नई पुस्तकें >> तपस्विनी सीता तपस्विनी सीतात्रिवेणी प्रसाद त्रिपाठी
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सीता चरित्र पर खण्ड काव्य
तपस्विनी सीता
पूर्वाभास
गर्भ नहीं पाई थीं सीता किसी मातु का,
वे थीं रक्त महाऋषियों का संचित घट में,
ऋषि तो थे वनचारी, प्रभु के भजन-मनन के,
थीं उनकी संतान घड़े में संचित होकर ॥
उनको भी प्रिय था, जंगल का रहन-सहन,
इसीलिए उनने मांगा था, श्रीहरि से-
हे स्वामी मुझको लगते प्रिय, विपिन-प्रांत,
अतः मुझे वन भेजें, जब भी सुविधा हो॥
राम जन्म में लिए राम, अपने संग में-
प्रथम वार, जब गए विपिन वे माँ आज्ञा पर,
तथा दूसरी बार सहारा लिए दोष का,
और सिया को भेजें वन में, वास हेतु वे॥
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