नई पुस्तकें >> औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँ औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँप्रदीप श्रीवास्तव
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प्रदीप श्रीवास्तव की सात बेहतरीन कहानियाँ
वो यहाँ अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रुककर कई दिन पापा को समझाते रहे लेकिन वो टस से मस नहीं हुए थे। जिस किराये के कमरे में पापा माँ को लेकर रहने आये थे, वह इतना बड़ा था ही नहीं कि उसमें मियाँ-बीवी के अलावा तीसरा कोई रह पाता। आख़िर थके-हारे नाना जाते-जाते माँ को कुछ रुपये दे गये थे।
उन्हें जल्दी ही सब-कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद थी। उनको और बाक़ी सबको भी यह पक्का यक़ीन था कि जब ग़ुस्सा कम होगा तो बाप-बेटे एक हो जायेंगे। ऐसा न होने पर नाना के सपनों पर भी तो पानी पड़ रहा था। उन्होंने अपनी लड़की एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को नहीं बल्कि एक अच्छे-खासे सम्पन्न ख़ुशहाल परिवार, किसान परिवार के सदस्य को ब्याही थी।
माँ इस घटना के लिए सारा दोष केवल अपनी सुन्दरता को हमेशा देती रहीं। बार-बार यही कहती थीं कि, "न मैं इतनी सुन्दर होती और न ही तुम्हारे पापा मेरी सुन्दरता के दीवाने होकर ऐसा ग़लत क़दम उठाते कि माँ-बाप, भाई-बहन, ससुराल सबसे हमेशा के लिए नाता ख़त्म कर लेते। और न ही पापा के भाई इसका ग़लत फ़ायदा उठाते। दोनों ननदों की शादी हो गई लेकिन पापा को भनक तक न लगने दी गई। साज़िशन नाना के यहाँ से तो दुश्मनी जैसी स्थिति पैदा कर दी गई। और आगे चलकर बाबा के कान भर-भरकर सारी चल-अचल सम्पत्ति से ही पापा को बेदख़ल कर दिया गया।"
माँ फिर भी इसके लिए जीवन भर अपनी सुन्दरता को ही दोषी ठहराती रहीं। उन्होंने यह भी बताया था कि, "आने के बाद यदि पापा शान्त हो जाते, बाबा-दादी सबसे माफ़ी माँग लेते तो चुटकी में सब ठीक हो जाता। बाबा-दादी मन के बड़े खरे और दिल के सच्चे थे। वह पापा की इस हरकत को क्षणिक उत्तेजना में उठाया गया क़दम मानकर पल-भर में माफ़ कर देते।"
लेकिन पापा तो उनके सौन्दर्य के आगे कुछ ऐेसे चुँधियाये हुये थे कि जीवन यापन का एक मात्र सहारा अपनी टेम्परेरी नौकरी के साथ भी खिलवाड़ कर बैठे थे। और तब माँ भी बिफर पड़ी थीं। और आत्महत्या की धमकी दे दी थी। उस धमकी का असर यह हुआ कि उसके बाद पापा कुछ भी करते लेकिन नौकरी के साथ चांस नहीं लेते।
मगर उनके अगले और फ़ैसलों ने, काम ने उन्हें और परेशान ही किया। माँ इन बातों को बताते-बताते कई बार भावुक भी होतीं और कई बार जैसे रोमांचित भी।
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