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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'उन्होंने क्या सिर्फ बाबरी मस्जिद के मामले को लेकर लूटपाट, तोड़फोड़ की है? 1992 के 21 मार्च की सुबह बागेरहाट के विशारीहाटा गाँव से कलिन्द्रनाथ हालदार की लड़की पुतुल रानी का अपहरण उसी इलाके के मोखलेसुर रहमान और चांद मियाँ ने मिलकर किया। पटुआखाली की बगा यूनियन यू. पी. चेयरमैन यूनुस मियाँ और यू. पी. सदस्य नबी अली मिर्धा के अत्याचार से गाँव के मणि और कनाई लाल का परिवार देश छोड़ने के लिए बाध्य हुआ। राजनगर गाँव के बीरेन की जमीन कब्जा करने के लिए बीरेन को पकड़कर ले गये, आज तक बीरेन की कोई खबर नहीं मिली। सुधीर की जमीन-जायदाद पर कब्जा करने के लिए भी इतना अत्याचार किया कि उन लोगों को भी देश छोड़ना पड़ा। साबूपुर गाँव के चंदन शील को चेयरमैन खुद पकड़कर ले गया। आज तक उसकी कोई खबर नहीं मिली। बामनकाठी गाँव के दिनेश से जबरदस्ती सादे स्टाम्प पेपर पर दस्तखत करवा लिया है। बगा गाँव के चितरंजन चक्रवर्ती के खेत का धान काट ले गये हैं। चित्तबाबू द्वारा मुकदमा किये जाने पर मुकदमा उठा लेने के लिए दबाव डाला गया। यहाँ तक कि मार डालने की धमकी भी दी गयी।

सुरंजन सिगरेट सुलगाता है। विरुपाक्ष की बातों में वह भाग लेना नहीं चाहता। फिर भी उसने पाया कि वह थोड़ा-थोड़ा उसमें भाग ले ही रहा है। उसने सिगरेट होंठों में दबाकर कहा- 'एक अप्रैल को स्वप्नचन्द्र घोष की नयी 'जलखाबार' दुकान में सात-आठ व्यक्ति घुस गये और पिस्तौल दिखाकर दस हजार रुपये चंदा मांगा। चंदा मांगने वालों का जुल्म दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। उसके बाद 'सिद्दिक बाजार' के मानिक लाल धुबी की सम्पत्ति के आधे हिस्से पर उस इलाके का शहाबुद्दीन सिराज, परवेज, सलाउद्दीन आदि ने जबरदस्ती कब्जा कर लिया है। अब वे लोग मानिक लाल की पूरी सम्पत्ति हड़पना चाह रहे हैं।'

सुरंजन कुछ देर तक चुप रहकर लम्बी साँस छोड़कर बोला, 'धान काट लेना, लड़कियों को पकड़कर ले जाना, बलात्कार करना, जमीन कब्जा करना, मार डालने की धमकी देना, पीट कर घर छुड़वा देना, देश छुड़वा देना, इस सबके लिए इधर-उधर का उदाहरण देने से क्या होगा। यह सब तो सारे देश में ही हो रहा है। हम लोग कितने ही अत्याचारों की खबर रख पा रहे हैं, देश त्यागने वालों की ही कितनी सूचना हमारे पास है। बोलो?'

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