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नटखट बन्दर

रामेश बेदी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 3212
आईएसबीएन :81-267-0997-9

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इसमें वनों में रहनेवाली वन्य जीव-जन्तुओं की प्रजाति में एक बन्दर जाति का वर्णन किया गया है

natkhat bandar by Ramesh Bedi o.k.

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रामेश बेदी के अनुसार इंसान के सम्पर्क में सबसे अधिक मदारी बंदर आता है। मदारी की डुगडुगी पर नटखट बंदर को तमाशबीनों का मनोरंजन करते देखा जाता है। उधर आज़ाद विचरने वाले बंदर घरों, स्कूलों, दफ्तरों में ऊधम मचाने के लिए मशहूर हैं।

बंदर की विभिन्न प्रजातियों की दिलचस्प और गहन जानकारी देनेवाली इस पुस्तक में श्री बेदी ने प्रतिपादित किया है कि लंगूर का मुँह काला होता है और उसकी गाल में ताजा़ आहार जमा करने की थैली नहीं होती जैसी कि बंदर के गाल में होती है। श्रीराम का अन्नय भक्त होने से हनुमान के प्रति लोक मानस में अगाध श्रद्धा है। छोटे गाँव से महानगर तक सभी जगह स्थापित इसकी चालीसा लाखों प्रतिमाओं को करोड़ों श्रद्धालु पूजते हैं। हनुमान चालीसा के पाठ से स्तवन करते हैं।

यह भी कहा जाता है कि प्राणिमात्र के दुख-दर्दों को दूर कर उन्हें सुख की राह बताने के लिए भगवान बुद्ध अपने तीस पूर्वजन्मों में बंदर के रूप में पैदा हुए थे।
 पूँछवाले और बिना पूँछवाले बंदरों की जातियों का इस पुस्तक में सचित्र परिचय दिया गया है। 130 सादे चित्रों के अलावा और 15 रंगीन फोटो भी इसमें शामिल किए गए हैं।
बिना पूँछवाले बंदर-हुल्लक, ओरङ्-उतान, चिम्पांजी, गोरिल्ला-का दिलचस्प जीवन परिचय पुस्तक में दिया गया है।

एक
इन्सान और बन्दर

बन्दरों की 127 जातियां : पूंछ वाले बन्दर (monkeys), बिना पूंछ वाले बन्दर (apes), लैमूर (lamur) और इन्सान नरवानर वर्ग (primate order) में रखे गए हैं। बिना पूंछ वाले बन्दरों को विपुच्च-वानर कहते हैं। ये कुछ-कुछ बन्दरों के सदृश दिखाई देते हैं। मुख्य अन्तर  है कि इनमें पूंछ नहीं होती। ये प्रायः अधिक बड़े होते हैं। टांगों की तुलना में इनकी बांहे लम्बी होती हैं। ये अधिक बुद्धिमान् होते हैं। चिम्पान्ज़ी हुल्लक, गोरिल्ला ओरङ्-उतान सब विपुच्छ वानर हैं।
विश्व में बन्दरों की लगभग 125 जातियां हैं। तेईस जून, 2002 को प्रकाशित समाचार के अनुसार ब्राज़ील की नेशनल इस्टिट्यूट फ़ौर अमेज़न रिसर्ज में कार्यरत एक डच वैज्ञानिक मारे वान रूसमालेन ने ब्राज़ील के मध्य अमेज़न में छोटी बिल्ली के आकार की बन्दर की दो नई जातियों को खोजा है। इनके नाम हैं : काल्लिचेबुस बेनार्दि (callicebus bernardi) और काल्लिचेबुस स्तेफेनाशि (callicebus stephenashi)।
निवास : बन्दर उष्णदेशीय वनों में पाए जाते हैं। अफ्री़का में खुली घास भूमियों में और जंगलों में भी रहते हैं। जापान के पहाड़ों पर और हिमालय में तरुहीन मैदानी प्रदेश में मिल जाते हैं। यूरोप में बन्दर की एक जाति ने अपना घर बना लिया है। औस्ट्रेलिया और ऐंटार्कि्टका महाद्वीपों में कोई बन्दर नहीं मिलते।
दो वर्ग : प्राणिशास्त्र के विद्वानों ने बन्दरों को दो वर्गों में रखा है। उत्तर और दक्षिण अमरीकी बन्दरों को नई दुनिया के बन्दर (New World monkeys) कहते हैं। अफ़्रीका एशिया और यूरोप में पाए जाने वालों को पुरानी दुनिया के बन्दर (Old World monkeys) कहते हैं।

आहार: दोनों वर्गों के बन्दर बहुत कुछ एक जैसे दिखाई देते हैं और उनके क्रिया कलाप भी एक जैसे होते हैं। उनमें से अधिकतर एक जैसा आहार खाते हैं-फल, दृढ़फल (nuts) बीज, पत्ते, फूल कीड़े, पक्षियों के अण्डे, मकड़ियां और कभी-कभी छोटे स्तनपायी।
शरीर रचना : दोनों वर्गों के शरीर की रचना में कुछ अन्तर होते हैं। नई दुनिया में बहुत से बन्दर से बन्दरों के नथुने गोल होते हैं और छोटी थूथनियों पर दूर-दूर लगे रहते हैं। पुरानी दुनिया के बहुत से बन्दरों के नथुने वक्र (curved) होते हैं और थूथनी पर पास-पास लगे रहते हैं। पुरानी दुनिया के बन्दरों के पिछाड़ों पर मजबूत खाल की गद्दियां होती हैं। जब ये खाने के लिए या नींद लेने के लिए बैठते हैं तब ये गद्दियां आरामदायक होती हैं। नई दुनिया के बन्दरों में इस प्रकार का गद्दा नहीं बना होता।

गालों में थैलियां : पुरानी दुनिया के कुछ बन्दरों की गालों में थैलियों होती हैं। इनमें ये कुछ अतिरिक्त आहार जमा कर लेते हैं जिसे बाद में खाते हैं। नई दुनिया के किसी बन्दर में गाल की थैलियां (मुख कोश) नहीं होतीं।
पूंछ के कार्य : नई दुनिया के बन्दरों में परिग्राही (prehensile) पूंछ होती है। यह चीज़ों को पकड़ सकती है और बन्दर के भार को सम्हाल सकती है। खाते हुए शाखा के इर्द-गिर्द पूछ को मजबूती से लपेटकर नीचे लटकता हुआ, पूंछ पर झूलता हुआ झूल सकता है। पूंछ पर झूलता बन्दर एक शाखा से दूसरी शाखा पर जा सकता है।

हाथ की रचना और कार्य : कुछ बन्दरों के इन्सान जैसे हाथ होते हैं। खाते समय पकड़ने के लिए और सफर करते हुए ये सहायक होते हैं कुछ बन्दरों में अंगूठे बिलकुल नहीं होते बहुतों में होते हैं जो चीज़ों को पकड़ने में मददगार होते हैं। अफ़्रीका के गुहनोहन्स और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका के कैपुचिन बन्दर अंगूठों को घुमाकर अपनी कुछ अन्य उंगलियों को छू सकते हैं। अंगूठों और उंगलियों के सिरों से वे आहार के कतरों को उठा सकते हैं। चढ़ते समय शाखाओं को पकड़ने में अंगुठे सहायक होते हैं। नई दुनिया के कुछ बन्दर अपने अंगूठों को इस तरह नहीं इस्तेमाल कर सकते। उंगलियों और हथेलियों के बीच चीज़ों को दबाकर उठाते हैं।

तरुवास : बहुत-से बन्दर वृक्षों पर रहते हैं। चढ़ने, झूलने और छलांग लगाने में उनके छरहरे, हलके शरीर अनुकूल होते हैं। मज़बूत पेशियों वाली लम्बी बाहों और टांगों से सुगमता से वृक्षों के बीच क्रिया-कलाप कर सकते हैं।
अधिकतर बन्दर दिन में क्रियाशील रहते हैं। वृक्षों पर चढ़ते हैं, शाखाओं से झूलते हैं, कूदते फांदते हैं; दोस्ताना बातें करते हैं, किलकारियां मारते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं, आपस में झगड़ते हैं।

दक्षिण अमेरिका का केवल पूरुकली बन्दर अन्धेरा होने पर घूमने निकलता है। ये बन्दर अकसर जोड़ों से घूमते हैं।
सबसे ऊँचा शोर करने वाला : नई दुनिया का सबसे बड़ा बन्दर हाऊलर मन्की (howler monkey) है। बन्दरों में शायद सबसे ऊँची आवाज़ नर हाऊलर बन्दरों की होती है। हर सुबह इनका उत्क्रन्दन जंगल में गूंजता है। गरजकर वे दूसरे बन्दरों को बताना चाहते हैं कि हम यहां हैं। अपने घोष से ये दूसरे हाऊलरों को सावधान कर देते हैं कि हमारे इलाक़े से बाहर रहें। संस्कृत में इसे रावि-कपि नाम दिया गया है जिसका अर्थ शोर मचाने वाला (रावी) बन्दर (कपि) है।
दक्षिण अमेरिका में घने वर्षा-वनों के ऊंचे वृक्षों में गरुड़ों (eagles) और बाजों (hawks) के अलावा इनके कुछ ही दुश्मन हैं। बन्दरों का सबसे ख़तरनाक दुश्मन इन्सान है जो खाने के लिए उनका शिकार करता है।
 
तमतमाता लाल चेहरा, गंजा सिर : अपर अमेज़ोनिया के लाल वाहकरी (red uakari) बन्दर का चेहरा लाल और सिर गंजा होता है। इसलिए इसे लाल वाहकरी (red uakari) कहते हैं। इसके सिर और शरीर की लम्बाई छियालीस सेण्टीमीटर तथा पूंछ की लम्बाई अठारह सेण्टीमीटर होती है। खतरा देखने पर यह अपने झबरे फर को फुला लेता है; इसका चेहरा चमकीला लाल हो जाता है।
अपर अमेज़ोनिया में नदी-तल के जंगलों में रहते हैं। नई दुनिया में केवल ये ही ऐसे बन्दर हैं जिनकी पूंछें छोटी होती हैं, क्योंकि इनके आवास में अकसर बाढ़ आई रहती है, ये अपनी अधिक ज़िन्दगी वृक्षों में गुजारते हैं। छलांग लगाने में माहिर नहीं होते। अपर वन-वितान की मज़बूत शाखाओं पर चारों टांगों से चलते हैं। खाने के लिए इनका शिकार किया जाता है। ये दुर्लभ हो गए हैं।

शैशव की मौज और बेफ़िक्री : इन्सान के समान, अधिकतर बन्दरों का एक बारी में एक बच्चा होता है। असहाय नवजात को मां से गरमी मिलती है और आहार मिलता है। मां उसे इधर-उधर ले जाती है। ज़िन्दगी से आरम्भिक दिनों में या सप्ताहों में, मां जब आहार की तलाश में इधर-उधर जाती है तब यह उसके पेट के रोओं के साथ चिपका रहता है। बाद में शिशु बन्दर अधिक साहसी और खेलपसन्द बन जाता है। यह मां की पीठ पर चढ़ा रहता है या शैशव की मौज और बेफ़िक्री में उछल-कूद करता रहता है। कभी-कभी यह टोली के किसी अन्य बन्दर की पीठ पर चढ़ जाता है। सभी बन्दर उसके साथ अपनेपन का व्यवहार करते हैं।
बन्दरों के झुण्ट छोटे-बड़े हो सकते हैं। कुछ बन्दर जोड़ों में रहते हैं, वे अपने संगियों के साथ ज़िन्दगी भर रह सकते हैं। एक के बाद दूसरी सन्तान पैदा कर सकते हैं।

कुछ बन्दर बड़े दलों में रहते हैं, जिनमें वयस्क नर, मादा और बच्चे होते हैं। कुछ दलों में एक नर और बहुत-सी मादा होती हैं। कुछ दलों में एक ताक़तवर नर नेता का कार्य करता है और दूसरों की रक्षा करता है।
मटके जैसे बड़ी तोंद : शक्ल सूरत में बन्दर विविध प्रकार के होते हैं। आकार के अनुसार उनमें कुछ विशेष योग्यताएं भी आ जाती हैं। दक्षिण अमेरिका के छोटे बालों वाले रोमश वानर (wooly monkey) का मटके जैसा बड़ा पेट होता है। इस बड़े बन्दर को पुर्तगाली में बर्रिगुदो (barrigudo) कहते हैं जिसका अर्थ है-महोदर (बड़ा पेट)। उसका संस्कृत नाम तुन्दिल वानर है। ये जीव बड़े परिमाण में फल और पत्ते खाते हैं।

नौ मीटर दूरी की छलांग : कुछ बन्दर चंचल नहीं प्रतीत होते। वे शान्त और धीर रहते हैं। एशियाई लंगूर जैसे और अफ़्रीकी कोलोबुस जैसे पत्ते खाने वाले बन्दर हर रोज़ कई घण्टे बैठे हुए अपना भोजन पचाते हैं। लेकिन, जब ये क्रियाशील होते हैं तब आश्चर्यजनक दूरी तक छलांगें लगा लेते हैं। कोलोबुस बन्दरों को एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाने के लिए नौ मीटर की दूरी तक कूदते देखा गया है। इस सुन्दर बन्दर को संस्कृत में चारुकपि कहते हैं जिसका अर्थ सुन्दर (चारु) बन्दर (कपि) है।
गिब्बन-सबसे अधिक फुर्तीले : सभी नरवानरों (primates) में- वास्तव में, सभी स्तनपोषितों में-गिब्बन सबसे अधिक फुर्तीले होते हैं। इनके हाथ शाखा को पकड़ते नहीं। ये हाथों को हुक के समान इस्तेमाल करते हैं। शाखा में हाथों को अटका कर झूलते हुए दूसरे पेड़ पर पहुंच जाते हैं। उसी तरह जैसे कि डण्डे पर झूलता हुआ सरकस का कलाकार एक डण्डे से दूसरे डण्डे पर पहुंच जाता है। एक ही झूल (swing) में ये तीन मीटर की दूरी तय कर लेते हैं।

पवित्र बन्दर : भारत में बन्दर और लंगूर के प्रति जनमानस पवित्र भावना रखता है। जापानी सरकार द्वारा हिमवानर पूर्णतया परिरक्षित है। यह जापानियों की धार्मिक आस्था का भी परिचायक है। यही बन्दर है जो भगवान् बुद्ध के इस ज्ञान के प्रतीक है : किसी की बुराई मत देखो। किसी की बुराई मत सुनो। किसी की बुराई मत करो।
भारतीय नरवानरों (primates) का वर्गीकरण : नरवानरों के दो मुख्य उपवर्ग (sub-orders) हैं। एक के अन्तर्गत इन्सान, विपुच्छ, वानर (apes) और बन्दर हैं। दूसरे के अन्तर्गत लेमूर और उनके रिश्तेदार हैं। इन्सान-सदृश बड़े विपुच्छ वानरों में से भारत में कोई भी नहीं पाया जाता। गोरिल्ला और चिम्पान्ज़ी अफ़्रीका में रहते हैं। ओरङ्-उतान बोर्नियो और सुमात्रा के जंगलों में। विपुच्छ वानरों के कुनबे में से केवल गिब्बन वानरों की एक जाति, हुल्लक गिब्बन है जो हमारे देश में असम और चिटागोंग में पाई जाती है। सभी विपुच्छ वानरों के समान इनकी बाहें ख़ूब विकसित होती हैं जो टांगों की तुलना में बहुत अधिक लम्बी होती हैं, इनमें पूंछ तो होती ही नहीं।

पुरानी दुनिया के बन्दरों को चीनोमोर्फ़ा (cynomorpha) समूह में श्रेणीबद्ध किया है। इनकी बांहों और टांगों की लम्बाई लगभग बराबर होती है। इनकी बांहों और टांगों में तुलनात्मक लम्बाई असंगत (disproportionate) नहीं होती। इनकी पूंछ पर्याप्त लम्बी, छोटी या छोटी रहकर महज ठूंठ बन जाती है। जिन जातियों में पूंछ जितनी लम्बी होती है उनकी उतनी ही तरुवासी आदत होती है। इन प्राणियों में पूंछ सन्तुलन बनाए रखने का आवश्यक अंग हैं। हुल्लक गिब्बन के अलावा भारत में कोई अन्य बन्दर पूंछ के बग़ैर नहीं होता।

दो उपकुल : भारतीय बन्दर एक ही कुल (family) में रखे गए हैं जिसे चेर्कोपिथेकिदी (Cercopithecidae) कहते हैं। इनके दो उपकुल (Subfamilies) हैं : चेर्कोपिथेकिनी (Cercopithecinae) मकाक और कोलोबिनी (Colobinae) लंगूर। लंगूर के मुक़ाबले मकाक शरीर के ढांचे की बनावट से अलग पहिचाना जा सकता है, जो मज़बूत गिट्टा और ठोस होता है। इसकी तुलना में लंगूर का ढांचा ऊंचा, छरहरा और शानदार होता है। इसके अलावा मकाक के गाल में थैलियां (Cheek pouches) होती हैं। लंगूरों में नहीं होतीं। जिस भोजन को यह तुरन्त उपभोग नहीं कर सकता वह आमाशय (Stomach) के अन्दर अलग से बनी विशेष थैली में चला जाता है। दोनों समूहों में भेद करने के लिए ये सामान्य बातें सहायक हैं।

   



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