विविध उपन्यास >> परदेस परदेससुचित्रा भट्टाचार्य
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क्या अपना गाँव ही, देश ही शायद उसकी पनाह है, बाकी हर जगह परदेश है, जहाँ वे महज प्रवासी हैं।
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