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आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह



परिशिष्ट

समय, साहित्य और समाज के जुड़े सवालों पर

आशापूर्णा देवी के विचार


प्रस्तुति : रणजीत साहा

प्रश्नः साहित्य का संकल्प क्या होना चाहिए?

उत्तरः सामाजिक परिवेशगत और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के चलते साहित्यकारों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। क्योंकि उनकी सकारात्मक एवं रचनात्मक अवधारणाएँ ही साहित्य या समाज को नयी दिशा दे सकती हैं। लेकिन समाज का रवैया और सरोकार भी तो वदलते रहते हैं?

यह ठीक है कि बदलते सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में व्यक्ति की प्राथमिकताओं का क्रम बदल जाता है और ऐसी स्थिति में अन्यान्य दबावों के चलते श्रेष्ठ साहित्यकार भी अपने दायित्व का पालन नहीं कर पाता। समाज और साहित्य के रिश्ते पर लम्बी बहस की जाती रही है। और कोई भी जेनुइन लेखक इस बात से आश्वस्त या कि सन्तुष्ट नहीं हो सकता कि सिर्फ साहित्य ही विरोध का एकमात्र या कि सर्वश्रेष्ठ हथियार हो सकता है। दूसरी तरफ वह सामाजिक मनोरंजन या नैतिक मानदण्ड का। समाज के इस छद्म रूप को उजागर करने के साथ-साथ उसके सुष्ठु और श्रेष्ठ मानवीय संस्कार को बनाये रखना बहुत जरूरी है।

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