कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
पहले-पहले
तो सोनू अपनी शानदार भूमिका निबाहते हुए उसमें जरा भी रद्दोबदल करने को
तैयार न थी। और बार-बार एक जैसे सवाल उत्तर देते-देते वह तग आ गयी थी,
''मैंने बताया न नहाने के लिए बाथरूम में घुसी।...मैंने अपनी आँखों से
देखा। इसके बाद कहीं बिला गयीं...मैं क्या जानूँ? मैं तो यही सोच रही थी
कि खनतले पर पूजा वाले घर चली गयीं। और सबेरे-सबेरे तो हमारे लिए दादी माँ
ही हरधाजा खोलती हैं। बन्द घर की चाबी भी उन्हीं के पास रहती है।''
मोहल्ले
भर की स्त्रियाँ विदा होने के बाद, मोहल्ले भर की बुआजी श्रीमती बुलबुल
उर्फ बुबु बुआ भी पधारीं। एक बार फिर सारी राम-कहानी सुनाई गयी।
बहुओं
ने अपने होठों को चबाते हुए कहा, ''सारा दोष तो हमारे ही मत्थे मढ़ा जाएगा।
लेकिन वे कहीं-कहीं गुलछर्रे उड़ाने जाती हैं...हमें कभी बताती भी हैं।''
''ठीक
है...कभी-कभार...शाम या दोपहर को थोड़ा-बहुत जरूर धूम-फिर आना चाहिए। लेकिन
यह क्या...सवेरे-सवेरे पूजा-पाठ किये बिना निकल गयी...हां...चाय-वाय पी भी
थी उसने...?''
''चाय
क्यों नहीं पीएँगी भला? जब पूजा-घर से उतरती हैं, तब पीती हैं। हम जैसे
प्लेच्छों के हाथ बनी चाय थोड़े ही गले से उतरेगी। खुद ही बनाती हैं और
पीती हैं।''
''अच्छा...थोड़ी
देर और देख लेती हूँ। वैसे घर पर भी...'' बुबु बुआ के घर में आज क्या खास
बात है...यह सुन लेने के पहले मिठुन और टुटुन के स्कूल-बस का हॉर्न सुनाई
पड़ा। सोनू दौड़ती हुई गयी अपनी जिम्मेदारी निभाने। उन दोनों के स्कूली बैग
उठाकर लाने का भार सोनू पर ही था।
उन दोनों के अन्दर आते ही
उनके ऊपर सभी एकबारगी टूट पड़े, ''अरे तुम दोनों ने सुबह के समय स्कूल जाने
के पहले दादी को देखा भी था?''
मिठुन की उम्र साढ़े तीन
साल है और टुटुन की पाँच। इसलिए निशाने पर मिठुन ही था।
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