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संघर्ष की ओर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :376
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2866
आईएसबीएन :81-8143-189-8

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राम की कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास...

सब लोग अपने-अपने स्थान पर पहुंचकर सन्नद्ध हो गए तो सीता ने धनुष कंधे पर टांगा और सुधा तथा उसकी सखियों की सहायता से भोजन परोसने का कार्य हाथ में लिया। जितना भोजन पहले से बनाया गया था, वह पर्याप्त नहीं था, अतः वह बच्चों और वृद्धों को परोस दिया गया। दूसरी बार का भोजन भी युद्ध की-सी तत्परता से पकाया गया।

अनेक टुकड़ियां बन गई और विभिन्न प्रकार के कार्य उन्होंने संभाल लिए। भोजन पकाने वाली टुकड़ी, परोसने वाली टुकड़ी, खान तक भोजन पहुंचाने वाली टुकड़ी, वन में ब्रह्मचारियों तक भोजन ले जाने वाली टुकड़ी, वन में परिभ्रमण करने वाली टुकड़ी तथा संदेश ले आने और ले जाने वाली टुकड़ी...

प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने कर्तव्य में लगा अपने स्थान पर सन्नद्ध था। उसे वहीं आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध हो रही थीं, सूचनाएं मिल रही थीं, आदेश मिल रहे थे। सारा उपस्थित समुदाय एक यंत्र में बदल गया था, प्रत्येक व्यक्ति उस विराट् यंत्र का एक अंग मात्र था...।

प्रायः आधी रात के समय खान की ओर से सूचना मिली कि बीस-पच्चीस आदमी वन से निकलकर खान की ओर बढ़ते देखे गए हैं। किंतु, खान की रक्षा के लिए इतने सजग प्रहरियों को देखकर, जाने वे कहां विलीन हो गए। खान तक कोई भी नहीं पहुंचा। लक्ष्मण तथा मुखर बार-बार आश्रम में राम के पास सूचनाएं भिजवाते रहे कि अभी कोई नहीं आया। क्रमशः राम ने बच्चों और स्त्रियों को विश्राम करने का आदेश दिया। फिर प्रहरियों को भी छोटे-छोटे गुटों में एकत्र हो बारी-बारी सोने और जागने का आदेश दिया गया...खान और आश्रम के इस घेरे में युद्ध-शिविर की-सी गतिविधियां चलती रहीं, किंतु कोई आक्रमणकारी नहीं आशा और वन के पक्षियों ने चीख-चीखकर भोर हो जाने की घोषणा कर दी।

सूर्य का प्रकाश फैलने के साथ-ही-साथ रक्षा-व्यवस्था भी शिथिल कर दी गई; किंतु उचित दूरी रखकर स्थान-स्थान पर चौकियां बैठा दी गईं, ताकि कोई भी नई गतिविधि होते ही तुरन्त आश्रम में सूचना पहुंचाई जा सके। सामान्यतः लोग बड़े उत्फुल्ल दिखाई पड़ रहे थे। किंतु, राम को भविष्य की व्यवस्था की चिंता थी, और लक्ष्मण को शत्रु के निकल जाने की निराशा।

दोपहर तक सामान्य दिनचर्या के कार्य चलते रहे; और एक अबूझ-सी प्रतीक्षा मन में बनी रही। अपराह्न तक प्रतीक्षा करने के पश्चात् राम को भविष्य के कार्यक्रम के लिए सोच-विचार तथा विचार-विनिमय आवश्यक लगा। कुछ उण्वश्यक स्थानों पर खड़े प्रहरियों को छोड़कर, बस्ती और आश्रम के सभी सदस्य, आश्रम के मध्य एकत्रित हुए।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह

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