बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
राम ने अपनी वाहिनी को मध्याह्न तक के विश्राम के लिए भेज दिया। थोड़े-से अंतराल के पश्चात्, स्नान इत्यादि कर लक्ष्मण, मुखर, सीता, धर्मभृत्य, कृतसंकल्प, अनिन्द्य तथा भीखन इत्यादि लोग आश्रम में एकत्र हुए तो उन्होंने देखा कि राम अभी तक उसी प्रकार चिन्तन की मुद्रा में बैठे थे। कदाचित् उनके मन में कुछ योजनाएं आकार ले रही थीं।
"क्या सोच रहे हैं प्रिय?"
चौंककर राम ने उन लोगों को देखा। दो-चार बार पलकें झपककर मुस्कराए, "आ गए तुम लोग। बैठो। कुछ बातें करनी हैं।"
उनके बैठने पर राम बोले, "भीखन तुम्हारा क्या विचार है; क्या सचमुच आनन्द सागर के आश्रम में राक्षस सैनिक शस्त्रों सहित एकत्र हैं?"
"यह बात उतनी ही सच है, जितना मेरा यहां उपस्थित होना। यदि मैं इतना निश्चित न होता तो इतनी दूर आकर आप सबको रात-भर जागने का कष्ट न देता।"
"तो उन्होंने आक्रमण क्यों नहीं किया!"
"आर्य! ठीक-ठीक कारण तो वे लोग स्वयं ही बता सकते हैं।" भीखन गंभीर स्वर में बोला, "किंतु मेरा ऐसा अनुमान है कि जिन सैनिकों की वे प्रतीक्षा कर रहे थे, वे शायद अभी पहुंचे नहीं। अन्यथा आक्रमण एकदम निश्चित था।"
"इसका अर्थ यह हुआ कि उनका आक्रमण-काल किसी अन्य सैनिक सहायता पर निर्भर होने के कारण अनिश्चित है। किंतु, हम यहां बैठे प्रतीक्षा नहीं कर सकते। उनको अधिक समय देने से आनन्द सागर तथा उनके सहयोगियों के प्राणों का संकट बढ़ता जाएगा।" राम बोले, "अच्छा भीखन! यह बताओ कि यदि आनन्द सागर के आश्रम पर ठहरी हुई राक्षस सेना पर आक्रमण हो, तो तुम्हारे ग्रामवासियों की क्या प्रतिक्रिया होगी! क्या ग्रामवासी भूधर की रक्षा के लिए आएंगे?"
भीखन जोर से हंसा, "ग्रामवासी सरल अवश्य होते हैं राम, किंतु इतने मूर्ख नहीं होते कि अपना पक्ष ही न पहचानें। वर्ष-भर के श्रम से उपजाया हुआ अन्न, जो कर के नाम पर छीन लेता है; जिसने प्रत्येक घर की कोई-न-कोई बहू-बेटी छीनकर बेच दी है-गांव वाले उसका पक्ष लेकर क्यों लड़ेंगे?"
"प्रत्येक घर की बहू-बेटी बेच दी है?" सीता चकित थीं।
"हां देवि!"
"कैसे?"
"सीते! थोड़ी देर धैर्य करो।" राम बोले, "बताओ भीखन, यदि ग्रामवासी भूधर की ओर से नहीं लड़ेंगे, तो क्या वे तटस्थ रहेंगे?"
"नहीं राम," भीखन बोला, "सच्ची बात तो यह है कि ग्रामवासी अपनी ओर से तैयार हैं कि अवसर मिलते ही वे भूधर से प्रतिशोध लें। देखा जाए तो ग्रामवासियों के पास इतना जनबल तथा मनोबल है कि वे भूधर और उसके सैनिकों से निबट लें; किंतु भूधर के विरुद्ध स्वर उठाते ही अन्य स्थानों से राक्षस सैनिकों की टोलियां-की-टोलियां जमा हो जाती हैं। तब ग्रामवासियों की पीड़ा और बढ़ जाती है।"
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