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लज्जा

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2125
आईएसबीएन :81-7055-777-1

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प्रस्तुत उपन्यास में बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी साम्प्रदायिकता पर प्रहार करती उस नरक का अत्यन्त मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया गया है...


'क्या आप बीमार हैं? बड़े फीके-से लग रहे हैं!!

'हाँ हरिपद। कई दिनों से शरीर की हालत ठीक नहीं है। प्रेसर भी नहीं देखा।'

'पहले से पता होने पर मैं बी. पी. मशीन ले आता।' किरणमयी बोली, 'देखिए न! सुरंजन भी इस वक्त बाहर निकला है। आप किस तरह आये?'

'शार्ट कट मारकर आया हूँ। मेन रोड से नहीं आया।'

काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला। हरिपद अपनी चादर उतारते हुए बोले, 'ढाका में आज बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने को लेकर प्रतिवाद हो रहा है, दूसरी तरफ शान्ति जुलूस भी निकाला जा रहा है। राजनैतिक दलों और विभिन्न संगठनों ने साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखने के लिए सभी का आह्वान किया है। मंत्री सभा की बैठक में जनता से संयम बनाये रखने के लिए अनुरोध किया गया है। शेख हसीना ने कहा है कि किसी भी कीमत पर साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखिये। भारत के दंगा-फसाद में दो सौ तेईस लोगों की मृत्यु हुई है, चालीस शहरों में कयूं जारी किया गया है। साम्प्रदायिक दलों को निषिद्ध घोषित कर दिया गया है। नरसिंह राव ने बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण कराने का वचन दिया है।

इतना कहकर हरिपद गम्भीर चेहरा लिये हुए बैठे रहे। फिर कहा, 'कुछ तय किया है? क्या यहीं रहिएगा? मुझे नहीं लगता कि यहाँ रहना उचित होगा। मैंने तो सोचा था, ससुराल चला जाऊँगा। मेरी ससुराल मानिकगंज में है। लेकिन आज सुबह साले ने आकर बताया कि मानिकगंज शहर और घिउर थाने के इलाके में सौ से भी अधिक घरों को लूट कर आग लगा दी गई है। पच्चीस मंदिरों को तोड़कर जला दिया गया। वक्झुड़ी गाँव के हिन्दुओं के मकानों को जला दिया गया। आधी रात में आठ-दस युवक देवेन सूर के घर में घुसकर उसकी बेटी सरस्वती को उठा ले गये फिर बलात्कार किया।'
'क्या कह रहे हैं!' सुधामय आर्तनाद कर उठे।

'आपकी बेटी कहाँ है?'

'माया अपनी सहेली के घर पर है।'

'मुसलमान के घर तो!'

'हाँ!'

'तो फिर ठीक है।' हरिपद जी ने निश्चिंतता की सांस छोड़ी।

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