नाटक-एकाँकी >> हानूश हानूशभीष्म साहनी
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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।
कात्या : तुमने ख़ुद कौन-सा सुख पाया है? दिन-रात मेहनत की है, सारी जवानी इसी
में खपा दी है। तुमने किसी को कोई दुख नहीं दिया। ऐसा कुछ मत कहो। आज का दिन हम
सबके लिए बड़ा मुबारक़ दिन है!
हानूश : (धीमी आवाज़ में) मेरी इस कामयाबी के पीछे तुम्हारी कुर्बानी है। हर
काम के पीछे किसी औरत की प्रार्थना होती है, उसकी कुर्बानी होती है, उसकी
प्रेरणा होती है।
कात्या : यह काम तुम्हारी जी-तोड़ मेहनत से पूरा हुआ।
[दूर, हानूश की घड़ी सहसा बज उठती है। उसकी आवाज़ से पहले तो दोनों विस्मित-से
होते हैं, फिर मुस्कुराने लगते हैं। एक-दूसरे से बग़लगीर होते हैं।
हाय, इसकी आवाज़ कैसे गूंजती है! घर में बजा करती थी तो इसकी आवाज़ ऐसी नहीं
थी।
हानूश : जेकब पहुँच गया होगा। यह बहुत अच्छा हुआ है न, महाराज के आने से पहले
घड़ी चालू हो गई है।
कात्या : महाराज ने भी इसकी आवाज़ सुनी होगी? हाय, उन्हें कैसी लगी होगी!
महाराज को तुम पर कितना गर्व हुआ होगा!
[देव-प्रतिमा की ओर घूम जाती है। छाती पर सलीब का निशान बनाती है, और फिर सिर
ढंककर देव-प्रतिमा के सामने हाथ जोड़े नतमस्तक खड़ी रहती है। बाहर गली में
भागते क़दमों का शोर।]
आवाज़-1 : तुमने सुना? यह घड़ी की आवाज़ है-हानूश की घड़ी।
नगरपालिका पर लगाई गई है। यह उसी की आवाज़ है। हानूश कुफ़्लसाज़ ने बनाई
है।..मैं घड़ी को देखने जा रहा हूँ। तुम उसे देख आए?
आवाज़-2 : हाँ, जितनी देर तक मैं वहाँ खड़ा रहा तब तक तो बजी नहीं, वहाँ से
लौटा तो सुसरी बजने लगी है।
आवाज़-1 : बहुत बड़ी है। नीचे एक गोल चक्कर है जिसमें सुइयाँ घूमती हैं।
आवाज़-2 : आज तो मैं दिन-भर चौक में ही रहूँगा। देखें, कितनी बार बजती है! आज
वहाँ महाराज आनेवाले हैं।
आवाज़-1 : सुना है, पहले घड़ी को गिरजे पर लगाने जा रहे थे।...गिरजे पर घड़ी का
क्या काम ?
आवाज़-2 : गिरजे के बाहर घड़ी लगी होगी तो अन्दर कौन जाएगा? लोग बाहर खड़े घड़ी
को देखेंगे या अन्दर अबादत करेंगे?
[एक और गुलदस्ता अन्दर आकर गिरता है। हानूश उसे उठाकर खिड़की के पास जाता है और
लोगों का अभिवादन करता है। तालियों की आवाज़]
आवाज़-1 : ख़ुश रहो हानूश! वाह ! जुग-जुग जियो!
(दरवाज़े में से यान्का भागती हुई अन्दर आती है। यान्का के हाथों में बहुत-से
फूल हैं। दूसरे हाथ में चमचमाते जूतों का जोड़ा है।]
यान्का : ओह बापू, तुम लोगों ने घड़ी को सुना? यहाँ आवाज़ आई थी? देखो बापू, ये
फूल लोगों ने मुझे दिये हैं। जिस किसी को पता चलता कि मैं हानूश की बेटी हूँ,
मुझे फूल लाकर भेंट करता। (माँ से) तुम नहीं जानती माँ, वहाँ कितनी भीड़ इकट्ठी
हो रही है! सभी लोग घड़ी देखने जा रहे हैं। जब घड़ी बजी तो मैं गली में थी। ऊपर
से नीचे तक मेरे बदन में ऐसी झुरझुरी हुई, मैं तुम्हें क्या बताऊँ! मेरा तो
रोना निकल गया। मैं खड़ी-खड़ी घड़ी की टन्-टन् सुनती जाती और रोती जाती।
[यान्का की आँखों में फिर आँसू आ जाते हैं और वह माँ से बग़लगीर हो जाती है।
आँसू पोंछती है, हँसती है।]
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