कविता संग्रह >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।
जब तक प्रसन्न यह अनल, सगुण हँसते हैं;
है जहाँ खड्ग सब पुण्य वहीं बसते हैं।
वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।
तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।
तलवारें सोती जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती हैं तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।
पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे?
यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे?
तूफान उठेगा, प्रणय-वाण छूटेगा,
है जहाँ स्वर्ण, बम वहीं, स्यात् फूटेगा।
जो करें, किंतु कंचन यह नहीं बचेगा,
शायद सुवर्ण पर ही संहार बचेगा।
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,
कह दो सबसे, अपना दायित्व सँभाले।
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