लोगों की राय

कहानी संग्रह >> किर्चियाँ

किर्चियाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

3465 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


इस बात की तो बहुत-से लोगों को खबर है कि वह सबेरे वाली गाड़ी से कहीं बाहर गये थे। दिन के बारह बजे तक तो वह वकील के यहाँ ही थे और सफाई में यही सबसे बड़ा सवृत होगा। शाम से अगली रात तक कहाँ थे, इस बात के लिए कोई चश्मदीद गवाह जुटा लें तो फिर तय है कि वह कृपगनगर में थे ही नहीं। अव्वल तो यह नौबत आएगी नहीं।

और ऐसा हो भी तो केशव राय को भला इस मामले में कौन फँसा सकेगा?

इस कँगले...हरामजादे...स्साले के टेंटुए की तरफ केशव राय ने खड़े होकर ध्यान से देखा। वह कच्ची इमली चूस रहा था.. सबसे बेखबर..।

केशव राय आहिस्ता-आहिस्ता उसकी तरफ बढ़ आये।

इसके बाद घटित होने वाले सारे टृश्य-एक-एक कर उनके दिमाग में उभरने लगे।

कलेजा पीटती हुई कदम विलख रही है...वालों को नोच रही है। इसके बाद अपना-मुँह लिये वह चुपचाप सिर झुकाये अपने ममेरे भाई के साथ गाड़ी पर बैठने को जा रही है।

अगर वह नाबालिग लड़का ही आँखें मूँद ले तो वह अदालत में किसके लिए अपना दावा ठोंकेगी।

कदम का बुझा और उतरा हुआ चेहरा...हार की बदौलत उसकी नीचे झुकी हुई गर्दन की कल्पना कर केशव राय का जी वल्लियों उछलने लगा।...वह चुपचाप आगे बड़े...एक-एक कदम नापकर और चार कदम।

लेकिन तभी जैसे बिजली के झटके के साथ उसके दिमाग में एक बात आ गयी...गला दबाने पर उँगलियों के गहरे निशान...ये तो बड़े खतरनाक साबित हो सकते हैं। उन निशानों की बुनियाद पर ये स्साले पुलिस वाले हत्यारे को पाताल से भी ढूँढ निकालते हैं।...इससे तो अच्छा है कि इस पोखर के पानी में ठेल-धकेल दिया जाए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book