लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> संघर्ष की ओर

संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

Like this Hindi book 15 पाठकों को प्रिय

43 पाठक हैं

राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

राम कुछ कहें, उससे पूर्व ही अनिन्द्य उठ खड़ा हुआ, "भद्र राम! मुझे कुछ कहने की अनुमति मिले।"

राम मुस्कराए "कहो।"

"हमने खान-स्वामी से कुछ सुविधाएं मांगी थीं, किंतु वह तो खान छोड़कर भाग गया।" अनिन्द्य जोर से हंसा, "अब यह स्वामी-हीनता की स्थिति बड़ी, विचित्र है। बस्ती के सारे श्रमिकों ने इस विषय में सोच-विचार किया है। हम लोगों ने निश्चय किया है कि हम इस खान का स्वामी राम को स्वीकार करें और उनसे प्रार्थना करें कि वे हमारी रक्षा करे..." उपस्थित समुदाय ने अपनी हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की। बड़ी देर तक तालियां और हर्षसूचक कंठ-स्वर गूंजते रहे।

"अब आप मेरी बातें सुनें।" राम गंभीर स्वर में बोले, "आपने स्थिति को जितना सरल समझा है, उतनी सरल नहीं है। आपने खान के स्वामी से कहा था कि हम मित्र बनकर एक साथ रहें; किंतु उग्राग्नि आपको शत्रु समझकर भाग गया। मुझे विश्वास है कि रात के समय, यदि आप इतने सजग न हुए होते, तो वे अवश्य ही खान को हानि पहुंचाते और आपसे भी शत्रु का-सा व्यवहार करते। इसका अर्थ यह हुआ कि वह शत्रुता पाले हुए है और कभी भी न आपका मित्र बनेगा, न आपको भूलेगा। आप देखेंगे कि कुछ दिनों के पश्चात् वह अपने सहायकों को लेकर आएगा। वह नहीं आया, तो अन्य खानों के स्वामी आप पर आक्रमण करेंगे और इस आश्रम को ही नहीं, जहां-जहां ऋषि-मुनि-बुद्धिजीवी बसते हैं, उन्हें नष्ट करने का प्रयत्न करेंगे। वे लोग संगठित हैं। संभव है कि रावण, की राक्षसी सेना से भी उन्हें सहायता मिले। राक्षसराज कभी नहीं चाहेगा कि सामान्य जन इतना समर्थ हो कि मनुष्य के समान सम्मान ओर सुविधा से जी सके।"

"तो हम क्या करें?" अनिन्द्य का पड़ोसी भूलर उठकर खड़ा हुआ।

"वही बता रहा हूं।" राम बोले, "संयोग से आपका क्षेत्र मुक्त हो गया है। मुक्त करना या मुक्त होना कठिन नहीं है, किंतु मुक्ति की रक्षा अत्यन्त कठिन है। उसके लिए आपको सजग रहना चाहिए। इसका अर्थ है कि आज ही से मुक्त क्षेत्र के प्रत्येक स्त्री-पुरुष-बच्चे के लिए शस्त्र तथा शस्त्र-परिचालन की शिक्षा। मुक्त क्षेत्र का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को सैनिक माने-वनवासी भी और श्रमिक भी। उन्हें सैनिक बनाने का दायित्व लक्ष्मण अपने ऊपर लें।" लक्ष्मण ने मुस्कराकर स्वीकृति दी।

"दूसरी बात ध्यान देने की यह है," राम पुनः बोले, "कि आस-पास के राक्षस अथवा राक्षसेतर धनाढ्य-सत्ताधारी-सेनापति, इस मुक्त क्षेत्र को सहन नहीं कर पाएंगे। ऐसा संभव नहीं है कि राक्षसों का आतंक और आपका मुक्त क्षेत्र दोनों सह-अस्तित्व की स्थिति में रह सकें। इन दोनों में लंबा संघर्ष होगा, जब तक कि दोनों में से एक समाप्त न हो जाए। आपने आज से एक ऐसा संघर्ष आरंभ किया है, जिसमें या तो विजय है, अथवा मृत्यु। मध्यम मार्ग आपके लिए नहीं है।"

"हमें ऐसी मुक्ति का क्या लाभ, जिसमें लड़ना ही लड़ना पड़े?" भूलर पुनः उठ खड़ा हुआ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book