लोगों की राय

जीवन कथाएँ >> लज्जा

लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

360 पाठक हैं

प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


सुधामय चौंक गये। एक ही झटके से चश्मा उतारते हुए बोले, 'हरिपद बाबू, आप पागल हो गये हैं? ऐसी अपशकुन बातों का उच्चारण भी नहीं कीजिएगा।'

'यही कहेंगे न कि यहाँ पर मेरी प्रैक्टिस अच्छी है। अच्छा रुपया कमा रहा हूँ। अपना घर है। है न?'

'नहीं हरिपद! कारण वह नहीं है। सुविधा है इसलिए नहीं जा सकते, बात यह नहीं है। सुविधा न रहने पर भी जाने का सवाल क्यों आयेगा? क्या यह तुम्हारा देश नहीं है? मैं तो सेवानिवृत्त व्यक्ति हूँ। कमाई भी नहीं है। लड़का भी नौकरीचाकरी नहीं करता। रोगी देखता हूँ, उसी से परिवार चलता है। अब दिन-ब-दिन रोगियों की संख्या भी घट रही है। इसका मतलब यह थोड़े ही है कि मैं चला जाऊँगा? जो लोग देश छोड़कर चले जाते हैं, क्या वे आदमी हैं? चाहे जो भी हो, जितना भी दंगा-फसाद हो, बंगाली तो असभ्य जाति नहीं है। थोड़ा बहुत कोलाहल हो रहा है, रुक जायेगा। पास-पास स्थित दो देश हैं। एक देश में आग लगेगी तो उसकी लपट दूसरे देश में तो जायेगी ही। माइंड इट हरिपद! चौंसठ का दंगा वंगाली मुसलमानों ने नहीं लगाया था, विहारी मुसलमानों ने लगाया था।'

हरिपद बाबू अपनी चादर से नाक-मुँह अच्छी तरह से ढांकते हुए बोले, 'चादर से अपना चेहरा छिपाये हुए जो निकल रहा हूँ तो बिहारी मुसलमानों के डर से नहीं दादा, आपके बंगाली भाइयों के डर से।'

हरिपद बाबू सावधानी से दरवाजा खोलकर दबे पैरों से बायीं ओर की गली से होते हुए अदृश्य हो गये। किरणमयी दरवाजे को दोनों उँगलियों से फांक करके बेचैनी के साथ सुरंजन की प्रतीक्षा करती रही। थोड़ी-थोड़ी देर बाद एक-एक जुलूस जा रहा है-'नाराए-तकबीर अल्लाहो अकबर' का नारा लगाता हुआ। उनका कहना है किसी भी तरह भारत सरकार को बाबरी मस्जिद का निर्माण करना होगा, वरना खैर नहीं।

सुरंजन काफी रात में घर लौटा। वह नशे में धुत था। उसने किरणमयी को बता दिया कि उसे भूख नहीं है। रात में वह खाना नहीं खायेगा।

सुरंजन बत्ती बुझाकर सो जाता है। उसे नींद नहीं आती। वह सारी रात करवटें बदलता रहता है। चूँकि उसे नींद नहीं आ रही थी इसलिए वह एक-एक कदम चलता हुआ अतीत में लौटता है। इस राष्ट्र की चार मूल नीतियाँ थीं-बांग्ला जातीयता, धर्मनिरपेक्षता, गणतंत्र और समाजवाद। बावन के भाषा आंदोलन से लेकर लम्बे समय के गणतांत्रिक संग्राम और उसके चरम मुक्ति-युद्ध के बीच जो साम्प्रदायिक और धर्मान्ध शक्तियाँ परास्त हुई थीं, बाद में मुक्त-युद्ध के चेतना विरोधी प्रतिक्रियाशील चक्र के घूमने, राष्ट्रीय सत्ता के दखल और संविधान के चरित्र-परिवर्तन के फलस्वरूप मुक्ति-युद्ध में तिरस्कृत और पराजित वही साम्प्रदायिक कट्टरपंथी शक्तियाँ फिर स्थापित हुईं। धर्म को राजनैतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कुशलता के जरिए अवैध और असंवैधानिक रूप से इस्लाम को राष्ट्रधर्म बनाने के बाद साम्प्रदायिक और मौलवादी शक्ति की तत्परता बहुत अधिक बढ़ गयी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book