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आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


आखिरकार श्रीपति का डॉक्टर के यहाँ जा पाना सम्भव न हुआ। भाड़ में जाएँ आंखें? आँखों की पुतली को अपनी आंखों से अलग कर पाने का कोई चारा भी तो नहीं था उसके पास। और ऐसी स्थिति में जबकि एक जोड़ी बेहया और लालची आँखें 'उसे' निगल जाने को तैयार बैठा हों?

गायत्री के मैके के यहाँ से, उसके पिता और भाई को छोड़कर इस घर में और किसी का प्रवेश एक तरह से मना है। ऐसा किसी लिखित कानून में तो नहीं है लेकिन अलिखित तौर पर इसका पालन होता रहा है। विवाह के बाद एक-से-एक नये चेहरे आ टपकते थे। अब कोई नहीं आता। उन लोगों ने जिस वजह से आना छोड़ दिया है वह है श्रीपति के चेहरे पर टँगी हुई गर्दन में धक्का मारकर बाहर निकाल देने वाली खामोश नोटिस।

यह सब सहती चली आयी है गायत्री। और यह बात सभी मन-ही-मन समझ गये थे। श्रीपति के मन में बैठी यह बिषबुझी बात इस तरह से कभी उजागर नहीं हुई थी, जैसी कि कल हो गयी।

लेकिन आज भी उसी नाटक को दोहराया जा रहा है।

बात यह है कि अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान गायत्री की नृत्य और गीत मैं बड़ा साख थी। अपनी किशोरावस्था में उसने खूब नाचा था, खूब गाया था। वही गायत्री अब जैसे किसी कब्रगाह में दफन हो गयी थी। अब आठ साल के बाद एक अनजानी-सी मण्डली ने उसकी कब्र को खोदकर उसे फिर से निकालने का संकल्प लिया है।

इस मण्डली ने ढेर सारा काम पूरा कर लिया है और इसके सदस्य यह बता गये, हैं कि वे कल फिर आएँगे..धरना देंगे। ये छोकरे गायत्री के मैके वाले मोहल्ले से हैं। गायत्री की शादी के समय ये शोहदे हाफ पैण्ट पहनकर कंचे खेला करते थे। अब सब-के-सब बड़े क्या हो गये हैं, बड़े लायक हो गये हैं और उन्होंने एक समिति बना ली है। पता नहीं क्या नाम है बड़ा लम्बा-चौड़ा-सा...कोई सूखा राहत या बाढ़ पीड़ित कल्याण समिति बनी हैं। उसी समिति के तत्त्वावधान में 'भूखे लोगों की भूख' मिटाने का जोरदार अभियान शुरू किया गया है और रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। पता नहीं इसमें टिकट लगाकर क्या सफैद-स्याह होगा और खाक तमाशा होगा। टिएकट से मिला पैसा दान-पुण्य के मद में जाएगा।

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