कहानी संग्रह >> किर्चियाँ किर्चियाँआशापूर्णा देवी
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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह
लेकिन
मुश्किल तब हुई थी जब राघव राय ने उसे घर के अन्तःपुर में ला बिठाया। इस
बात से केशव राय और चिढ़ गये थे। उनके मन में इस औरत के प्रति घृता का भाव
और भी बढ़ गया।
बहुत
सम्भव था कि बात यहाँ तक नहीं बढ़ती...अगर कदम विनम्र और सरल स्वभाव की
होती...अपनी उड़ान के दौरान इस घोंसले को पाकर या अपनाकर मन-ही-मन इस
कुण्ठा से शर्मिन्दा होती रहती कि उसने यहाँ अनधिकार प्रवेश किया है...या
फिर केशव की पत्नी को सास की तरह सम्मान दिया होता...तो सम्भव है देर-अबेर
केशव राय का भी मन पिघल जाता। लेकिन बात इसके ठीक उल्टी होती चली गयी।
कदम
ने लगातार पचीस वर्षों तक मामा के घर अपमान का घूँट चुपचाप पीते हुए वहाँ
का खाना गले के नीचें उतारा था। कभी तो उसका दिन भी आएगा। और तभी तो वह
पाँच-पाँच नाती-पोते वाले बूढ़े के एक बार कहते ही उसके साथ शादी करने को
राजी हो गयी थी। कभी तो वह सारा कुछ प्राप्त कर सकेगी। मामी ने भी अपनी
भांजी को उसके पति के घर विदा करते हुए गहने और कपड़े जैसी बेकार की चीजें
न देकर दो-चार तरह का भारी-भरकम उपदेश भर दिया था और अपनी जान छुड़ायी थी।
उन्हीं
उपदेशों को माता अष्टमंगला का आशीर्वाद मानकर कदम पति के घर की नौकरानी,
महाराजन और यहाँ के टुकड़े पर पलनेवाली स्त्रियों पर दया का भाव दिखाती हुई
कहा करती थी, ''अरे तुम लोगों ने यह नयी बहू...नयी बहू...की क्या रट लगा
रखी है...मैं इस घर की बहू थोड़े न हूँ..।''
''तो फिर तुम्हें नयी
बहूरानी कहूँ?'' महाराजन ने घबराकर पूछा था।
''अरे
बहू-बहू कहकर बुलाने की जरूरत भी क्या है? मैंने तो सुना है कि तुम यहाँ
बहुत दिनों से हो।...केशव की माँ-माने बाबू की पहली घरवाली को क्या कहा
करते थे?''
महाराजन की आँखें फटी रह
गयी थीं। उसने बताया, ''उन्हें तो सभी मालकिन माँ कहा करते थे।''
''ठीक है, मुझे भी तुम
लोग नयी गिन्ती1 माँ या मालकिन माँ कहकर ही बुलाना।''
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1. गिन्ती अर्थात् गृहिणी।
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