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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126705405

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


हानूश : मैं किसके पास जाऊँ? मैं किसी को जानता नहीं हूँ।

लोहार : क्यों, तुम अपने हिसाबदान प्रोफ़ेसर से कहो। वह जाना-माना आदमी है। उसकी जान-पहचान के बहुत लोग होंगे, दरबार में उसका अच्छा रसूख़ होगा।

हानूश : वह कुछ नहीं करेंगे। मैंने एक बार कहा था।

लोहार : क्या कहता था?

हानूश : कहते थे, मैं किसी की सिफ़ारिश नहीं करता। मैंने यह ज़िन्दगी का उसूल बना रखा है।

लोहार : वाह जी, कुछ लोगों ने कैसे-कैसे उसूल बना रखे हैं!

हानूश : वह कहते थे कि चूँकि तुम मेरे पास सीखने आते हो, लोग कहेंगे कि इसमें ज़रूर कहीं मेरा कोई स्वार्थ होगा। अपने-अपने उसूल हैं, कोई क्या कहे!

लोहार : इधर बाहर के सौदागर आते हैं। वह तुला का सौदागर आता रहता है। वह बड़ा धनी आदमी है। उससे बात कर देखो।

हानूश : वह क्यों मुझे माली इमदाद देगा बड़े मियाँ? वह सूद पर कर्ज देगा, और वह भी मुझ जैसे को क्यों देगा? मेरा मकान गिरवी रख ले तो शायद कुछ उससे मिल जाए।

कात्या : ख़बरदार, जो मकान गिरवी रखने की बात मुँह पर लाए! मेरा गड़ा मुर्दा देखोगे अगर मकान गिरवी रखने की बात कहोगे!

लोहार : नगरपालिका वालों से माँग देखो। हमारे अपने दस्तकार सौदागर इस काम के लिए, मुमकिन है, इमदाद दे दें!

हानूश : वह भी सोचा था, मगर भाई नहीं मानते।

लोहार : क्यों भला?

हानूश : इसलिए कि नगरपालिका वालों और गिरजेवालों की पटती नहीं। लाट पादरी को इन दस्तकारों से चिढ़ है। और भाई ने कहा कि इससे गिरजेवाले नाराज़ होंगे, क्योंकि अब तक गिरजे की ओर से मुझे मदद मिलती रही है।

लोहार : फिर गिरजेवाले ख़ुद दें। ख़ुद भी नहीं देते और नगरपालिका से भी नहीं लेने देते?

हानूश : भाई दूर की सोचते हैं। गिरजेवालों को नाराज़ किया तो सरकार भी नाराज़ हो जाएगी।

लोहार : वह क्यों?

हानूश : क्योंकि दस्तकार-सौदागर बड़े-बड़े सामन्तों से बिगड़े हुए हैं, और गिरजों को भी आए दिन बुरा-भला कहते हैं। इसलिए महाराज उनसे नाराज़ हैं।

लोहार : बादशाह की इसी में तो बादशाहत होती है। उसके हाथ में भगवान ने तराजू दे रखा है। जो भी पलड़ा भारी होता है, राजा दूसरे पलड़े का वज़न बढ़ाकर फिर से एक जैसा कर लेता है। यही नीति है। इसी को नीति कहते हैं। अब एक काम करो।

हानूश : क्या?

लोहार : तुम फिर लाट पादरी के पास अपनी दरख्वास्त भेजो।

हानूश : अब वह कुछ नहीं करेगा।

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