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नाटक-एकाँकी >> हानूश

हानूश

भीष्म साहनी

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2471
आईएसबीएन :9788126705405

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आज जबकि हिन्दी में श्रेष्ठ रंग-नाटकों का अभाव है, भीष्म साहिनी का नाटक ‘हानूश’ रंग-प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य होना चाहिए।


दूसरा अंक


दृश्य : 1


[नगरपालिका का हॉल कमरा। पिछली दीवार में दाएँ और बाएँ गोलाकार खिड़कियाँ। बीच में लम्बी मेज़। दीवार पर अलग-अलग दस्तकारी संगठनों के व्यवसाय-चिह्न। मीटिंग से पहले, धीरे-धीरे नगरपालिका के सदस्य इकट्ठे हो रहे हैं। पर्दा उठने पर चार सदस्य पहुँच चुके हैं। उनमें से एक, नाटे क़द का गठे हुए शरीर का व्यापारी जॉन ऊपर-नीचे टहल रहा है। हुसाक दाएँ हाथ की खिड़की में से बाहर देख रहा है। बाक़ी दो सदस्य, दाएँ हाथ की दीवार के साथ कुर्सियों पर बैठे बातें कर रहे हैं।

हुसाक बाहर का दृश्य देखने के बाद गोलाकार खिड़की की जाँच करता है। फिर पीछे की ओर क़दम रखता हुआ हॉल कमरे के बीचोबीच आ जाता है। उसकी पीठ दर्शकों की ओर है।]

हुसाक : यही, खिड़कीवाली जगह ही ठीक रहेगी। एक तो कोने में है, दूसरे, बाहर की तरफ़ मैदान में खुलती है।

[खड़ा हो जाता है।]

जान : खिड़कियाँ बाहर की तरफ़ ही खुलती हैं, और कहाँ खुलती हैं?

हुसाक : मतलब कि मैदान में टहलनेवाले लोग भी और दाईं ओर की सड़क पर चलनेवाले लोग भी इसे देख सकते हैं। मैं सोचता हूँ, घड़ी यहीं पर लगाई जाए। इससे मैदान में दूर-दूर तक खड़े लोग भी उसे देख सकेंगे। लगता है, खिड़की बनाई ही इस काम के लिए गई थी।

जान : लेकिन क्या यह जगह छोटी नहीं होगी? इतनी-सी जगह में घड़ी समा पाएगी? मैंने सुना है, उसकी मशीन काफ़ी बड़ी है।

हुसाक : घड़ी खिड़की में फ़िट हो और उसकी मशीन यहाँ पीछे तक आ सकती है। इतनी जगह और घेर ली जाए और यहाँ पर दीवार चुन दी जाए।

जान : लेकिन अभी इसका वक़्त तो आए। पहले बादशाह सलामत से मंजूरी तो मिले।

हुसाक : मंजूरी मिलने में क्या दिक़्क़त होगी? मंजूरी अब फ़ौरन मिल जाएगी।

जान : कुछ नहीं कहा जा सकता। बादशाह सलामत बिगड़ जाएँ तो बिगड़ जाएँ। आजकल तो लाट पादरी की चलती है। बादशाह सलामत उसी की सुनते हैं। न जाने आजकल क्या साज़-बाज़ चल रही है!

हुसाक : बादशाह सलामत हमारे यहाँ, नगरपालिका में आ रहे हैं। अभी इसमें एक महीना बाक़ी है।

जान : उनकी इजाज़त मिल जाए तो इस बीच यहाँ घड़ी लगाई जा सकती है। घड़ी से उनका स्वागत हो, कितनी बढ़िया बात होगी!

हुसाक : तुम्हें तो हमेशा चापलूसी की ही बातें सूझती हैं।

जान : इसमें चापलूसी की क्या बात है?

शेवचेक : (दीवार के साथ बैठे-बैठे वहीं से बोल पड़ता है) उस दिन यहाँ बहुत-सी बातों का फ़ैसला हो जाएगा।

हुसाक : क्या मतलब?

शेवचेक : इस बात का भी कि दरबार में हम सनअतकारों के कितने आदमी बैठेंगे। बैठेंगे भी या नहीं। बड़े वज़ीर के पास कल हमारे नुमाइंदे गए थे। जानते हो, क्या हुआ?

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