ने हमें सुझाव दिया है कि धूमकेतु की बुरी आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करवा लें। हम सभी आपका इंतजार कर रहे हैं कि आप भी यज्ञ करें।"

"क्या मैं जान सकता हूँ कि इस ताम-झाम का खास फायदा क्या है?" बाहर से दत्ता दा शांत दिख रहे थे।

"इससे जो धूमकेतु आपने खोजा है, वह धरती पर कोई बुरा असर नहीं डालेगा।"

इस बात पर दत्ता दा अपना आपा खो बैठे-"क्या तुम जानते नहीं कि यह सब अंधविश्वास है ? इस सबका पुराने जमाने में महत्त्व रहा होगा, जब आदमी नहीं जानता था कि धूमकेतु क्या है। आज आधुनिक समय में ये सब बेकार की चीजें हैं। धूमकेतुओं के बारे में आज सारी जानकारी है कि वे क्या हैं ! उनकी गति के बारे में गणित की गणनाओं द्वारा सटीक भविष्यवाणी की जाती है और आँकड़ों से पता चलता है कि धूमकेतुओं के आने और धरती पर मची तबाहियों के बीच कोई संबंध नहीं है।

लेकिन तुम लोगों को यह सब बताना बेकार है। तुम और तुम जैसे लोग विज्ञान की प्राथमिक किताबें भी कभी नहीं पढ़ते हो।

शिवाजी बाबू ने धीरे से कहा, "मगर हमारे समझदार पूर्वजों ने ऐसे यज्ञों का विधान किया है।"

"शिवाजी बाबू, कभी-कभी मैं महसूस करता हूँ कि ऐसे रीति-रिवाजों का आँख मूंदकर पालन करने से हम अपने पुरखों के साथ बड़ा अन्याय करते हैं। उपनिषदों के जमाने में जाओ तो तुम्हें पता चलेगा कि उनमें भी हर चीज के बारे में प्रश्न पूछा जाता है। यही बात आधुनिक विज्ञान में है। उपनिषदों के रचयिता प्रकृति के बारे में जानना चाहते थे, ब्रह्मांड के बारे में जानना चाहते थे और आस्था के आधार पर कुछ भी स्वीकार नहीं करते थे। वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण न जाने कब और कहाँ लुप्त हो गया। इसकी कीमत हम आज भी चुका रहे हैं; लेकिन तुम लोगों से बहस करने का क्या फायदा! मैं अपना जवाब सीधे ही दे देता हूँ-नहीं, मैं तुम लोगों की इस बेवकूफी भरी पार्टी में शामिल नहीं होना चाहता, क्योंकि मैं नहीं मानता कि इससे कुछ लाभ होगा।"

दत्ता दा पैर पटकते हुए अपने अध्ययन-कक्ष में चले गए, जहाँ उन्हें शांति मिलती थी।

लंदन से लौटने के बाद दत्ता दा का सर जॉन मैकफर्सन के साथ नियमित पत्र-व्यवहार चलता रहा। अब वे एक-दूसरे की विद्वत्ता के प्रशंसक मात्र नहीं रह गए थे, बल्कि पक्के दोस्त बन गए थे। सर जॉन दत्ता दा के वैज्ञानिक नजरिए की सराहना करते थे तो दत्ता दा सर जॉन के अनुशासन और कार्यकुशलता के कायल उनके व्यवहार में कभी भी प्रोजेक्ट लाइट ब्रिगेड का जिक्र नहीं होता था।

अलबत्ता सर जॉन इस परियोजना की प्रगति के बारे में कभी-कभार गुपचुप इशारा जरूर करते थे, जो दत्ता दा की समझ में आ जाता था।

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