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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'मतलब?' 'यह बात मुझसे कह सकती हो या नहीं, इस पर किसी के साथ शर्त लगायी है?'

'कभी नहीं।'

'तो क्या दिल से कह रही हो?'

'मैं जो कहती हूँ दिल से ही कहती हूँ।'

उस अटल लड़की के घर पर शादी की बात उठी और टूटने लगे, उड़ गये अद्भुत-अद्भुत स्वप्न और जो मन चाहेगा, वह करने की इच्छा उसकी जिस दिन जबरदस्ती शादी की गयी। परवीन ने तो एक बार भी नहीं कहा कि मैं उस घर के बन्दर से शादी करूँगी। उसके घर से दो मकान बाद ही हैदर का घर है, उसकी शादी में माया गयी थी। किरणमयी और सुरंजन नहीं गये।

उसने रिक्शे को चमेली बाग की तरफ जाने को कहा। शाम हो रही थी। भूख से उसकी हालत खराब है। पेट में दर्द हो रहा है। छाती में जलन वाली बीमारी तो उसे है ही। खट्टी डकार आ रही है। सुधामय ऐसे में एण्टासीड खाने को कहते हैं। होंठों को सफेद कर देने वाला टेबलेट उसे अच्छा नहीं लगता। इसके अलावा पाकेट में दवा लेकर निकलने की बात उसे याद भी नहीं रहती। पुलक के घर जाकर कुछ खाना होगा। पुलक घर पर ही मिल गया। वह पाँच दिनों से घर में बंदी है। दरवाजे में ताला लगाकर घर में बैठा हुआ है। घर में घुसते ही सुरंजन ने कहा, 'कुछ खाने को दो! शायद घर पर आज खाना-बाना कुछ नहीं पका।'

'क्यों, खाना क्यों नहीं पका?'

'डॉक्टर सुधामय दत्त को स्ट्रोक हुआ है। उनकी बेटी और पत्नी फिलहाल उन्हें लेकर व्यस्त हैं। किसी जमाने के धनाढ्य सुकुमार दत्त के बेटे सुधामय दत्त अब खुद की चिकित्सा के लिए पैसा नहीं जुटा पा रहे हैं।"

'दरअसल तुम्हें कुछ करना चाहिए था, नौकरी-चाकरी।'

'मुसलमानों के देश में नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है। और इन मूों के अंडर नौकरी कैसे करूँगा, बोलो!'

पुलक विस्मत हुआ। सुरंजन के और नजदीक आकर बोला, 'तुम मुसलमानों को गाली दे रहे हो सुरंजन?'

'डरते क्यों हो? गाली तो तुम्हारे सामने दे रहा हूँ, उनके सामने तो नहीं दे रहा अब उनके सामने गाली देना सम्भव है? मेरे धड़ में क्या सिर रहेगा?'

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