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दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2878
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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राम कथा पर आधारित उपन्यास...

कोई और समय होता, तो वे स्वयं भोजपत्र तथा लेखनी लेकर जुट जाते और अधिकाधिक ग्रन्थों की प्रतिलिपियां तैयार कर लेते; किंतु इस समय वह संभव नहीं है। आश्रम में इतने अभ्यागत आकर ठहरे हुए हैं। यदि गौतम स्वयं ग्रन्थों की प्रतिलिपियां तैयार करने में लग गए, तो इन अभ्यागत ऋषियों, आचार्यों और ब्रह्मचारियों की देखभाल कौन करेगा? इन अभ्यागतों के साथ चर्चाएं-वार्ताएं होंगी, चिन्तन-मनन होगा, यज्ञ होंगे...। गौतम ग्रन्थों की प्रतिलिपियों के लिए अधिक समय नहीं दे सकते। यह काम उन्हें आश्रम के आचार्यों तथा ब्रह्मचारियों पर ही छोड़ना होगा। कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का कार्य अवश्य वे अपने हाथ में लेंगे...।

संध्या होते-होते, महाराज सीरध्वज जनक भी सम्मेलन में भाग लेने के लिए आ पहुंचे। उनके आने से प्रसन्नता तो सबको ही हुई थी, किन्तु गौतम विशेष रूप से हर्षित थे। सीरध्वज मिथिला के सम्राट् थे, उनके इस प्रकार सम्मेलन में सम्मिलित होने का अर्थ था-धन तथा रक्षा की दृष्टि से आश्रम की पूरी निश्चिंतता। प्रत्येक ऋषि को अपने आश्रम के लिए, इस प्रकार के राजाश्रय की आकांक्षा बनी रहती थी। किंतु, राजाश्रय के कारण, आश्रम में शासन के अवांछित हस्तक्षेप तथा आश्रम के कुलपति की स्वतंत्रता पर राज-अंकुश लगने का जो भय होता है, वह यहां नहीं था; सीरध्वज जनक शासक होने के साथ-साथ स्वयं भी ऋषि थे। उनका इस प्रकार आना, गौतम के लिए अत्यन्त आनन्द का विषय था। इससे भी बढ़कर, आनन्द की एक और सूचना सीरध्वज लाए थे। गौतम का सीरध्वज के माध्यम से भेजा गया निमंत्रण देवराज इंद्र ने स्वीकार कर लिया था, और वे रात्रि से पूर्व ही आश्रम में पहुंच रहे थे।

इस सूचना के मिलते ही, गौतम तथा उनके सहयोगियों का ध्यान सीरध्वज की ओर से हटकर, इंद्र के आगमन की ओर चला गया। देवराज शक्ति और महिमा की दृष्टि से मिथिला नरेश से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थे। सीरध्वज स्वभाव से सज्जन व्यक्ति हैं। उन्होंने स्वयं, इन्द्र के स्वागत के लिए आश्रम को सुसज्जित करने में गौतम को सहयोग दिया। उनका कहना था कि मिथिला प्रदेश के किसी भी आश्रम में आने वाले अभ्यागतों के आतिथेय का कर्त्तव्य, स्वयं मिथिला-नरेश का है।

उस थोड़े से समय में, आश्रम में उन द्वारों तथा मार्गों को यथासंभव अलंकृत कर दिया गया, जिनसे होकर देवराज के आने की संभावना थी। उन समस्त मार्गों तथा द्वारों पर, इंद्र के स्वागत के लिए अनेक ब्रह्मचारियों को नियुक्त कर दिया गया। कुछ टोलियों को निर्देश दिया गया कि वे ऊंचे-ऊंचे वृक्षों पर चढ़कर, देवराज के आने के संभावित मार्गों पर दृष्टि रखें और उसको देखते ही सूचनार्थ निश्चित संकेत दें।

गौतम की निजी कुटिया के एकदम साथ वाला, सबसे बड़ा तथा विशिष्ट कुटीर, जो अब तक कदाचित् मिथिला-नरेश के लिए खाली रखा गया था विशेष रूप से पुनः झाड़-बुहार कर, पुष्पों से सुवासित किया गया। उसमें देवराज इंद्र के लिए उत्तम भोज्य-पदार्थ प्रस्तुत किए गए; और आश्रम के नियमों के सर्वथा विरुद्ध, उस कुटीर में देवराज के लिए मदिरा का प्रबंध किया गया...।

''मदिरा।'' सहज गति से आगे बढ़ते हुए राम के पैर रुक गए। प्रवाह बाधित हो गया। लय टूट गई। लक्ष्मण तथा ब्रह्मचारीगण भी रुक गए। विश्वामित्र को थम जाना पड़ा।

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    अनुक्रम

  1. प्रधम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. वारह
  24. तेरह

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