नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
लोहार : स्वयं भगवान भी वह काम नहीं कर सकते जो लाट पादरी कर सकता है। ऊपर भले
ही भगवान की चलती हो, मगर नीचे केवल लाट पादरी की चलती है।
हानूश : मैं क्या करूँ, बड़े मियाँ? किसी के पास जाकर हाथ फैलाना मेरे लिए
पहाड़ लाँघने के बराबर होता है।
लोहार : हाथ फैलाने की बात नहीं है। तुम उनसे डरते हो। तुम अफ़सरों से,
पादरियों से, सभी से डरते हो।
हानूश : तुम ठीक कहते हो बड़े मियाँ, मेरी कमजोरियाँ मुझे आगे बढ़ने नहीं
देतीं।
लोहार : (मुस्कुरा देता है और हानूश के कन्धे पर हाथ रख देता है) हम सब में
कमज़ोरियाँ होती हैं, हानूश! पर हम अपना काम अपनी कमजोरियों के बावजूद करते
हैं।...क्यों, क्या सोच रहे हो?
हानूश : हमें जो मिला, नसीहत करनेवाला ही मिला। भाई हैं तो वह नसीहत करते हैं,
बीवी है तो वह नसीहत करती है, आप हैं तो आप नसीहत करते हैं। आख़िर इस छोटे-से
दिमाग में कितनी नसीहत समा पाएगी? आप लोग कुछ दिन के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़
दें तो मुमकिन है मेरी अक़्ल कुछ काम करने लगे।
लोहार : तुम बुरा मान गए, हानूश। मेरा मतलब तुम्हें नसीहत करने का नहीं था। मैं
एक ही बात चाहता हूँ और वह यह कि घड़ी बनाने का काम नहीं छोड़ना, भले ही दुनिया
इधर से उधर हो जाए। पैसे की वजह से बिलकुल भी नहीं छोड़ना। हम लोग मर नहीं गए
हैं। वज़ीफ़े का कहीं इन्तज़ाम नहीं हुआ तो मैं लोहारों की जमात से तुम्हें
पैसा इकट्ठा करके ला दूंगा। लोहार कभी इनकार नहीं करेंगे। तुम बेधड़क होकर अपना
काम जारी रखो।
[बाहर दूर शोर सुनाई देता है। सहसा ऐमिल अन्दर आ जाता है।]
ऐमिल : अरे हानूश, बाहर तो बड़ा शोर है और तुम लोग यहाँ मज़े से बातें कर रहे
हो! तुम्हें कुछ मालूम नहीं कि बाहर क्या हो रहा है?
हानूश : क्या हुआ है? हमने ध्यान नहीं दिया।
ऐमिल : लगता है, कोई आदमी चोरी करके भाग गया है।
कात्या : कौन था?
ऐमिल : मैं नहीं जानता। शायद बाहर से कोई आया था।
यान्का : कहाँ पर चोरी की है, क्या चुराया है?
ऐमिल : (हँसता है) किसी पादरी के घर के पिछवाड़े से एक छोटा-सा सूअर उठाकर भाग
गया है।
लोहार : यह चोरी तो कोई चोरी नहीं हुई। यह तो बड़ा सवाब का काम हुआ।
ऐमिल : सरकार के आदमियों ने किसी गलत आदमी को पकड़ लिया है और इस पर बाज़ार में
शोर मच गया है। असली चोर, लगता है, भाग गया है।
हानूश : जिसे पकड़ा है, क्या उसके पास भी सुअर था?
ऐमिल : (हँसते हुए) था तो, लेकिन लगता है, चोर भागते समय सुअर को फेंक गया था,
और इस आदमी ने उसे उठा लिया है और पकड़ा गया है।
कात्या : विधर्मी लोग लोगों को पादरियों के खिलाफ़ भड़काते फिरते हैं, और क्या?
वरना पादरी के घर में चोरी करने का क्या मतलब था?
ऐमिल : तुम्हें खूब सूझी कात्या! तुम हर बात में विधर्मियों को ले आती हो। एक
आदमी चोरी करके भाग गया, इसमें विधर्मियों का क्या दोष?
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