कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
जदु
लाहिड़ी के यहाँ खाना पकानवाली की बेटी 'पदमिया' कौ फूँक-तापकर सोनापलाशी
ग्राम में एक नयी पद्मलता को प्रतिष्ठित करने वाला और कोई नहीं था-सिवा
मुरारि के।
अब इस बात का अहसास कैसे
नहीं होता भला!
मुरारि,
जिसने एक दिन उसका मजाक उड़ाया था और कहा था...''तुझे क्या लगता है, मैं
तेरे से बियाह कर लूँगा? किस खुशफहमी में है तू? मेरी माँ तुझे सूप में
हल्दी, पान और घी का दीया जलाकर चुमौना करने के लिए नहीं आएगी। ऐसा न हो
कि मुझे भी सूप की हवा से दूर झटक दे।''
बात
ही बात में उसने मुरारि के बारे में जान लेना चाहा। उसे कोई झिझक नहीं हुइ
पास-पड़ोस की खोज-खबर लेने के बहाने ही उसने बड़े इतमीनान से पूछा, ''हां तो
बड़ी ताई...मुरारि भैया का क्या हाल-चाल है? गाँव मैं ही हैं न...?''
राय
घराने की ताई ने शिकायत के स्वर मैं कहा, ''अरे रे...रे...उस लड़के के बारे
में कुछ न पूछ, बेटी...। बेचारा बीमारी से जूझ रहा है। सूखकर काँटा हो गया
है। एक पैसे का रौजगार नहीं। घर-द्वार सब गिरवी पड़ा है। हां, बातें बड़ी
लम्बी-लम्बी बनाया करता है। बीवी-बच्चे भी वैसे ही राम-भरोसे हैं।''
अच्छा...तो बातें अब भी
बनाया करता है? उसकी कतरनी-सी चलनेवाली जुबान का इलाज पद्मलता जानती है।
क्या वह इस पर अमल कर देखे।
बार्ली
का कटोरा अपने मुँह से अलग करते हुए मुरारि का चेहरा विकृत हो गया था। वह
अपनी पत्नी को एक लौंग दे जाने को कहने ही वाला था कि ड्योढ़ी के सामने लगे
किवाड़ को अन्दर की तरफ ठेलकर पद्मलता भीतर दाखिल हुई।
मुरारि
अपने बिचके हुए चेहरे को समेटकर मुस्कराने की कोशिश मैं लगा ही था कि
पट्मलता ने हैरानी से पूछा-''क्या बात है त् क्या गटक रहे थे? साबूदाना?''
मुरारि
ने अपनी टोना हथेलियों को उल्टा छितरा दिया और फिर मजाक के स्वर में बोला,
''हरे कृष्ण...। साबूदाना? यह तो पिछले जनम का सपना है। गले से बार्ली
उतार रहा था-खाँटी मण्डल बार्ली।''
''क्या हुआ है?''
''बीमारी
और क्या...। कोई एक अदद बीमारी है? गरीबी, दुश्चिन्ता, साहूकार का डर,
घरवाली, आये दिन झगड़ा, पीलिया, बुखार....डिस्पे....फिया...''
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