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काव्यांजलि उपन्यास

डॉ. राजीव श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17179
आईएसबीएन :9781613017890

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आधुनिक समाज को प्रतिविम्बित करती अनुपम कृति

शनिवार को प्रातः 6 बजे सभी लोग कार से हरिद्वार के लिये निकले। दोपहर 2 बजे हरिद्वार पहुँचे। अत्यन्त थके होने के कारण भोजन कर सो गये। शाम को होटल कीबालकनी से ही हरिद्वार के दृश्य देखते रहे। धार्मिक माहौल तथा हरिद्वार की शीतल वायु ने सबको तृप्त कर दिया।

अगले दिन प्रातः 7 बजे कार से मन्दिरों के दर्शन एवं पूजन हेतु निकले। दक्ष महादेव मन्दिर, मनसा देवी मन्दिर, चंडी देवी मन्दिर में दर्शन व पूजन करते हुये दोपहर 3 बजे होटल पहुँचे। भोजन कर विश्राम किया। सायं को गंगा आरती देखने गये।

कमला देवी, "बेटा आज मन्दिरों के दर्शन कर मन तृप्त हो गया। गंगा आरती देखकर तो मानो गंगा माँ के दर्शन हो गये।"

दीपा, "मैंने तो हर मन्दिर में अच्छे मार्क्स के लिये प्रार्थना की।"

काव्या, "केवल प्रार्थना करने से काम नहीं चलता है, पढ़ना भी पड़ता है।"

दीपा, "दीदी तुम घमंड मत करो। मैं तुमसे अच्छे मार्क्स लाकर दिखाऊँगी।"

माधुरी, "अरे तुम लोग आपस में मत झगड़ो, कल का प्रोग्राम तय करो।"

विनोद, "कल सुबह हम लोग आज ही की तरह ऋषिकेश के लिए निकलेंगे और लक्ष्मण झूला देखेंगे। एक-एक सेट कपड़ारख लो, गंगा स्नान भी किया जायेगा।"

काव्या, "वाह! पापा आपका प्रोग्राम तो एवन है।"

प्रातः सभी लोग कार से निकले। सर्वप्रथम ऋषिकेश में गंगा स्नान किया। तेज बहाव के कारण लोहे की मोटी चेन पकड़कर शीतल शुद्व जल सेस्नान करने से फ्रेश हो गये।

कलकल कर बहती नदी व पहाड़ियों का दृश्य अत्यन्त मनोरम लग रहा है। कमला देवी ने किनारे बैठ कर ही अपने ऊपर गंगा जल छिड़क लिया।

काव्या, "पापा, मजा आ गया। भूख लगी है।"

विनोद, "चलो जलेबी व खस्ता खाया जाये।"

सबने छककर दही जलेबी व खस्ता खाया। फिर मन्दिरों के दर्शन हेतु निकले। ऋषिकेश, केदारनाथ का भाग है। नीलकण्ठ महादेव मन्दिर, भरत मन्दिर, त्रयम्बकेश्वर मन्दिर, गीता भवन देखते हुये स्वर्गाश्रम पहुँचे। वहाँ के हॉल में विश्राम किया और भोजन माँगकर भोजन किया। कमला देवी व माधुरी तो वहाँ केसत्संग में रम गयीं।

सायं फिर घूमने निकले व लक्ष्मण झूला देखने के पश्चात् हरिद्वार होटल पहुँचकर चाय पी। थोड़ी देर बालकनी से मनोहारी दृश्य देखे वएक ही कमरे में बैठ अगले दिन का कार्यक्रम बनाने लगे।

माधुरी, "कल हम लोग देहरादून व मसूरी हेतु प्रातः 8 बजे तक निकलेंगे।"

काव्या व दीपा, "वाह मम्मी, मजा आयेगा।"

कमला देवी, "तुम लोग जाना, मैं तो शान्ति कुंज में रहूँगी, आचार्य जी कई बार बुला भी चुके हैं।"

 

 

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Asha Rastogi

डॉक्टर राजीव श्रीवास्तव की कलम से एक और अत्यंत प्रभावशाली सृजन l “काव्यांजलि” की भाषा-शैली इतनी सहज, रोचक एवं मनोहारी है कि पाठक बरबस ही उपन्यास से जुड़ाव महसूस कर लेता है l पर्त- दर- पर्त सारी कड़ियाँ ऐसी गुंथती चली जाती हैं, मानो सब कुछ सामने ही घटित हो रहा हो l कश्मीर के दृश्यों का वर्णन तो रोमांच भर देता है l विषयवस्तु इतनी भावपूर्ण है कि एक चिरस्थाई प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहती l सर्वथा पठनीय कृति l मेरी ओर से असीम शुभकामनायें lDr.asha kumar rastogi M.D.(Medicine), DTCD Ex.Senior Consultant Physician, district hospital, Moradabad. Presently working as Consultant Physician and Cardiologist, sri Dwarika hospital, near sbi Muhamdi, dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964