चिन्मय मिशन साहित्य >> नारद भक्ति सूत्र नारद भक्ति सूत्रस्वामी चिन्मयानंद
|
4 पाठकों को प्रिय 437 पाठक हैं |
इसमें वेदान्त के तीक्ष्ण तर्कों से जिन पाठकों की जिह्वा जल रही थी उस पर भक्ति के मधुरामृत ने शीतलता प्रदान की है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सम्पादकीय
नारद –भक्ति- सूत्र पर पूज्य स्वामी चिन्मयानन्द की व्याख्या 1
जनवरी 1968 को अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी। वेदान्त के विस्तृत साहित्य
के बीच इस भक्ति-ग्रन्थ का विशेष मूल्य औऱ आकर्षण था। वेदान्त के तीक्ष्ण
तर्कों से जिन पाठकों की जिह्वा जल रही थी उस पर भक्ति के मधुरामृत ने
शीतलता प्रदान की। फलस्वरूप पाठकों ने इस पुस्तक का बहुत आदर किया।
हिन्दी पाठकों ने भी इस पुस्तक की मांग की और श्रीमती शीला शर्मा ने उसका हिन्दी अनुवाद कर डाला। उसका प्रकाशन सन् 1975 में हो सका। हिन्दी पाठकों ने इसे पाकर तृप्ति का अनुभव किया। अनुवादिका का श्रम सार्थक हुआ।
अब पाठकों के हाथ में पुस्तक का तीसरा संस्करण है। इसमें मुद्रण की कुछ अशुद्धियाँ, जो पहले व दूसरे संस्करण में रह गयी थी, दूर कर दी गयी है। और अक्षरों का आकार भी बड़ा कर दिया गया है, जिससे वयोबृद्ध लोगों को भी इसके अध्ययन करने में असुविधा न हो।
हिन्दी पाठकों ने भी इस पुस्तक की मांग की और श्रीमती शीला शर्मा ने उसका हिन्दी अनुवाद कर डाला। उसका प्रकाशन सन् 1975 में हो सका। हिन्दी पाठकों ने इसे पाकर तृप्ति का अनुभव किया। अनुवादिका का श्रम सार्थक हुआ।
अब पाठकों के हाथ में पुस्तक का तीसरा संस्करण है। इसमें मुद्रण की कुछ अशुद्धियाँ, जो पहले व दूसरे संस्करण में रह गयी थी, दूर कर दी गयी है। और अक्षरों का आकार भी बड़ा कर दिया गया है, जिससे वयोबृद्ध लोगों को भी इसके अध्ययन करने में असुविधा न हो।
सम्पादक
नारद- भक्ति- सूत्र
प्रस्तावना
उपनिषदों के वाक्य
‘मंत्र’ कहलाते हैं। वे मनन करने
के लिए
हैं। उन पर मनन करने से व्यक्ति उत्साहित होकर आत्मोन्नति करता है।1
हमारे समस्त दार्शनिक ग्रन्थों की रचना सूत्रों के रूप में महान ऋषियों और विचारकों ने की है। सूत्र वह धागा है जिसमें तर्क और विचारों के पुष्प पिरो कर सिद्धान्तों की माला निर्मित की जाती है। सूत्र व्याख्या वाक्य हैं और उनका कार्य गहराई तक उतरना है। दार्शनिक का कार्य सिद्धान्तों का निरूपण करना ही पाठक उसे समझकर अधिक बुद्धिमान बन सके और कुशलतापूर्वक जीवन जी सके।
भारत के सभी छः दर्शन सूत्र रूप में लिखे गये हैं। ‘ब्रह्मसूत्र’ अद्वैत दर्शन और ‘जैमिनि सूत्र’ कर्मकाण्डीय दर्शन की व्याख्या करते हैं। सूत्र बहुत गूढ़ होते हैं और उनमें गहन भाव प्रचुर मात्रा में विद्यामान रहते हैं।
हमारे समस्त दार्शनिक ग्रन्थों की रचना सूत्रों के रूप में महान ऋषियों और विचारकों ने की है। सूत्र वह धागा है जिसमें तर्क और विचारों के पुष्प पिरो कर सिद्धान्तों की माला निर्मित की जाती है। सूत्र व्याख्या वाक्य हैं और उनका कार्य गहराई तक उतरना है। दार्शनिक का कार्य सिद्धान्तों का निरूपण करना ही पाठक उसे समझकर अधिक बुद्धिमान बन सके और कुशलतापूर्वक जीवन जी सके।
भारत के सभी छः दर्शन सूत्र रूप में लिखे गये हैं। ‘ब्रह्मसूत्र’ अद्वैत दर्शन और ‘जैमिनि सूत्र’ कर्मकाण्डीय दर्शन की व्याख्या करते हैं। सूत्र बहुत गूढ़ होते हैं और उनमें गहन भाव प्रचुर मात्रा में विद्यामान रहते हैं।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book