कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
ठहरी हुई तसवीर
तेरह नवम्बर उन्नीस सौ अठहत्तर को दमदम हवाई अड्डे से उड़ान भरते हुए जो हवाई जहाज श्रीलंका जा रहा था, वह आकाश में उड़ते-उड़ते अचानक पंखों में खराबी की वजह से जलते-जलते हिन्द महासागर में जा गिरा था। उसमें सवार जितने भी नामी-गिरामी व्यक्ति थे सबको एक साथ जल-समाधि लेनी पड़ी थी। उन्हीं में से एक थे डी. के. सेन यानी दिव्यकुमार सेन-एक युवा इंजीनियर...।एक बहुत बड़े सार्वजनिक उपक्रम में कुछ समय पहले ही दिव्यकुमार सेन नियुक्त हुए थे। प्रतिष्ठान के नियमानुसार वह विदेश से उच्च डिग्री भी प्राप्त कर आये थे और कम्पनी के काम से ही वह उस मनहूस तेरह तारीख को श्रीलंका जा रहे थे।
उनकी यह यात्रा दूसरों के साथ ही महायात्रा में बदल गयी।
हालाँकि आजकल ऐसी घटनाएँ आये दिन होती रहती हैं, लेकिन इसी कारण इनकी भयावहता तो कम नहीं हो जाती। एक विमान के व्यस्त हो जाने का मतलब है कितने ही परिवारों का नष्ट हो जाना, कितने ही घरों-घरानों और सपनों की तबाही। किस व्यक्ति का जीवन मूल्यवान नहीं है?
अखबारों की दुनिया सिर्फ दुर्घटना में 'मृतकों' की संख्या ही याद रखती है लेकिन इन मृतकों के पीछे कितने ही मरने वाले और होते हैं, इसका हिसाब कौन रखता है? इसी तेरह नवम्बर की घटना की खबर पढ़ते ही शाश्वती सेन नामक स्त्री इस तरह एक खामोश बुत में तब्दील हो गयी, कि उसे किसी भी तरह अब जीवन-धारा में वापस नहीं लौटा पा रहे।
मालव्य सेन भी जैसे निरुपाय हैं। उन्हें अपने पैरों में चक्का बांधकर दौड़-धूप करनी पड़ रही है, मृत युवा इंजीनियर डी. के. सेन उन्हीं के पुत्र हैं, इसको प्रमाणित करना होगा...किसी भी तरह। प्रमाणित तो करने की जरूरत पड़ेगी ही लेकिन उसकी शिनाख्त करने का क्या उपाय है? सब कुछ तो समुद्र के गहरे तल में समा गया।
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