कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
बासन्ती
ने हाथ ऊपर उठाकर माथे से लगाया और नाराजगी से बोली, ''इस बात को कहने में
भी कोई कोर-कसर नहीं उठा रखी है, भाभी जी! लेकिन बाबू लोग बड़े कडे मिजाज
वाले हैं। इस बात के लिए राजी नहीं हुए। कहते हैं, घर में पहले से ही ढेर
सारे नौकर-चाकर हैं। इसी मुसीबत के चलते पिछले दो दिनों से जितने भो
जाने-पहचाने मकान हैं...उनके दरवाजे आसरे के लिए खटखटा रही हूँ। लेकिन
किसी ने भी मेरी चिरौरी नहीं सुनी। हर किसी ने कोई-न-कोई बहाना बना दिया।
बेटी को साथ लिये घूम रही हूँ अगर इसको देखकर ही किसी को दया आ
जाए।...इसीलिए।''
सुमित्रा
ने मन-ही-मन कहा, ''अरी तुम तो गलत गोटी चल रही हो बासन्ती वाला। अच्छा तो
यही होता कि तुम किसी को अपनी वेटी नहीं दिखाती...तब शायद कोई राजी हो भी
जाता।''
''इस अंगारे को अपने घर
में कौन रखेगा भला? कौन इसे अपनी ओट देगा? और तब...जबकि तुम भी उसके पास
नहीं रहोगी। ऐसा भी होता है कहीं।''
बेटी
उधर घर के बरामदे पर ही खड़ी है....कोने से लगी। एक सस्ती झीनी-सी साड़ी में
और उसी से मिलता-जुलता लाल रंग का एक फुटपथिया ब्लाउज। इसी में वह ऐसी
भरी-पूरी और खूबसूरत दीख पड़ती है कि एक बार नजर पड़ जाए तो दौबारा देखने की
इच्छा जगती है। सोचकर यही लगता है कि अगर यह लड़की थोड़े-से प्यार और जतन
से पली-पुसी होती, अच्छे कपड़ों में सजी-धजी होती तो पता नहीं...कितनी
सुन्दर दीख पड़ती। सुमित्रा ने यह सोच लिया कि वह उसे अपनी कोई पुरानी
साड़ी-चोली दे देगी। लाल फूल के छापे वाली जार्जेट साड़ी वैसे तो जगह-जगह से
चस गयी है पर रंग वैसा ही लाल टूस है...वही दे देगी। नीले रंग की बगलारी
साड़ी अब भी ठीक-ठाक है मगर एक जमाने की है और गदालखाने में पड़ी है...वह भी
निकालकर दे देगी। इसके अलावा दौ-एक और भी पुरानी सूती साड़ी। कुरती तो ढेर
सारी हैं...उसकी कुरती इस छोकरी को ठीक आ जाएगी।
सुमित्रा ने अपनी मन की
आँखों से इस लड़की को गहरे लाल और नीले रंग की साड़ी में सजाकर देख लिया।
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