बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर संघर्ष की ओरनरेन्द्र कोहली
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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...
"पर वैसे देव जातियों और राक्षसों में घोर शत्रुता है।" सीता ने कटु स्वर में टिप्पणी की।
"शत्रुता अपने स्थान पर है, किंतु न इंद्र चाहेगा, न रावण कि इस क्षेत्र की जनजातियां समर्थ होकर पैरों पर खड़ी हो जाएं।" राम शांत स्वर में बोले, "ऐसा आभास मुझे चित्रकूट से ही होता चला आ रहा है अन्यथा इंद्र और उसके पुत्र की स्थान-स्थान पर उपस्थिति के प्रमाण होते सामान्य जन राक्षसों के कारण इतना असुरक्षित और पीड़ित क्यों होता है?" वे भीखन की ओर मुड़े, "भीखन, उनकी योजना क्या है?"
"योजना का तो मुझे पता नहीं आर्य! केवल इतनी ही सूचना मिली है कि वे उस आश्रम को अपने सैनिक शिविर में बदल चुके हैं और इस आश्रम को नष्ट कर देना चाहते हैं। उन्हें शायद कुछ और भूस्वामियों की सेनाओं की प्रतीक्षा है। उनके आते ही वे आक्रमण करेंगे।"
"तो क्रम आरंभ हो गया है।" राम वाचिक चिंतन-सा करते हुए बोले, "अत्याचारी सेनाएं अपना पंजा फैलाने को उद्यत हो रही हैं; अब जन-सेना के रूप में आश्रमवाहिनियों और ग्रामवाहिनियों का भी निर्माण होना ही चाहिए।" सहसा वे लक्ष्मण की ओर मुड़े, "अपनी सीमा के मचान बन गए हैं?"
"वे संध्या समय ही तैयार हो चुके थे।" लक्ष्मण बोले, "मुखर ने सीमा-संचार की व्यवस्था भी कर दी थी।"
"तो मुखर! सीमा-संचार वालों को सावधानी-संदेश भेज दो; और यह अवश्य कहला देना कि उन्हें बिना आदेश पाए, राक्षस-सेना का विरोध नहीं करना है। केवल हमें सूचना देनी है।" मुखर उठकर चला गया।
"कृतसंकल्प!" राम बोले, "मुख्य वाहिनी के सदस्यों को उनके शस्त्रों सहित आश्रम के मध्य में एकत्र होने का संदेश दो। सौमित्र, तुम बस्ती में मोर्चा बांधो। सीते, तुम आश्रम की सुरक्षा तथा शस्त्रागार की व्यवस्था संभालो। धर्मभृत्य, आवश्यकता के अनुसार आपूर्ति का काम तुम करो।"
राम उठ खड़े हुए। तत्काल सारी व्यवस्था की गई। आश्रम और बस्ती का सारा क्षेत्र युद्ध-शिविर में परिवर्तित हो गया।
सारी रात प्रतीक्षा होती रही। चेतावनियां, सूचनाएं और आदेश लेकर लोग इधर-उधर भागते रहे। किंतु, उजाला फूटने तक राक्षसों के आने का दूर-दूर तक पता नहीं था। उग्राग्नि की धमकी के पश्चात् यह दूसरी रात थी, जो प्रतीक्षा में जागकर बिताई गई, किंतु आक्रमणकारी नहीं आए। उजाला फूटते ही नई सूचनाएं आने-जाने लगीं। रात के प्रहरी
बदल दिए गए। मचान पर बैठ चौकसी करने का काम, अधिकांशतः रात की नींद लेने वाली स्त्रियों और किशोरों को सौंपा गया। रात को जगे लोग, अल्पकालिक विश्राम के लिए चले गए।
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