नई पुस्तकें >> भावनाओं का सागर भावनाओं का सागरप्रविता पाठक
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प्विता जी की हृदयस्पर्शी कवितायें
पंचतत्व - 1
प्रत्येक मानव में
पंचतत्व समाहित हैं
गुजरे जमाने की बात है
मानव सीधा सादा
भोला भाला होता था
पाँचों तत्वों का समावेश
पूर्ण अनुपात में होता था
धरती शस्य-श्यामल थी
आकाश अपनी बाहों में सबको भर लेता था
वायु शीतल व मन को आनन्दित करती थी
अग्नि का ओज हर चेहरे पर दमकता था
जल पावन व निर्मल था
पर न जाने क्यूँ अब
मानव में वैमनस्य बढ़ा
स्वयं को काबिल दूसरों को नाकाम समझने लगा
पाँचों तत्वों में मानो युद्ध सा छिड़ा
धरती तत्व में कपटीपन उपजा
चारों ओर प्रदूषण का साम्राज्य फैलाया
आकाश तत्व में घालमेल हुआ
बारिश बूँदों ने मुँह मोड़ा
वायु प्रदूषण का कहर कुछ ऐसा बरपा हुआ
हवा में हवस, हैवानियत चारों ओर फैल गयी
जल तत्व भी कुछ ऐसा दूषित हुआ
मन का मैल जल में घुल गया
अग्नि तत्व का प्रकोप कुछ ऐसा बढ़ा
मानव दूसरों के जीवन में
आग लगाने में माहिर हो गया
पाँचों तत्व कुछ घबराने से लगे कि
जब मानव तन से आत्मा निकल जायेगी तब
शेष बचे पंचतत्वों को
वह अपने में समाहित करे या नहीं ।
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